
शाजापुर। पत्रिका द्वारा आयोजित काव्यगोष्ठी में शामिल शहर के कवि एवं शायर
शाजापुर.
दुख दर्द भूल जाईये होली का पर्व है... सब मिलकर मुस्कुराईये होली का पर्व है। दो साल अपने प्यार के कोरोना खा गया, अब तो गले लगाईये होली का पर्व है।
अपनी शायरी की ये पंक्तियां शहर के ख्यात शायर हनीफ राही ने शनिवार को पत्रिका समूह के 67वें स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित हो रहे कार्यक्रमों की शृंखला में किला रोड स्थित कवियत्री और लेखिका संतोष शर्मा के घर पर आयोजित काव्यगोष्ठी में अपनी शायरी सुनाते हुए प्रस्तुत की। शनिवार को आयोजित काव्यगोष्ठी में मुख्य रूप से राष्ट्रीय स्तर पर अनेक पुरस्कार और सम्मान प्राप्त कर चुकी कवियत्री और लेखिका संतोष शर्मा, देशभर में अपने कलाम प्रस्तुत कर शहर को पहचान दिला चुके शायर हनिफ राही, कम उम्र में बड़े-बड़े कवियों को अपना मुरीद कर चुके शहर के युवा गीतकार अर्पित शर्मा और अपनी कविताओं से सभी को मोहित कर चुके जितेंद्र देवतवाल ‘ज्वलंत’ शामिल हुए। सभी कवियों और शायरों ने पत्रिका के इस आयोजन की सराहना करते हुए धन्यवाद दिया। सभी ने कहा कि कोरोना के दो साल में वे बहुत ही कम लोगों तक अपनी प्रस्तुतियां पहुंचा पाए है, लेकिन आज पत्रिका ने उन्हें जल-जन तक अपनी रचनाएं पहुंचाने के लिए मौका दिया है इसके वो आभारी है। उन्होंने पत्रिका के इस आयोजन की सराहना भी की। इसके बाद सभी ने एक-एक करके अपनी रचनाएं प्रस्तुत की।
अर्पित शर्मा, युवा गीतकार :
नन्ही गुडिय़ां मां से बोली, मां मुझको पिचकारी ले दो, इक छोटी सी लारी ले दो, रंग-बिरंगे रंग भी ले दो, उन रंगों में पानी भर दो। मैं भी सबको रंग डालूंगी, रंगों के संग मजे करुंगी, मैं तो लारी में बैठूंगी, अंदर से गुलाल फैकूंगी।
मां ने गुडिय़ा को समझाया, और प्यार से यह बतलाया, तुम दूसरो पे रंग फैंकोगी और अपने ही लिए डरोगी, रंग नहीं मिलते है अच्छे, हुए बीमार जो इससे बच्चे, तो क्या तुमको अच्छा लगेगा, जो तुम संग कोई न खेलेगा।
जाओ तुम बगिया में जाओ, रंग- बिरंगे फुल ले आओ, बनाएंगे हम फूलों के रंग, फिर खेलना तुम सबके संग। रंगों पे खरचोगी पैसे, जोड़े तुमने जैसे तैसे, उसका कोई उपयोग न होगा, उलटे यह नुकसान ही होगा।
चलो अनाथालय में जाएं, भूखे बच्चों को खिलाएं, आओ उन संग खेले होली, वो भी तेरे है हमजोली। जो उन संग खुशियां बांटोगी, कितना बड़ा उपकार करोगी, भूखा पेट भरोगी उनका, दुनिया में नहीं कोई जिनका।
वो भी प्यारे-प्यारे बच्चे, नन्हे से है दिल के सच्चे, अब गुडिय़ा को समझ में आई, उसने भी तरकीब लगाई। बुलाएगी सारी सखी सहेली, नहीं जाएगी वो अकेली, उसने सब सखियों को बुलाया और उन्हें भी यह समझाया।
सबने मिलके रंग बनाया, बच्चों संग त्योहार मनाया, भूखों को खाना भी खिलाया, उनका पैसा काम में आया, सबने मिलकर खेली होली और सारे बन गए हमजोली।
जितेंद्र देवतवाल ‘ज्वलंत’ :
प्रकृति ने रंग बिरंगी दुकान खोली हैं, पलाश की शक्ल दुल्हे जैसी होली हैं। दिशाओं के कंधे पे दुल्हन की डोली हैं, अपनों संग खुशियां रंग उमंग होली हैं।
होली हमारा रंगीला विश्वास करती हैं, हमें खिला हुआ पूरा पलाश करती हैं। सतरंगों का बुलंद इंकलाब करती हैं, इंसान को महकता हुआ गुलाब करती हैं।
होली पर दुनियां ये रंगबिरंगी मिल गई, दीवानों की टोली मस्तमलंगी मिल गई। हमने जब-जब देखा हर एक दरख्तो पर, तो हमें पलाश और नारंगी मिल गई।
हनीफ राही, शायर
न कोई धर्म, न जाति, न शान पहले है, हमारे वास्ते हिंदूस्तान पहले है। मनाएं रोज के त्योहार पर भी आन रहे, हमारे देश का अमनो अमान पहले है।
नजर में हुस्न लबों पर जमाल रखता है, कोई तो हैं जो हमारी ख्याल रखता है। मिठाई रखता है मेरे लिए दशहरे पर, बचाकर होली में मेरा गुलाल रखता है।
सच्चाई जिंदा रहती है बस इतना ज्ञान हो, मंै तेरा मान रखूं तो मेरा सम्मान हो। ऊंचा उठाएं इस कदर अपनी जमीं को हम, इक रोज अपने पांव तले आसमान हो।
संतोष शर्मा, कवियत्री एवं लेखिका:
सात सुरों के संगम से बनता है संगीत, होली के इन रंगों में छुपे है जीवन गीत। एक-एक रंग कह देता है तेरे मेरे मन की बात, होली का त्यौहार ले आया खुशियों की सौगात। द्वेष भूलाकर बन जाओ तुम एक दूजे के मीत, होली के इन रंगों में छुपे है जीवन गीत।
मन की वीणा झंकृत कर छेड़ो ऐसा तराना, मैं ही नहीं, तुम ही नहीं गाए सारा जमाना। बाहे फैलांए खड़ी बहारें तुम लुटा दो प्रीत, होली के इन रंगों में छुपे है जीवन गीत।
आमंत्रण देते हैं तुमको होली के ये रंग, खट्टी-मीठी यादें लेकर हो जाओ इनके संग। एक बार तो हार के देखो यही तुम्हारी जीत, होली के इन रंगों में छुपे है जीवन गीत।
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Published on:
12 Mar 2022 07:49 pm
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