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तंग गलियों से निकले एशिया के सबसे बड़े दुलदुल, देखने के लिए सैकड़ों लोग जमा हुए

शाजापुर के चौक बाजार में हुई सबसे बड़े दुलदुल की स्थापना

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तंग गलियों से निकले एशिया के सबसे बड़े दुलदुल, देखने के लिए सैकड़ों लोग जमा हुए

शाजापुर.
हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाए जाने वाला पर्व मोहर्रम की शुरुआत बुधवार से हो गई। इस दौरान शाजापुर सराफा बाजार की तंग गलियों से एशिया के सबसे बड़े दुलदुल को अचंभित तरीके से निकाला गया। यह नजारा देखने के लिए यहां सैकड़ों लोग पहुंचे। बड़े साहब को छोटे चौक स्थित उनके मुकाम पर ले जाने के लिए मोहर्रम कमेटी के सरपरस्त बाबू खान खरखरे, शेख शमीम, शेख रफीक, रफीक पेंटर, सलीम ठेकेदार सहित सैकड़ों लोग मौजूद रहे। मोहर्रम पर्व की पहली तारीख को एशिया के सबसे बड़े दुलदुल (बड़े साहब) को बुधवार शाम साढ़े पांच बजे अपने नियत स्थान से सैकड़ों हाथों ने उठाया और छोटे चौक स्थित इमामबाड़े में मुकाम दिया। जहां बनाए गए मंच पर उन्हें स्थापित किया।
गौरतलब है कि बड़े साहब को उठाने के लिए दर्जनों मजबूत लोगों की आवश्यकता होती है, जो बैलेंस बनाकर उन्हें उठाते हैं। बाबा को उठाए जाने से पहले बच्चों व युवाओं की भीड़ वहां एकत्रित हो गई थी। सबसे ज्यादा उत्साह बच्चों में नजर आ रहा था। बाबा को उठाने वाले हर वर्ग-समाज के लोग मौजूद थे, जो कई सालों से इसी काम में लगे हैं। बड़े साहब को सर्राफा बाजार की तंग गली से निकालना आश्चर्य है। ये नजारा देखने के लिए लोगों की भीड़ से छोटा चौक पटा था।

यहां भी हुई दुलदुल की स्थापना
इधर नगर के मुगलपुरा, जुगनवाड़ी, मोमनवाड़ी, पायगा, दायरा, चौबदारवाड़ी, करदीपुरा, मनिहारवाड़ी, मगरिया, लालपुरा, छोटा चौक, पिंजारवाड़ी, महुपुरा, बादशाही पुल आदि क्षेत्रों में दुलदुल और बुर्राक की स्थापना भी की गई। शहर में बड़े साहब के ऐतिहासिक जुलूस १९ और २१ सितंबर को निकाले जाएंगे। मंगलवार को चांद दिखने के साथ ही इस्लामी नववर्ष एवं मोहर्रम पर्व की शुरूआत हो गई है।

कुर्बानी का पैगाम देता है मोहर्रम
मोहर्रम कमेटी सरपरस्त बाबूखान खरखरे ने बताया कि धर्म एवं सच्चाई की खातिर अपने पूरे घराने की कुर्बानी देने वाले हजरत इमाम हुसैन की याद में मुस्लिम समाज द्वारा इस वर्ष भी परंपरानुसार मोहर्रम मनाया जा रहा है। इस्लामी कैलेंडर यानी हिजरी संवत में मुहर्रम के महीने से ही साल की शुरूआत होती है। मुस्लिम धर्मावलंबी इस महीने की दस तारीख को हजरत मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन और उनके साथ शहीद हुए ७१ लोगों की कुर्बानी को याद करते हैं। इमाम हुसैन अपने उसूलों के लिए शहीद हुए थे। मुहर्रम का आयोजन उस शहादत की भावना को जगाए रखने का एक माध्यम है, मोहर्रम नेकी और कुर्बानी का पैगाम देता है। इस्लाम के मानने वाले विभिन्न समुदाय अलग-अलग तरीकों से इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं। कुछ समुदाय ताजियों के माध्यम से उन्हेें याद करते हैं और कुछ समुदाय रात भर जाग कर नफ्ली नमाज पढक़र अपने दिलों को उनकी याद में रोशन करते हैं।