scriptVideo story : शाम होते ही मालवा की गलियों में गूंजते हैं संझा के गीत | Sanjha Bai songs are echoing in Malwa | Patrika News

Video story : शाम होते ही मालवा की गलियों में गूंजते हैं संझा के गीत

locationशाजापुरPublished: Oct 04, 2021 01:30:40 pm

Submitted by:

Subodh Tripathi

सालों पुरानी प्राचीन परंपरा का निर्वहन

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शाजापुर. शाम होते ही मालवा की गलियों में संझा बाई के गीत गूंजने लगते हैं। शहर में आज भी सालों पुरानी प्राचीन परंपरा का निर्वहन होता है। बालिकाएं घर के बाहर दीवार पर संझा की आकृति बनाकर उनके गीत गाती है, इसके बाद पूजा अर्चना कर बालिकांए घर घर जाकर यह गीत लोगों को भी सुनाती है।
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श्राद्ध पक्ष में मनाते ही संझा


16 दिवसीय श्राद्धपक्ष के दौरान पाटला पूनम (पूर्णिमा) से संझाबाई का भी पूजन शुरू हो जाता है। शहर सहित अंचलों में संझाबाई का पर्व उल्लास के साथ मनाया जाता है। वैसे तो अधिकांश स्थानों पर बाजार में मिलने वाले संझाबाई के पेपर को दीवार पर चिपकाकर उसकी आरती की जाती है, लेकिन शहर सहित ग्रामीण अंचलों में कई लोग ऐसे भी जो आज भी प्राचीन परंपरा को जीवित रखे हुए है।
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शहर के भावसार मोहल्ला में महिलाओं, युवतियों सहित छोटी-छोटी बालिकाओं द्वारा श्राद्धपक्ष के पहले दिन से ही दीवार पर गोबर और फूलों की मदद से संझाबाई बनाकर उसका पूजन किया जा रहा है। रात होते ही बालिकाएं एकत्रित होकर संझाबाई के मालवी भाषा में प्रचलित गीत गाती है। क्षेत्र की महिलाएं भी इस कार्य में बालिकाओं के साथ रहती है। महिलाओं ने बताया कि पुरानी पंरपरा से नई पीढ़ी अवगत हो इसके चलते गोबर की संझा का निर्माण किया गया। श्राद्धपक्ष के पहले 10 दिनों में प्रतिदिन के हिसाब से गोबर की अलग-अलग आकृतियां संझाबाई पर बनाई गई। इसके बाद 11 वें दिन किलाकोट का निर्माण करते हुए 10 दिन तक बनाई गई सभी आकृतियों को एक साथ संझाबाई में बनाया गया। सर्वपितृमोक्ष अमावस्या पर संझाबाई के पर्व संपन्न होगा। इसके बाद संझाबाई को दीवार से निकालकर जलस्रोतों में प्रवाहित किया जाएगा।
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