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श्योपुर के नागदा वाले बाबा ही थे सुभाष चंद्र बोस!

नागदा वाले बाबा की सत्यता जांचने 17 साल पहले श्योपुर आई थी मुखर्जी आयोग की टीमआज भी सुभाष बोस की तरह रहस्य है नागदा वाले बाबा का जीवन

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श्योपुर के नागदा वाले बाबा ही थे सुभाष चंद्र बोस!

श्योपुर,
देश की स्वतंत्रता संग्राम में मुख्य भूमिका निभाने वाले और आजाद हिंद फौज का गठन करने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती आज पूरा देश मना रहा है। लेकिन मौत आज भी रहस्य ही बनी हुई हो, ऐसे में जिले के उनके अनुयायियों का आज भी दावा है कि श्योपुर जिले के नागदा में 40 साल तक रहे एक बाबा ही सुभाष बोस थे।

यही वजह है कि भारत सरकार द्वारा गठित किए गए मुखर्जी आयोग का एक दल 17 साल पूर्व श्योपुर आया था और यहां नागदा व श्योपुर में विभिन्न वस्तुएं देखी और जानकारी एकत्रित की। हांलाकि मुखर्जी आयोग भी नेताजी के जीवन के अंतिम समय में श्योपुर में होने की पुष्टि नहीं कर पाया, लेकिन श्योपुर के लोग आज भी मानते हैं कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस अपने जीवनकाल के अंतिम दिनों में श्योपुर के नागदा में ही रहे। यही वजह है कि अप्रत्यक्ष रूप से ही सही श्योपुर का नाम नेताजी सुभाष के साथ जुड़ गया।

इसलिए श्योपुर आया मुखर्जी आयोग
नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मौत का रहस्य जानने के लिए भारत सरकार ने कई प्रयास किए, इन्ही में से एक प्रयास था मुखर्जी आयोग का गठन। बताया गया है कि नेताजी अपने जीवन के अंतिम समय में कहां रहे, उनकी मौत कैसे हुई, जैसे सवालों को ढूंढने के लिए मुखर्जी आयोग ने देश के उन हिस्सों का दौरा किया जहां से भी नेताजी से जुड़ी खबरें आईं। इसी के तहत श्योपुर जिला मुख्यालय के निकट नागदा स्थित प्रसिद्ध नागेश्वर-भूमेश्वर महादेव मंदिर पर लगभग 40 साल तक रहे एक साधु सी.ज्योतिर्देव के बारे में कहा गया कि वे ही नेताजी सुभाष थे, जो वर्ष 1977 में मृत्यु होने तक नागदा में रहे। इन्ही बातों की सच्चाई जानने के लिए मुखर्जी आयोग का दल श्योपुर आया और नागदा वाले बाबा से जुड़ी चीजों की तलाशी ली।

वर्ष 2001 में आया था दल
नागदा वाले बाबा की मुत्युपरोंत जब यह चर्चा तेज हुई कि वे ही सुभाष चंद्र बोस थे, तो भारत सरकार द्वारा गठित मुखर्जी आयेाग की एक टीम श्योपुर आई। बताया गया है कि मुखर्जी आयोग के कमिश्नर एनके पांजा के नेतृत्व में 5 सदस्यीय दल 12 जुलाई 2001 को श्योपुर पहुंचा और यहां लगभग एक सप्ताह तक रुककर विभिन्न साक्ष्य प्राप्त किए। इस दौरान दल के सदस्यों ने नागदा वाले बाबा की वस्तुओं को देखा और उनके छायाचित्रों के साथ उनके अनुयायियों से भी जानकारी प्राप्त की। हांलाकि नागदा वाले बाबा के सुभाष होने के पुख्त प्रमाण नहीं मिले,लेकिन बाबा के अनुयायी आज भी अपनी बात पर अडिग हैं। बाबा के अनुयायियों का तर्क था कि 1945 में श्योपुर के ग्राम पांडोल के निकट विमान दुर्घटना हुई थी, जिसमें नेताजी सुभाष बच गए और साधु बनकर नागदा में रहे।