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उल्का पिंड गिरने से पहाड़ी की तलहटी में स्थापित हुआ था शिवलिंग

टपकेश्वर महादेव मंदिर में साल भर जल की धारा से शिवलिंग पर होता रहता है जलाभिषेक

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शिवपुरी. शिवपुरी जिले के पिछोर कस्बे से 15 किमी दूरी पर ग्राम पंचायत ढला व मुहार के बीच विशालकाय पहाड़ी की तलहटी में प्राचीन टपकेश्वर महादेव मंदिर अपनी नैसर्गिक सौंदर्यता व ऐतिहासिकता के कारण दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। बरसात के दिनों में यह स्थान पर्यावरण को धारण कर रोमांचक व रमणीय हो जाता है। यहां विराजमान शिवलिंग के ऊपर अनवरत पानी की धारा सालभर टपकती रहती है।

ग्रामीणों व आसपास के लोगों की मानें तो गर्मी के दिनों में भी सूखा पड़ने के बाद भी इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग पर पानी टपकता है। इसलिए इस मंदिर का नाम टपकेश्वर महादेव पड़ा है। वैसे तो सालभर इस मंदिर पर भक्तों का आना लगा रहता है, लेकिन श्रावण के महीने, शिवरात्रि व मकर संक्रांति पर यहां आने वालों की संख्या हजारों में हो जाती है। मंदिर पर इन विशेष अवसरों पर मेले भी लगते हैं। मंदिर पर शिव अभिषेक तथा धार्मिक आयोजन चलते रहते हैं। मंदिर परिसर में स्थित कुंडों में शीतल जल की कई धाराएं बहती रहती हैं। एक गोमुख से हमेशा पानी निकलता है।

उल्का पिंड गिरने के बाद बना था मंदिर
बरसात के दिनों में पहाड़ी से तेज धार में गिरता हुआ पानी मनोरम झरने का रूप ले लेता है। जहां तक ऐतिहासिक प्रमाणिकता की बात करने पर पता चलता है कि सैकड़ों वर्ष पहले विशाल पर्वत के रूप में यहां उल्का पिंड गिरा था, जिसने धीरे-धीरे करके यह रूप ले लिया। इसमें अथाह पानी भरा हुआ है।

पाडंवों का अज्ञातवास का स्थान भी रहा था
इतिहासकारों की मानें तो यह मंदिर पांडवों का अज्ञातवास का स्थान रहा है जिसके बीजक और शिलालेख भी विद्यमान हैं। बताया जाता है कि यहां से निकलते वक्त एक झील में पांडवों के कुछ घोड़ों ने झील का पानी पी लिया था, जिससे उनकी मौत हो गई थी और क्रोध में आकर भीम ने एक विशाल पहाड़ को उलटकर झील को पाट दिया था। बाद में कुंडों का निर्माण कर मीठे जल की धारा प्रवाहित की गई। इसके बाद पांडवों ने इस गुफा में भगवान शिव की स्थापना कर पूजा-अर्चना की थी। कई सिद्ध महात्माओं ने इस मंदिर परिसर में जिंदा समाधि ली हुई है जिस पर चबूतरा और फिर मंदिर निर्मित हो गया।