scriptWorld heritage day : बौद्धस्थली श्रावस्ती दे रही विश्व शांति का संदेश, अपनी गोद में संजोए है प्राकृतिक छटा व प्राचीन सभ्यता | Buddhist site shravasti is giving message of world peace | Patrika News

World heritage day : बौद्धस्थली श्रावस्ती दे रही विश्व शांति का संदेश, अपनी गोद में संजोए है प्राकृतिक छटा व प्राचीन सभ्यता

locationश्रावस्तीPublished: Apr 16, 2021 07:52:17 pm

Submitted by:

Neeraj Patel

World heritage day : देश-दुनिया को विश्व शांति का संदेश देने वाली बौद्धस्थली श्रावस्ती अपनी गोद में प्राचीन सभ्यता (Ancient Civilization) व प्राकृतिक सभ्यता को संजोए हुए है।

Buddhist site shravasti

Buddhist site shravasti is giving message of world peace

पत्रिका न्यूज नेटवर्क
श्रावस्ती. World heritage day : देश-दुनिया को विश्व शांति का संदेश देने वाली बौद्धस्थली श्रावस्ती अपनी गोद में प्राचीन सभ्यता (Ancient Civilization) व प्राकृतिक सभ्यता को संजोए हुए है। तथागत भगवान बुद्ध (Lord Buddha) ने जहां अपने जीवन के सर्वाधिक चौबीस वर्षावास श्रावस्ती में बिताए थे। वहीं जैन धर्म के तीर्थंकर भगवान संभवनाथ व भगवान चंद्रप्रभू की जन्म स्थली होने का गौरव भी श्रावस्ती को ही प्राप्त है। जिले की उत्तर सीमा पर स्थित हिमालय की शिवालिक पर्वत मालाएं व जिले में बहने वाली प्राचीन काल की अचरावती (जिसे अब राप्ती नदी कहा जाता है) इसकी सुंदरता को चार चांद लगा रही है। जहां प्रतिवर्ष विभिन्न देशों से लाखों की संख्या में श्रद्धालु व पर्यटक यहां घूमने के लिए आते हैं।

संभव नाथ स्तूप और अंगुलिमाल गुफा

बौद्ध तपोस्थली श्रावस्ती में छाता नुमा दिखने वाला यह स्तूप जैन धर्म के संस्थापक महावीर स्वामी की जन्म स्थली है। इसमें लगे प्राचीन ईंट श्रावस्ती की संपन्नता को दर्शाते हैं। जहां माथा टेकने के लिए देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर के जैन धर्मावलंबी आते रहते हैं। वहीं तपोस्थली स्थित श्वेतांबर व दिगंबर जैन मंदिर भी जैन धर्मावलंबियों का प्रमुख तीर्थ स्थल है। जहां नियमित लोगों का आना जाना बना रहता है। वहीं बौद्ध तपोस्थली श्रावस्ती में जेतवन के किनारे स्थित अंगुलिमाल गुफा के बारे में यह मान्यता है कि यह डाकू अंगुलिमाल का क्षेत्र था। जिसके अत्याचार से सारे लोग व्यथित थे। जिसे बाद में भगवान बुद्ध ने डाकू से साधू बना दिया था।

गंध कुटी और सहेट महेट

गंधकुटी भगवान बुद्ध का प्रिय स्थान माना जाता है। यह बौद्ध धर्मावलंबियों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। ऐसी मान्यता है कि बुद्ध के श्रावस्ती आगमन पर सेठ सुदत्त (अनाथ पिंडक) द्वारा इसे निर्मित कराया गया था। यह चंदन की लकड़ी का बना सात मंजिला विहार था। जिसका भगवान बुद्ध आवास के रूप में भी प्रयोग करते थे। यहीं वह शिष्यों को उपदेश देते थे। चंदन निर्मित होने के कारण इस स्थान से आने वाली विशेष खुशबू के कारण ही इसे गंधकुटी नाम दिया गया। वहीं सहेट व महेट श्रावस्ती का दो प्रमुख नगर व व्यापारिक केंद्र हुआ करता था। बुद्धकालीन भारत के 6 महानगरों, चम्पा, राजगृह, श्रावस्ती, साकेत, कोशाम्बी और वाराणसी में से यह एक था। इसे मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के पुत्र लव की राजधानी होने का भी गौरव प्राप्त है।

आनंद बोधि और संघाराम बुद्ध विहार

बौद्ध तपोस्थली श्रावस्ती स्थित आनंद बोधि के बारे में यह मान्यता है कि भगवान बुद्ध को बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। इसके बाद उनके शिष्य आनंद द्वारा बोधि नामक पौध को सारनाथ से लाकर तपोस्थली में स्थापित किया गया था। जिसके नीचे बैठकर बुद्ध लोगों को उपदेश देते थे। यहां आने वाले अनुयायी इसकी पत्ती अपने साथ ले जाते हैं। वहीं संघाराम बुद्ध विहार सम्राट अशोक के पुत्र राहुल द्वारा स्थापित कराया गया नगर था। जहां बुद्ध अपने शिष्यों के संग निवास करते थे। जो बाद में संघाराम बुद्ध विहार के नाम से विश्व प्रसिद्ध हुआ।

जेतवन और ओंड़ाझार

श्रावस्ती नगर में जेतवन नाम का एक उद्यान था। जिसे वहां के जेत नामक राजकुमार ने आरोपित किया था। इस नगर का अनाथपिंडक नामक सेठ जो बुद्ध का प्रिय शिष्य था, इस उद्यान के शान्तिमय वातावरण से बड़ा प्रभावित था। उसने इसे खऱीद कर बौद्ध संघ को दान कर दिया था। वहीं ओंड़ाझार एक पर्वत माला जैसा टीला था। जिस पर वर्षाऋतु में बाढ़ आदि के दौरान बौद्ध भिक्षु साधना व ध्यान करते थे। यह तपोस्थली के पूर्वी छोर पर स्थित है। जो बलरामपुर जिले की सीमा में पड़ता है।

डेन महामंकोल और विश्व शांति घंटा पार्क

डेन महामंकोल छाय धम्मा डिवोटेड लैंड वल्र्ड पीसफुल सेंटर थाईलैंड द्वारा स्थापित ध्यान केंद्र हैं। जहां देश दुनिया से आने वाले अनुयायियों द्वारा ध्यान किया जाता है। इसके ठीक सामने कमल पर विराजमान भगवान गौतम बुद्ध की एक विशालकाय प्रतिमा व स्तूप स्थित है और तपोस्थली में बौद्ध परिपथ स्थापित विश्व शांति घंटा पार्क जापान सरकार द्वारा स्थापित कराया गया था। यहां जापान से लाया गया पांच टन के अष्ट धातु का एक घंटा भी स्थापित किया गया है। जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

सीताद्वार मंदिर और सुहेलदेव वन्य जीव प्रभाग

बौद्ध तपोस्थली से 16 किलोमीटर की दूरी पर बौद्ध परिपथ के निकट स्थित सीताद्वार मंदिर व उसके बगल सैकड़ों एकड़ में फैली सीताद्वार झील आस्था व पर्यटन का केंद्र है। ऐसी मान्यता है कि श्रीराम द्वारा त्यागे जाने के बाद माता सीता यहीं बाल्मीकि आश्रम में रुकी थी। इसे लवकुश की जन्मस्थली भी मना जाता है। यहां बाल्मीकि आश्रम व हनुमान टीला भी मौजूद है। हिमालय पर्वत के शिवालिक पर्वत मालाओं से सटे सोहेलवा जंगल को सुहेलदेव वन्य जीव प्रभाग का गौरव प्राप्त है। इसे बंगाल टाइगर के लिए संरक्षित किया गया है।

विभूतिनाथ मंदिर और स्वर्ण प्रस्तरी आश्रम

श्रावस्ती के जिला मुख्यालय भिनगा से 30 किलोमीटर की दूरी पर विभूतिनाथ मंदिर स्थापित है। जहां पांडवों द्वारा अज्ञातवास के दौरान एक शिवलिंग की स्थापना की गई थी। यहां पर हर साल कजरी तीज पर लाखों श्रद्धालु जलाभिषेक करने के लिए आते हैं। और हर तेरस पर भी हजारों लोग जलाभिषेक के लिए दूर दराज से आते हैं। श्रावस्ती जिले के सिरसिया क्षेत्र के सोहेलवा जंगल के मध्य स्थित स्वर्ण प्रस्तरी आश्रम आस्था के साथ ही अपनी गोद में प्राकृतिक छटा व प्राचीन सभ्यता को संजोए हुए है। यहां भी हर साल हजारों लोग आते हैं।

यह है आवागमन की सुविधा

लखनऊ से श्रावस्ती आने के लिए बस से बाराबंकी वाया बहराइच होते हुए आया जा सकता है। लोग गोंडा से बलरामपुर होकर भी आ सकते हैं। ट्रेन से आने वालों को लखनऊ अथवा गोंडा से बस से आना होगा। या फिर लखनऊ से गोंडा व बलरामपुर तक ट्रेन से इसके बाद बस या निजी साधन से श्रावस्ती आ सकते हैं। श्रावस्ती में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा का भी कार्य लगभग पूरा हो चुका है। जल्द ही यहां से 20 सीटर विमानों का संचालन शुरू हो जाएगा।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो