
Intoxication weakens the nervous system and the nervous system, which
सीधी। कोरोना वायरस के संक्रमण के खिलाफ देश जंग लड़ रहा है। जिस तरह देशवासी मिलकर यह जंग लड़ रहे हैं, उससे यह निश्चित है कोरोनो हारेगा और देश जीतेगा। ऐसे में यदि हम संकल्प लें तो एक और जंग जीत सकते हैं नशा से। लॉकडाउन के कारण व्यसन और नशे में फंसे लोगों के लिए यह एक अच्छा अवसर है। सरकारों ने शराब, भांग, गांजा, तंबाकू-पान, गुटखा-सिंगरेट की दुकानें बंद कर दी हैं। ऐसे में बस एक संकल्प लें और व्यसन के संक्रमण को सदा के लिए आइसोलेशन में भेंज दें।
स्थानीय शहर के अनुपम होम्योपैथी क्लीनिक के संचालक डॉ.शिशिर मिश्रा कहते हैं कि वर्तमान समय में नशा व्यक्ति, परिवार और समाज के लिए बहुत बड़ी समस्या एवं चुनौती है। कोई भी व्यक्ति नशे की गिरफ्त में कब और कैसे आता है उसकी शुरुआत बहुत ही सरल और साधारण तरीके से होती है, लेकिन धीरे-धीरे उसका विकराल रूप इंसान को शारीरिक, मानसिक और आर्थिक यातना और प्रताडऩा के गंभीर अंधकार में पहुंचा देता है। इस धरती में विभिन्न तरह के नशे की सामग्री पाई जाती हंै कुछ प्राकृतिक होती हंै कुछ कृत्रिम, जिनमें से गुटखा पाउच, बीड़ी, सिगरेट, शराब, गांजा, भांग, चरस, हेरोइन और आजकल इंट्रावेनस ड्रग्स और केमिकल्स प्रमुख हैं। गुटखा पाउच से मुख के कैंसर जैसी भयावह बीमारी होती है, वहीं शराब से लीवर कंैसर और सिरोसिस जैसी खतरनाक बीमारी होती है। वहीं गांजा और भांग तंत्रिका तंत्र और स्नायु मंडल को जकड़ कर कमजोर कर देता है, जिससे इंसान पागल तक हो जाता है। आजकल नसों में लगने वाले इंजेक्शन और कोरेक्स का बोलबाला है, जिसमें खासतौर पर आज के युवा ज्यादा सम्मिलित हैं, एक बार किसी भी नसे की लत लगने पर मनुष्य उसके चंगुल से निकल नहीं पाता है। चाह कर भी वह अपने मन को स्थिर नहीं रख पाता और अपनी पसंद का नशा करता जाता है, उसका कारण यह है कि उपरोक्त सभी नशे की सामग्री बहुत ही सरलता और आसानी से उपलब्ध है जिनमें से कुछ नशे की सामग्री तो सरकारें लाइसेंस देकर खुद बेचती हैं यह समाज के लिए बहुत ही चिंतन का विषय है। जब कोई भी सरकार खुद नशे की सामग्री खुल्लम-खुल्ला बेचती है और वह उसके सरकारी एजेंडे का हिस्सा होता है एक तरफ विज्ञापन किया जाता है की शराब पीना खतरनाक है और कैंसर होता है, गुटखा खाने से मुख का कैंसर होता है और दूसरी तरफ वही सरकारें इनका उत्पादन और बिक्री करवाती हंै, साथ ही शराब बैठकर पीने का भी लाईसेंस देती हैं। देश की 65 प्रतिशत आबादी 35 साल से नीचे की है, जिनमे से अधिकतर लोग किसी न किसी नशे की चपेट में हैं। जब पूरा देश लॉकडाउन में है तो और जरूरी हो जाता है की व्यक्ति, परिवार, समाज और सरकार को जताया जाए और समझाया जाए की नशा कैसे नाश का कारण बन रहा है। मानव शरीर में कोई भी अच्छी आदत यह बुरी आदत बनने में 3 हफ्ते का समय लगता है इस 3 हफ्ते में दिमाग किसी भी प्रकार की गतिविधि को अनुकूलन के माध्यम से अपने अनुसार बना लेता है, इसलिए यह लॉकडाउन एक स्वर्णिम अवसर है उनके लिए जो नशे का शिकार हैं, उसके गिरफ्त में है और छोडऩा चाहते हैं, वे लोग आज से ही संकल्प लें और सोच ले की लॉक डाउन खुलने के बाद भी किसी भी सूरत में, किसी भी हालत में नशा नहीं करेंगे। यह संकल्प किसी भी व्यक्त को शारीरिक मानसिक और आर्थिक रूप से आबाद कर सकता है और इसके माध्यम से परिवार खुशहाल हो सकता है। एक होम्योपैथी का चिकित्सक होने के नाते मैं आम जनमानस और उन भाइयों से निवेदन और सलाह दोनों देना चाहता हूं की एक संकल्प लें की इस लॉकडाउन के बाद नशे का सेवन नहीं करेंगे और जरूरत पडऩे पर होम्योपैथी की सल्फर 200 और अन्य बहुत सारी दवाईयां किसी भी होम्योपैथिक चिकित्सक के परामर्श से लेकर अपने मन को और मजबूत बना सकते हैं और नशा छोडऩे में मदद ले सकते हैं।
Published on:
08 Apr 2020 08:31 pm
बड़ी खबरें
View Allसीधी
मध्य प्रदेश न्यूज़
ट्रेंडिंग
