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राजस्थान का एक ऐसा गांव जहां हर घर से निकलता है बास्केटबॉल खिलाड़ी, जुनून ऐसा कि छोड़ आया सेना की नौकरी…

राजस्थान का एक ऐसा गांव जहां हर घर से निकलता है बास्केटबॉल खिलाड़ी, जुनून ऐसा कि छोड़ आया सेना की नौकरी...

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अजय शर्मा, सीकर.

जिले के दुजोद गांव की माटी में रचता-बसता है बास्केटबॉल। यहां के हर घर में बास्केटबॉल का खिलाड़ी मौजूद है। गांव में 110 से ज्यादा राष्ट्रीय, 15 अंतरराष्ट्रीय व 700 से ज्यादा जिलास्तरीय खिलाड़ी हैं। खास बात यह है कि खेलों के दम पर गांव के 65 से अधिक युवाओं ने सरकारी नौकरी हासिल की है। लगभग 60 वर्ष से चल रहा खेलों का यह जुनून अब भी यहां के युवाओं में है। गांव के मैदान पर सुबह-शाम का नजारा किसी खेल गांव से कम नहीं होता है। प्लाटून कमाण्डेंट से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वाले गिरवर सिंह ने 1960 के दशक में यहां इस खेल की शुरुआत की थी। इसके बाद ग्रामीणों ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। सिंह ने परिवार के साथ गांव के हर बच्चे को खेल से जोड़ा।


जुनून ऐसा कि छोड़ आया फौज की नौकरी


गांव की युवा पीढ़ी में खेल जज्बा भरने के लिए एक युवा फौज की नौकरी छोड़कर युवाओं को तराशने में जुटा है। गांव के विक्रम सिंह को खेल कोटे से सेना में नौकरी मिली थी। गांव में फिलहाल बास्केटबॉल का कोई कोच नहीं है। यह पीड़ा उनको सालती थी। आखिरकार, उन्होंने तय कर लिया कि गांव के युवाओं को अब खुद कोचिंग देंगे।वे युवाओं को सुबह-शाम छह घंटे अभ्यास कराते हैं।


जब मिट्टी के आंगन में खेलते थे...


सीकर जिले के पहले बास्केटबॉल खिलाड़ी गिरवर की आंखों में आज भी अतीत ताजा है। वह बताते हैं कि 1960 के दशक में उन्होंने करियर की शुरुआत की थी। उस जमाने में मिट्टी के कच्चे आंगन में खेलते थे। उनका कहना है कि गांव की मिट्टी में इतनी ताकत है कि हर घर में खिलाड़ी है। लेकिन सरकारी प्रयास नहीं होने के कारण उम्मीदों के आसमान को नहीं छू पा रहे हैं।


गांव में बने खेल एकेडमी


मोहम्मद इस्लाम ने बताया कि ओलम्पिक में भी गांव का एक लाल पहुंचा। अब भी यहां के खिलाडिय़ों के बिना प्रदेश की टीम नहीं बनती है। इसके बाद भी सरकार यहां के खिलाडिय़ों को सुविधा देने में पीछे हट रही है। उनका कहना है कि सरकार को दुजोद गांव में हॉस्टल के साथ बास्केटबॉल एकेडमी बनानी चाहिए।


भामाशाहों ने थाम रखी है डोर


गांव के प्रवीण मिश्रा का कहना है कि गांव में दो कोर्ट है। गांव के छात्र व छात्राएं सुबह-शाम अभ्यास करते हैं। एक कोर्ट की अभी मरम्मत हो रही है। शाम के समय तो गांव का नजारा ही पूरी तरह बदल जाता है, माहौल किसी मेले से कम नहीं होता। गांव में दो कोर्ट और होने चाहिए। कई बार बॉल का खर्च भी भामाशाह खुद उठाते हैं।