
सीकर.
शिक्षा के नगरी शेखावाटी में विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा के लिए शेखावाटी विश्वविद्यालय सिर्फ खानापूर्ति का काम कर रहा है। विवि में चल रहे विवादों के कारण विद्यार्थियों को काफी नुकसान उठाना पड़ा रहा है। जमीन विवाद, लॉग बुक का भ्रष्टाचार, भवन का भ्रष्टाचार जैसे अनेक विवादों ने विवि के विकास पर ब्रेक लगा दिया।
इन विवादों ने रोका विकास
जमीन विवाद
चारदीवारी के निर्माण कार्य के भुगतान में भी नियम कायदे ताक पर रख दिए। कटराथल जमीन पर चार दीवारी के निर्माण कार्य में इंडियन रोड कांग्रेस के नियमों के मुताबिक स्टेट हाइवे से 40 मीटर दूर होना चाहिए। लेकिन राविल (राजस्थान आवास विकास एडं इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड) की ओर से 14 मीटर दूरी पर ही बना दी। मामले में अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। जिसके चलते आज तक उस निर्माण कार्य को पूरा नहीं किया जा सका है।
कुलपति- रजिस्ट्रार की रार
कुलपति और रजिस्ट्रार की रार लंबे समय तक चर्चा में रही। विवि प्रगति को लेकर उच्च शिक्षा मंत्री की बैठक में ही कुलपति ने विवि की गति धीमी होने का आरोप का रजिस्ट्रार पर मढ़ दिया। बोली, सालभर में केवल 26 दिन ही विवि आई है। मामले में रजिस्ट्रार का कहना था कि नहीं आती हूं, तो तबादला करवा दो।
लॉग बुक का भ्रष्टाचार
कुलपति के वाहन की लॉक बुक में दूरी बढ़ाकर भुगतान में करने का घपला भी सामने आया। कुलपति पर वाहन दुरूपयोग का आरोप लगा। वीसी की बेटी द्वारा कुलपति की सरकारी गाड़ी से सीकर-जयपुर और लक्ष्मणगढ़ स्थित मोदी विवि जाने की बात सामने आई। खुद रजिस्ट्रार ने नोटशीट पर उसका जिक्र किया था। इसकी पुष्टि होकर जांच भी हुई। कुलपति के वाहन पर लाल बत्ती लगाए जाने तथा ज्यादा वेतन को लेकर भी विवाद चला।
कॉलेजों से संबद्धता का विवाद
विवि व निजी कॉलेजों के बीच एफिलेशन को लेकर चल रही अनबन के चलते लाखों विद्यार्थियों का भविष्य खतरे में है। विवि नियमानुसार बिना निरीक्षण के एफिलेशन दे नहीं सकता है। वहीं दूसरी और निजी कॉलेज संचालक बिना निरीक्षण के एफिलेएशन करवाना चाहते है।
भवन का ‘भ्रष्टाचार’
दो साल पहले तत्कालिन कुलपति ने बिना बिल्डिंग कमेटी गठन के दो करोड़ रुपए काम स्वीकृत हुए। जिनमें से एक करोड़ रुपए का पेमेंट राविल (रूडसीको) कंपनी को कर दिया गया। लेकिन धरातल पर कुछ भी काम नजर नहीं आया। यह फर्जीवाड़ा भारत सरकार की ओडिट रिपोर्ट में हुआ था।
लाल बत्ती विवाद
कुलपति के वाहन पर लाल बत्ती लगाए जाने को लेकर भी विवाद चला। विवि प्रशासन के ही कुछ कर्मचारी इसे नियम विरूद्ध मान रहे थे। इस मामले में भी उच्च शिक्षा विभाग से मार्ग दर्शन मांग गया।
नाम को लेकर विवाद
शेखावाटी विवि का नाम ही विवादों में रहा। घोषणा के समय इसका नाम शेखावाटी विवि रखा गया। लेकिन प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद 2014 में इसे बदल कर पंडित दीनदयाल उपाध्याय ओर जोड़ दिया गया। संगठनों ने इसका विरोध किया।
इन कमियों के साथ चल रहा विवि
विवि प्रशासन की ढिलाई के चलते ही आज तक शोध बोर्ड का गठन तक नहीं हुआ। किसी भी विषय में शोध कार्य शुरू नहीं हुआ है। विवि के अधीन कुल 489 कॉलेज संघटक है। जिनमें से केवल 100 कॉलेजों को ही संबद्धता प्राप्त हुई है। ना ही विवि को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग नई दिल्ली से किसी प्रकार का अनुदान जारी हुआ है। विवि को गति देने के लिए कर्मचारी पहली जरूरत थी। लेकिन इसमें भी ढिलाई भर्ती गई है। आज रजिस्ट्रार, डिप्टी रजिस्ट्रार, परीक्षा नियंत्रक, दो सहायक कुलसचिव, सहायक लेखा अधिकारी द्वितीय, विधि अधिकारी, एक निजी सहायक, दो अनुभाग अधिकारी, बाबू, एलडिसी व यूडीसी सहित कई महत्वपूर्ण पद भी खाली चल रहे है। ऐसे में विवि प्रशासन किस तरीक से कार्य कर रहा है, यह भी सोचने वाला विषय है।
समय पर नहीं होती बोम की बैठक
विवि की बोम की बैठक तीन महिने में एक बार होना जरूरी है। लेकिन विवि यूजीसी के इस नियम को भी भूल चुका है। जिसके चलते कई अहम काम अटके हुए है। कर्मचारी भर्ती से लेकर शोध बोर्ड के गठन सहित कई मामले अटके है।
विवि के लिए कुल 53 स्वीकृत पद हैं। इनमें से अशैक्षिणिक के 23 पदों पर भर्ती की अनुमति मिली हुई है। इसके चलते रजिस्ट्रार, डिप्टी रजिस्ट्रार, परीक्षा नियंत्रक, दो सहायक कुलसचिव, सहायक लेखा अधिकारी द्वितीय, विधि अधिकारी, एक निजी सहायक, दो अनुभाग अधिकारी, बाबू, एलडिसी व यूडीसी सहित कई महत्वपूर्ण पद भी खाली चल रहे है। ऐसे में विवि प्रशासन किस तरीक से कार्य कर रहा है, यह भी सोचने वाला विषय है।
विवि में दो साल पहले रिसर्च सैक्शन का प्रस्ताव पास हुआ था। लेकिन आज तक शोध बोर्ड का गठन तक नहीं हुआ। इस मामले में विवि. का कहना है कि प्रबंध मंडल द्वारा पारीत स्टेट्यूटर्स और ओडिनेश राज्य सरकार के पास अनुमति के लिए भेजा है।
Published on:
04 Apr 2018 08:14 am
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