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ग्रामीणों के खर्च पर चला देश का एकमात्र रेलवे स्टेशन, अब 20 करोड़ की लागत से हुआ हाईटेक

locationसीकरPublished: Sep 23, 2021 03:24:32 pm

देवेंद्र शर्मा ‘शास्त्री’/सचिन माथुरसीकर. ग्रामीणों की सामूहिक सहभागिता, समर्पण व संघर्ष से सफलता के ‘स्टेशन’ तक पहुंचने की ये दास्तां पूरे देश के लिए एक नजीर है।

ग्रामीणों के खर्च पर चला देश का एकमात्र रेलवे स्टेशन, अब 20 करोड़ की लागत से हुआ हाईटेक

ग्रामीणों के खर्च पर चला देश का एकमात्र रेलवे स्टेशन, अब 20 करोड़ की लागत से हुआ हाईटेक

सीकर. ग्रामीणों की सामूहिक सहभागिता, समर्पण व संघर्ष से सफलता के ‘स्टेशन’ तक पहुंचने की ये दास्तां पूरे देश के लिए एक नजीर है। सीकर-चूरू मार्ग स्थित छोटे से रसीदपुरा खोरी रेलवे स्टेशन (Rashidpura khori railwaystation) को 2004 में बंद करने पर ग्रामीणों ने पहले तो रेलवे की शर्त पर लाखों रुपए खर्च कर अपने स्तर पर पांच साल तक संचालित किया। फिर नवंबर 2015 में आमान परिवर्तन में जब दोबारा स्टेशन बंद होने का खतरा मंडराया तो ग्रामीणों ने फिर उसे बचाने की मुहिम शुरू की। लंबे संघर्ष के बाद आखिरकार रेलवे को फिर से स्टेशन को हरी झंडी देनी पड़ी। अब यही स्टेशन करीब 20 करोड़ की लागत से हाईटेक होकर 9 कर्मचारियों सहित इसी महीने शुरू होने जा रहा है।

मिसाल : रेलवे ने आय की शर्त रखी तो ग्रामीणों ने चलाया स्टेशन
रसीदपुरा खोरी स्टेशन देश का एकमात्र ऐसा स्टेशन है, जिसे ग्रामीण अपने स्तर पर संचालित कर चुके हैं। दरअसल 1942 में बने इस स्टेशन को कम आय का हवाला देकर रेलवे ने 2004 में बंद कर दिया था। फिर से शुरू करने के लिए ग्रामीणों ने जंगी मुहिम शुरू की। आखिरकार रेलवे ने 2009 में एक शर्त के साथ रेलवे स्टेशन अस्थाई तौर पर शुरू किया। शर्त थी कि ग्रामीण अपने स्तर पर स्टेशन का संचालन कर रेलवे को 40 हजार रुपए की मासिक आय देंगे। जिसे स्वीकार करते हुए ग्रामीणों ने करीब पांच साल तक स्टेशन को लाखों रुपए खर्च कर अपने स्तर पर संचालित किया।


ग्रामीणों के संघर्ष की कहानी : घर-घर किया संपर्क, चिपकाए टाइम-टेबल, दिए ज्ञापन

स्टेशन को बचाने की मुहिम में शामिल रहे प्रधानाचार्य प्रताप सिंह ने बताया कि रेलवे की शर्त पर गांव की एक कमेटी बनाई गई। जिसमें किसी का काम घर-घर जाकर रेलवे का सफर करने के लिए लोगों को प्रेरित करना था, तो कोई रेल का टाइम टेबल दीवारों पर चिपकाता। गांव के युवक महेन्द्र सिंह को सीकर से टिकट लाकर स्टेशन पर बेचने का जिम्मा सौंपा गया। जो एक पेड़ के नीचे लकड़ी के बॉक्स में टिकट रखकर बेचता। टिकट का लक्ष्य पूरा करने के लिए ग्रामीण रेल से ज्यादा यात्रा करने लगे। मासिक पास रखने वाले ग्रामीण भी टिकट लेकर सफर करते। बे-टिकट यात्रियों पर नजर रखने के लिए एक शख्स अलग से नियुक्त किया गया। यात्रियों की सुविधा के लिए सफाई, पानी सहित अन्य सुविधाएं भी ग्रामीणों ने अपने स्तर पर विकसित की। इसके लिए पांच लाख रुपए का चंदा भी आसपास के गांवों से किया गया। प्रयास कर नई गाडिय़ों का ठहराव भी करवाया। इस तरह लक्ष्य से भी ज्यादा आय होने पर रेलवे ने स्टेशन को स्थाई रूप से शुरू करने की अनुमति दे दी।

यादगार : नहीं टूटने दिया पुराना स्टेशन

रसीदपुरा खोरी स्टेशन का नया भवन अब बनकर पूरी तरह तैयार हो चुका है। लेकिन, ग्रामीणों ने यादगार के तौर पर नजदीक स्थित पुराने भवन को नहीं तोडऩे दिया। इसे ग्रामीणों की एकता व सहभागिता के यादगार के तौर पर अब भी जिंदा रखा गया है।

असर : प्याज कारोबार को लगेंगे पंख, बढ़ेगा रोजगार
स्टेशन से रसीदपुरा के अलावा आसपास के आठ गांवों में रोजगार बढ़ेगा। प्याज उत्पादन का बड़ा क्षेत्र व मंडी होने के कारण यहां के प्याज का कारोबार अब देशभर में हो सकेगा। आसपास के इलाकों में भी व्यवसायिक गतिविधियां बढ़ेगी। भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए रेलवे ने निजी जमीन का अधिग्रहण कर माल ढुलाई के लिए बड़े रैंप भी बनाए हैं।


अत्याधुनिक : सेटेलाइट सिस्टम से कंट्रोल होगी रेल, 9 का होगा स्टाफ

रेलवे ने करीब 20 करोड़ की लागत से रसीदपुरा खोरी का हाईटेक स्टेशन तैयार किया है। जो पूरी तरह सेटलाइट सिस्टम पर आधारित होगा। रेल आने जाने की सटीक सूचना सहित यह सिस्टम रेल हादसों की आशंका को भी खत्म करेगा। ईआई व सर्वर रूम सहित तमाम अत्याधुनिक सुविधाओं वाले स्टेशन पर स्टेशन मास्टर सहित 9 लोगों का स्टाफ भी होगा। अलग से क्वार्टर भी बनाए गए हैं।

इन्होंने संभाली कमान : गांव से लेकर अधिकारियों तक काटे चक्कर
रेलवे स्टेशन को बचाने में गांव के सेवानिवृत शिक्षक हनुमान सिंह, शिवपाल सिंह जांगिड़, शिव प्रसाद कुमावत, हरदयाल सिंह बुरड़क, मदन बुरडक, कल्याण ङ्क्षसह शेखावत, भागीरथ जांगिड़, केशर सिंह, प्रताप सिंह, देवी सिंह, रामसिंह चौधरी, महादेव जांगिड़, सुरजाराम बुरडक, सिद्धार्थ, जितेन्द्र, सुभाष चंद्र व महावीर पुरोहित सहित कई ग्रामीणों की अहम भूमिका रही। जिन्होंने गंावों में बैठकें कर लोगों को जागरुक करने, रेलवे स्टेशन की व्यवस्था संभालने तथा जनप्रतिनिधियों से लेकर रेलवे के अधिकारियों तक के सेंकड़ों चक्कर काट स्टेशन के संघर्ष को सफलता तक पहुंचाया।

अब क्रोसिंग स्टेशन : यात्रियों के समय की होगी बचत
रेलवे ने अब यहां 20 करोड़ से अधिक की राशि खर्च कर क्रोसिंग स्टेशन बना दिया है। स्टेशन का निर्माण कार्य अंतिम चरण में है। सीकर-चूरू मार्ग पर सीकर के बाद लक्ष्मणगढ़ ही क्रोसिंग स्टेशन है। जहां पर एक गाड़ी को रोककर दूसरी गाड़ी को निकाला जा सकता है। माल गाड़ी आने पर कई बार सीकर और लक्ष्मणगढ़ दोनों स्टेशनों पर गाडिय़ों को खड़ा करना पड़ता है। इससे यात्रियों के समय की बर्बादी होती। मोटे अनुमान के अनुसार दोनों स्टेशनों पर गाड़ी आने पर 50 मिनट का समय अलग से लगता। लेकिन अब रसीदपुरा खोरी स्टेशन के क्रोसिंग स्टेशन बन जाने से समय की बचत होगी।

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