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दर्द भरी दास्तां : यहां मां और बच्चों के साथ कुदरत ने किया क्रूर मजाक, हे भगवान… ऐसा ना हो किसी के साथ

मां... कहने को यह लफ्ज बहुत छोटा है, पर इस लफ्ज की गहराई को दुनिया में कोई नाप नहीं सकता...।

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helpless family

योगेश पारीक/प्रमोद सुंडा
फतेहपुर. मां... कहने को यह लफ्ज बहुत छोटा है, पर इस लफ्ज की गहराई को दुनिया में कोई नाप नहीं सकता...। हम दुनियां के लिए बेशक कुछ भी नहीं हैं, पर हर इन्सान अपनी मां के लिए सब कुछ होता है....। एक मां, जो अपनी जिन्दगी, अपने घर, अपने बच्चे, अपने परिवार के लिए समर्पित कर दे और बदले में सिवाय प्रेम के कुछ भी नहीं मांगे वो सिर्फ एक मां हो सकती है...। लेकिन सीकर जिले की फतेहपुर तहसील के रोलसाहबसर गांव में मां व बच्चों के वात्सल्य के बीच कुदरत बहुत बड़ी बाधा बन गई है। बाधा ऐसी कि मां अपने जिगर के टुकडों से अपने दिल की बात नहीं कर सकती, तो बच्चे अपनी मां को देख भी नहीं सकते। इस परिवार का दर्द देखकर हर किसी की आंखें नम हो रही है। हालात ऐसे हो रहे हैं कि परिवार दो जून की रोटी को भी समय पर नसीब नहीं हो रही है। परिवार के सदस्यों की माली हालत ऐसी है कि चाहकर भी इस बेरहम मर्ज की दवा का इंतजाम नहीं कर पा रहे हैं। रोलसाहबसर गांव के बाबूलाल मेघवाल की पत्नी गणपति जन्म से ही गूंगी व बहरी है। इनके तीन संतान हैं। इनमे दो बेटियां व एक बेटा है। बेटी लक्ष्मी (20) को एक आंख से हल्का हल्का दिखाई देता है व बेटे मुकेश (10) व बेटी निकिता (3) को बिल्कुल दिखाई नहीं देता है। ना ही तो बच्चे पढ़ लिख सकते हैं और ना ही मां कुछ समझा सकती है। बाबूलाल का परिवार गरीब है। वह मेहनत मजदूरी कर जैसे तैसे घर चला रहा है, लेकिन कुदरत की मार के आगे बेबस है। बाबूलाल मेघवाल ने कभी सोचा नहीं था कि नियति उसके साथ इतना क्रूर मजाक करेगी। पिता होने का सुख तो देगी लेकिन संतान से आंखे छीन लेगी। ना संतान सही है ना पत्नी। ऐसे में उसके पास भगवान को कोसने के सिवाय और कोई चारा नहीं है। बाबूलाल का कहना है कि न जाने भगवान ने उसे किस पाप की सजा दी है।

भगवान किसी को ना दे ऐसा दर्द
कुदरत का इससे बड़ा क्रूर मजाक क्या होगा कि तीन तीन संतान होने के बावजूद मां अपने बच्चों से न लाड़ दुलार कर पा रही है। तीन में से दो संतान ने आज तक मां बाप का चेहरा तक नहीं देखा और तो ओर मां की आवाज तक नहीं सुनी। मां और बच्चों में बड़ा स्नेह होता है, लेकिन यह स्नेह सिर्फ हृदय तक सिमटा हुआ रह गया है।

बड़ी बेटी करती मध्यस्थता
बाबूलाल के परिवार में पांच सदस्य हैं। इनमें बड़ी बेटी लक्ष्मी को एक आंख से हल्का सा दिखाई देता है। ऐसे में सबके बीच सेतु का कार्य करती है। वह मां के इशारों को समझ कर अपने छोटे भाई व बहन को बताती है। भाई व बहन के संदेश को सुनकर मां को इशारों में बताती है। पिता बाहर रहते हैं तो घर पर छोटे भाई व बहन का ख्याल रखती है। पूजा चौथी क्लास तक पढ़ी हुई है। शादी के लायक होने के बावजूद भी परिवार शादी नहीं कर पा रहा है, क्योंकि उनको डर यह है कि फिर घर पर इनको कौन संभालेगा।

बंद पड़ी हैं सरकारी तंत्र की आंखें
परिवार पर कुदरत की तो मार है ही लेकिन सरकारी तंत्र का रवैया भी उस पर मरहम लगाने का काम नहीं कर रहा। बच्चों को दिखता नहीं है, मां बोल नहीं सकती, लेकिन सरकारी तंत्र की आंखें भी इतनी कमजोर हो गई कि उन्हें कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। ना मां का दर्द ना ही मासूमों की पीड़ा।