
आजादी के जश्न में घर- घर लगे थे रंगीन पर्दे, हवाई जहाज से गिरे थे पर्चे
सीकर. आज स्वतंत्रता दिवस है। लंबी गुलामी से आजादी का दिन। यूं तो हर देशवासी के लिए ये गर्व का पर्व है। पर उन लोगों के लिए ये बड़े मायनों वाला महापर्व है जिन्होंने दासता का दंश देखने के बाद आजादी की खुली आबोहवा में पहली सांस का अहसास किया था। देश के विभाजन का दर्द भी देखा-सहा। ऐसे ही कुछ लोगों से आज हम आपको रुबरू करवाने जा रहे हैं जो 15 अगस्त 1947 की आजादी के जश्न में शामिल होने के साथ उस दौर की कई खट्टी- मीठी यादें अब भी जहन में जिंदा रखे हुए हैं। पेश हैं आजादी की कहानी, उन्हीं की जुबानी।
1. राव राजा ने पहनी आजादी की निशानी खादी :
स्वतंत्रता काल में मैं आठवीं कक्षा का एसके स्कूल का छात्र था। जिसकी छुट्टी कई बार आजादी की मांग के लिए निकलने वाली प्रभात फेरी व रैली के लिए कर दी जाती थी। जिनमें मैं भी शामिल होता। 14 अगस्त 1947 को जब रेडियो पर आजादी की घोषणा हुई तो सीकर में भी खुशी की लहर दौड़ पड़ी। नगर पालिका ने भी रातोंरात शहर में आजादी का जुलूस व सुभाष चौक में जश्न मनाने का ऐलान कर दिया। जिसके लिए मैं अगले दिन सुबह जल्दी ही तैयार हो गया। हरिजन बस्ती से निकले जुलूस में शामिल होकर मैं सुभाष चौक पहुंचा। जिसका नेतृत्व पालिकाध्यक्ष स्वतंत्रता सेनानी मन्मथ मिश्र व कांग्रेस जिलाध्यक्ष लादूराम जोशी ने किया। जुलूस में भारत माता के साथ जवाहरलाल नेहरु व महात्मा गांधी के नारे लगाते हुए लोग पुरजोश से शामिल हुए। आजादी का उत्साह इतना था कि जवाहर लाल नेहरु का सही नाम नहीं जानने पर भी लोग नेहरु लाल पण्डत के नाम से जोशभरे जयकारे लगा रहे थे। सुभाष चौक लोगों की भीड़ से खचाखच भर गया था। कार्यक्रम में रावराजा कल्याण सिंह भी शामिल हुए। जो खादी के कपड़े पहनकर पहुंचे। खादी को आजादी की निशानी बताते हुए उन्होंने जानबूझकर खादी के कपड़े पहनने का जिक्र भी कार्यक्रम में किया। इसके बाद लादूराम जोशी ने आजादी का पहला ध्वजारोहण किया। जिसके बाद कार्यक्रम में लड्डू भी बांटे गए।
सोमनाथ त्रिहन, पूर्व सभापति, सीकर
2. कुओंं में जहर के डर से रातभर की रखवाली
स्वतंत्रता काल मे मैं 12 वर्ष का था। खादी की टोपी लगाकर आजादी के लिए निकलने वाली प्रभात फेरियों में हिस्सा लेता था। सुभाष चौक में आयोजित आजादी के जश्न में भी टोपी लगाकर रैली के साथ ही पहुंचा। आजादी की खुशी लोगों में देखने लायक थी। लेकिन, विभाजन से देश में शुरू हुए सांप्रदायिक दंगों की आंच की आशंका से लोगों में अनजाना डर भी था। आशंकित हजारों लोग यहां से भी ऊपर तक खचाखच भरी गाडिय़ों में सवार होकर पाकिस्तान जाने लगे। उस पार के भी काफी लोग यहां आए। बिगड़े माहौल में सीकर में कुछेक आगजनी की घटनाएं भी हुई। पर गनीमत से हालात ज्यादा नहीं बिगड़े। इस दौर में एक डर असामाजिक तत्वों द्वारा कुओं में जहर डालने का पैदा हो गया था। ऐसे में जाट छात्रावास में रहते हुए स्टेशन रोड के आसपास के कुओं रात की निगरानी की जिम्मेदारी मेरे सहित चार बच्चों को मिली। जिसमें दो हम हॉस्टल व दो रेलवे कॉलोनी के थे। करीब एक महीने तक दो- दो के समूह में एक दिन छोड़कर एक दिन हमने रातभर जागकर कुओं की हिफाजत की थी। पर कुल मिलाकर सांप्रदायिक ताकतों पर सीकर के सौहार्द की ही जीत हुई।
चैन सिंह आर्य, पिपराली रोड, सीकर
3. खून से लथपथ आई थी ट्रेन, रेलवे स्टेशन पर मौजूद था भारी पुलिस बल
1947 में दसवीं कक्षा में पढ़ रहा था। आजादी के जश्न के साथ हर ओर से दंगों की खबरें आ रही थी। इसी बीच हरियाणा से एक ट्रेन सीकर आने की सूचना मिली। जो सांप्रदायिक दंगों की वजह से खून से लथपथ व लाशों से भरी हुई थी। ट्रेन को हर कोई देखना चाहता था। मैं भी गया। लेकिन, स्टेशन से पहले ही रोक दिया गया। वहंा भारी पुलिस जाब्ता मौजूद था। उस दौरान हिसार में हुए दंगों में भी सीकर के दो युवक फंस गए थे। बाद में जयपुर स्टेट की राजपूताना फौज भेजी गई। जिनकी कार्रवाई के बाद लोग वापस सीकर सुरक्षित लौट सके। सीकर में सुभाष चौक में मना आजादी का जश्न भी अब तक याद है। जिसमें लादूराम जोशी, मन्मथ कुमार मिश्र व बद्रीनारायण सोढाणी जैसे लोगों की अगुआई में भारी भीड़ के बीच तिरंगा फहराया गया।
सुवालाल बडज़ात्या, जाट बाजार, सीकर
4. हवाई जहाज से गिरे थे पर्चे, रंगीन चादरों से सजे थे घर
आजादी के दिन सुभाष चौक के अलावा घर- घर में जश्न का माहौल था। लोगों ने रंगीन चादर व कालीन लगाकर घरों की बालकनी को सजाया था। स्कूलों के अलावा विभिन्न मोहल्लों से नारेबाजी करती हुई रैली सुभाष चौक पहुंची थी। मैं इस्लामिया स्कूल की ओर से निकले मार्च पास्ट में शामिल हुआ था। जहां हजारों के हुजूम में नारेबाजी के बीच ध्वजा रोहण हुआ। इस दौर की हवाई जहाज से पर्चे गिराने की घटना मुझे अच्छी तरह याद है। जब जाट बाजार में एक हवाई जहाज को देख मैं भी दौड़ा था। तब उसमें से कुछ पर्चे फेंके गए। जिसमें जयपुर सरकार ने 20 अक्टूबर 1947 तक बिना लाइसेंस वाले सभी गोला बारुद व अग्नि शस्त्र जमा करवाकर रसीद लेने का संदेश लिखा था। मुख्य सचिव एए खैरी के हुक्म से लिखे इस पर्चे में तय समय तक ऐसा नहीं करने पर बड़ी कार्रवाई की चेतावनी भी दी गई थी। उस दिन का लूटा हुआ वह पर्चा आज भी मेरे पास सुरक्षित मौजूद है।
नूर मोहम्मद पठान, मोहल्ला कुरेशियान, सीकर
5. अंग्रेजों को देख हंसती थी यहां की महिलाएं व बच्चे
96 वर्ष की उम्र होने की वजह से यादें बहुत धुंधली हो गई है। फिर भी इतना याद है कि सुभाष चौक में आजादी का समारोह हुआ था। उस काल में यूं तो अंग्रेजों का सीधा हस्तक्षेप सीकर में नहीं था। फिर भी उनका आना जाना यहां लगा रहता था। वे अपनी मोटर कार में अपनी पत्नियों के साथ आते थे। जो घोड़े व तांगों के अलावा ऊंट गाड़ी की भी सवारी करते। इस दौरान अंग्रेज महिलाओं के परिधान यहां की महिलाओं व बच्चों को अटपटे लगते। उन्हें देखकर वे खूब हंसा करते। आजादी के बाद कुछ जगह माहौल बिगाडऩे की कोशिश भी हुई। लेकिन, छिटपुट घटनाओं के अलावा सीकर शांत ही रहा।
रघुनाथ सैनी, शेखपुरा मोहल्ला, सीकर
Published on:
15 Aug 2021 08:34 am
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