
Jodhpur speaks...वैमनस्य..दंगे मेरी डिक्शनरी में नहीं, अपणायत के आंगन में सौहार्द बसता है...
आशीष जोशी
Jodhpur speaks... जोधपुर. प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले जोधपुर Jodhpur की अपणायत के आंगन में सौहार्द हमेशा से रचा-बसा रहा है। दो दिन इस शहर में जो कुछ हुआ, वह सूर्यनगरी Suryanagari का आचरण बिल्कुल नहीं है। यह घटना यहां की संस्कृति से कत्तई मेल नहींं खाती। उपद्रव ने न केवल इस शहर को हिला दिया, बल्कि शहरवासियों को भी भीतर तक झंकझोर दिया। सुकून और अपणायत न केवल हमारे नगर की पहचान है, बल्कि इससे हमारी अर्थव्यवस्था और जीवनशैली भी जुड़ी है। यहां साम्प्रदायिक सौहार्द की गौरवशाली परम्परा रही है। हम तो ईद और दिवाली साथ-साथ मनाने वाले लोग हैं। शहर की तंग गलियों में जहां उपद्रव की आंच पहुंची, उसका हृदय तो विशाल रहा है। यहां समुदायों में कभी दीवारें नहीं खिंचती। यहां मंडोर में शाही मस्जिद, जीवण माता मंदिर और जैन मंदिर की एक ही दीवार है। जहां आज भी आरती और अजान एक साथ गूंजती है। आडा बाजार खांडा फलसा क्षेत्र में एक मीनार मस्जिद और पीपलेश्वर महादेव मंदिर आमने-सामने स्थित है। यहां भी सुबह-शाम जब अजान और आरती के सुर एक साथ गूंजते हैं तो इस शहर की सद्भाव की संस्कृति से साक्षात् होता है। हाल ही में इसी एक मीनार मस्जिद के पास धींगा गवर का मेला सजा था। मस्जिद के पास सालों से गवर माता का श्रृंगार होता आया है। इतना ही नहीं, दशहरे पर मेहरानगढ़ से निकलने वाले भगवान राम के रथ पर दशकों तक चूंदडीघर परिवार मन से फूल बरसाता रहा है। महावीर जंयती Mahavir Jayanti की शोभायात्रा का सालों से ईदबी मिलादुन्न जलसा समिति Idbi Miladunn Jalsa Committee गर्मजोशी से स्वागत करती आई है। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के इस छोटे से शहर की ये मिसालें दुनिया भर के लिए अजूबा है। गंगा-जमुनी तहजीब शुरू से इस शहर की तासीर रही है। महाराजा उम्मेद सिंह कहते थे, हिंदू-मुस्लिम तो मेरी दो आंखें है। इसी परम्परा को महाराजा हनवंत सिंह ने भी आगे बढ़ाया। भारत-पाक विभाजन के दौरान उन्होंने पाकिस्तान जाते कई मुस्लिम भाइयों को रोक लिया था। प्रेम-सद्भाव की इस रवायत पर कभी आंच नहीं आई। मीठी बोली (पधारो सा, जीमो सा...) और मीठे खानपान के लिए अनूठी पहचान रखने वाले इस शहर के 'डीएनएÓ में साम्प्रदायिक कड़वाहट का अंश मात्र भी नहीं है। वैमनस्य, दंगा...जैसे शब्द इस शहर की 'डिक्शनरी' से नदारद रहे हैं। भले ही यह शहर पत्थरों (सेंडस्टोन) के लिए जाना जाता हो, लेकिन यहां के बाशिंदों के दिल मोम से हैं। तभी तो शाइर भी कह गए- पत्थरों के सब मकां, रेशम से मकीं...। इसके पत्थरों में भी प्राण हैं। एक स्पन्दन है, गर्व भी है। जोधपुर जीवंत और ऊर्जावान के साथ उतना ही संवेदनशील है। वह हर धर्म-सम्प्रदाय की खुशी में खुश होता है, तो गमी में शरीक होकर दुख भी साझा करता है।
Published on:
05 May 2022 01:26 pm
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