करगिल विजय दिवस: 1999 में शहादत के बाद परिजनों ने सम्मान से सहेज रखी है शहीदों की वर्दी
सचिन माथुर / सीकर। सरजमीं के लिए जान देने वाला जवान कभी मरता नहीं बल्कि जन जन के जहन व कण कण में जिंदा होकर अमर हो जाता है। यादों से लेकर यादगारों तक में उसकी यकीनी झलक दिखती है। इन्हीं जज्बातों के साथ वतन पर जान देने वाले वीरों की वर्दी को भी उनक परिजन सर्वोच्च सम्मान के रूप में सहेजते हैं। 1999 के करगिल युद्ध शहीदों के परिवारों ने भी ये परंपरा 26 साल से कायम रखी है। इनमें कुछ परिवार विशेष अवसरों पर वर्दी को धोकर व इस्त्री कर अमर शहीद को अर्पित करते हैं तो कई शहीद के बदन को छू चुकी उस वर्दी को पूजनीय मान जस की तस रखे हुए हैं। पेश है शहीदों की वर्दी पर स्पेशल रिपोर्ट..
करगिल य़ुद्ध में शहीद हुए सिहोट निवासी शहीद गणपतसिंह ढाका की वर्दी विशेष अवसरों पर आज भी धुलकर इस्त्री होती है। भाई महेश ने बताया कि होली, दिवाली सरीखे अवसरों पर शहीद की वर्दी को ससम्मान धोया जाता है। बकौल महेश देश के लिए प्राण देकर अमर हुए भाई गणपत अब भी उनके परिवार के जीवित सदस्यों की तरह ही है।
16 जून 1999 को शहीद हुए पलसाना निवासी सीताराम कुमावत की वर्दी मां गीता देवी व वीरांगना सुनिता देवी का अब भी संबल बनी हुई है। वीर जवान की विरह वेदना से जब भी वे विचलित होती है तो वर्दी से लिपट जाती है। वे कहती हैं कि शहीद के शरीर को छूकर शौर्य का प्रतीक बन चुकी वर्दी परिवार में पवित्र व पूजनीय मानी जाती है।
हरिपुरा निवासी शहीद श्योदाना राम अब भी अपने परिवार में अब भी मुखिया की भूमिका में है। घर में प्रवेश व बाहर जाने के रास्त पर परिवार ने उनकी वर्दी पहने तस्वीर लगा रखी है। जिन्हें परिवार के सदस्य अब भी घर से जाने व आने की सूचना देते हैं। परिवार ने वर्दी को एक संदूक में बड़े सम्मान से सहेज रखा है।
करगिल युद्ध में सीकर जिले के सात जवानों ने शहादत दी थी। इनमें शहीद गणपतसिंह ढाका, सीताराम कुमावत व हरिपुरा निवासी श्योदानाराम के अलावा सेवद बड़ी निवासी शहीद बनवारीलाल बगडिय़ा, रामपुरा निवासी शहीद विनोद नागा, लक्ष्मणगढ़ के रहनावा गांव निवासी दयाचंद जाखड़, सिहोट छोटी निवासी शहीद गणपतसिंह ढाका, रोरू बड़ी निवासी शहीद जगमाल सिंह शामिल थे।