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सीकर. राजस्थान की महिला रेशमा इन दिनों भारत और पाकिस्तान के बीच सुर्खियों में है। वजह यह है कि रेशमा का 25 जुलाई 2018 को पाकिस्तान में निधन हो गया। छह दिन के इंतजार के बाद मंगलवार दोपहर करीब एक बजे उसका शव भारत पहुंच सका है।
रेशमा का शव मुनाबाव के रास्ते से उसके पैतृक गांव बाड़मेर जिले के गांव अगासड़ी लाया गया है। खास बात यह रही कि रेशमा का शव लाने के लिए मुनाबाव बॉर्डर के गेट पहली बार खोले गए। 65 वर्षीय रेशमा 30 जून को बेटे के साथ अपनी दो बहनों से मिलने पाकिस्तान के मथुनचानिया गांव गई थी।
बाड़मेर की इस रेशमा का पाकिस्तान में इंतकाल और फिर शव भारत के सुपुर्द कर मानवता मिसाल पेश किए जाने के मौके पर आइए हम आपको बताते हैं एक और ऐसी ही रेशमा के बारे में जो पैदा तो राजस्थान में हुई, मगर अंतिम सांस पाकिस्तान में ली। ये रेशमा किसी परिचय का मोहताज नहीं। इसकी पहचान के लिए सुभाष घई की फिल्म हीरो का गाना 'लम्बी जुदाई...' ही काफी है। जी, हां हम बात कर रहे हैं कि प्रसिद्ध सिंगर रेशमा की।
चूरू के लोहा गांव में जन्म रेशमा
- दुनियाभर में मशहूर हुए सिंगर रेशमा का जन्म 1947 में राजस्थान के चूरू जिले की रतनगढ़ तहसील के गांव लोहा में बंजारा परिवार में हुआ था।
-भारत विभाजन के समय रेशमा का परिवार लोहा छोड़कर पाकिस्तान जाकर लाहौर में बस गया।
-रेशमा अनपढ़ थी। उनकी शास्त्रीय संगीत की भी कोई शिक्षा नहीं हुई थी, मगर कई प्रसिद्ध गाने रेशमा ने गाए।
-विभाजन के बाद जनवरी 2006 में लाहोर-अमृतसर के बीच पहली बार बस चली तो उसमें 7 रेशमा और उनके परिवारजन थे।
-शुरुआती दिनों रेशमा पाकिस्तान के रेडियो में गाया करती थी।
-दमादम मस्त कलंदर, हाय ओ रब्बा, नहियो लाग्दा दिल मेरा, सुन चरखे दी मि_ी मि_ी कूक आदि प्रसिद्ध गाने हैं।
-पाकिस्तान के रेडिया पर गाकर मशहूर हुई रेशमा की आवाज का सरहदें भी नहीं रोक पाया।
-इसके बाद रेशमा को बॉलीवुड में गाने का अवसर मिला। हीरो फिल्म को गाना लम्बी जुदाई आज भी रेशमा की पहचान बना हुआ है।
-भारत में पैदा हुई रेशमा ने पाकिस्तान के लाहौर में 3 नवम्बर 2013 को अंतिम सांस ली।
मेहदी हसन झुंझुनूं के लूणा गांव में जन्मे
प्रसिद्ध संगीतकार मेहदी हसन की स्टोरी भी रेशमा से मिलती जुलती है। रेशमा की तरह ही मेहदी हसन ने भी संगीत की दुनिया में बुलंदियों को छूआ है। मेहदी हसन राजस्थान के झुंझुनूं जिले के गांव लूणा में 18 जुलाई 1927 जन्मे थे। भारत विभाजन के समय इनका परिवार भी पाकिस्तान चला गया था। 13 जून 2012 को पाकिस्तान के कराची के आगा खान यूनिवर्सिटी अस्पताल में मेहदी हसन ने अंतिम सांस ली।
मेहदी हसन परिचय
-एक गायक के तौर पर मेहदी हसन को पहली बार 1957 में रेडियो पाकिस्तान में बतौर ठुमरी गायक पहचान मिली। उसके बाद मेहदी हसन ने मुड़कर नहीं देखा। फिर तो फिल्मी गीतों और गजलों की दुनिया में वो छा गए। वर्ष 1957 से 1999 तक सक्रिय रहे मेहदी हसन ने गले के कैंसर के बाद गाना लगभग छोड़ दिया था। उनकी अंतिम रिकॉर्डिंग वर्ष 2010 में सरहदें नाम से आई, जिसमें फऱहत शहज़ाद की लिखी "तेरा मिलना बहुत अच्छा लगे है" की रिकार्डिंग उन्होंने 2009 में पाकिस्तान में की और उस ट्रेक को सुनकर 2010 में लता मंगेशकर ने अपनी रिकार्डिंग मुंबई में की। इस तरह यह युगल अलबम तैयार हुआ।
सम्मान और पुरस्कार
मेहदी हसन को गायकी के लिए दुनिया भर में कई सम्मान मिले। हजारों गज़़लें उन्होंने गाईं, जिनके हजारों अलबम दुनिया के अलग-अलग देशों में जारी हुए। पिछले 40 साल से भी अधिक समय से गूंजती शहंशाह-ए-गज़़ल की आवाज की विरासत अब बची हुई है।
Updated on:
01 Aug 2018 12:45 pm
Published on:
31 Jul 2018 05:59 pm
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