
टपकेश्वर में बरसात की बूंदों से होता है महादेव का अभिषेक, महाभारत काल का है शिव मंदिर
Sikar Tapkeshwar Temple. सीकर/टोडा. राजस्थान के सीकर जिले के नीमकाथाना कस्बे का टपकेश्वर र तीर्थ धाम आस्था के साथ लंबे समय से आश्चर्य का केंद्र है। मान्यता के मुताबिक टपकेश्वर का प्राचीन नाम अंचलेश्वर महादेव है। जिसका जिक्र शिवपुराण में भी है। मंदिर की खास बात ये है कि सावन के महीने में जब मेघ बूंदे बरसाते हैं तो गुफा में मौजूद शिवलिंग पर अभिषेक खुद ब खुद होने लगता है। जिसे स्थानीय लोग सावन में शिव का भगवान इन्द्र द्वारा अभिषेक किया जाना कहते हैं। मंदिर के टपकेश्वर नामकरण की वजह भी यही प्राकृतिक विशेषता रही है। टपकेश्वर महादेव की दो पहाडिय़ों के बीच बारिश के दौरान कृष्णावती (कासावती) नदी बहती है, जो पहले बारह मासी थी।
अंतहीन है गुफा, महाभारत से संबंध
यहां एक गुफा को अंतहीन कहा जाता है। जिसमें स्थापित शिव मूर्तियों की प्राचीनता का भी अब तक पता नहीं चल पाया है। कहा जाता है कि यह गुफा और मंदिर महाभारत काल का है। पांडव जब अज्ञात वास में थे तो इस गुफा के रास्ते इस मंदिर में पूजा के लिए आया जाया करते थे। महाभारत के मुताबिक पांड़वों ने अज्ञात वास विराटनगर (बैराठ) में बिताया था। जो अलवर में टपकेश्वर धाम से करीब 60 किमी दूरी पर है। लिहाजा कहा जाता है कि भीम ने इपनी गदा से पहाड़ खोद कर यह गुफा बनाई और उसी के रास्ते वह टपकेश्वर शिव मंदिर में पूजा के लिए आते थे। पांडवों का अज्ञातवास का कुछ समय भी इन पहाडिय़ों में गुजारे जाने की बात भी सामने आती है।
शिवरात्रि व सावन में लगता है रैला
टपकेश्वर महादेव मंदिर में महाशिव रात्रि व सावन के महीने में श्रद्धालुओं का रैला लगता है। दूर दराज से श्रद्धालु टपकेश्वर महादेव के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं। सावन के महीने में मंदिर की नजदीकी प्राकृतिक छटा भी देखने लायक होती है।
Published on:
16 Jul 2022 03:39 pm
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