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सीकर में कटीली झांडिय़ों के बीच तैयार हो रहा खिलाडिय़ों का भविष्य, ये है कड़वा सच

खेल और खिलाडिय़ों को आगे बढ़ाने का दंभ भरने वाली सरकार की हकीकत कुछ और है।

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सीकर. खेल और खिलाडिय़ों को आगे बढ़ाने का दंभ भरने वाली सरकार की हकीकत कुछ और है। खेल स्टेडियम में खिलाडिय़ों को संसाधन और कोच के स्थान पर कंटीली झांडियों में खेलना पड़ रहा है। हालत यह है कि खेल स्टेडियम में ज्यादातर खेलों के कोच नहीं है। ऐसे में युवाओं का खेल में करियर बनाने का सपना भी धूमिल हो रहा है। युवाओं का कहना है कि सरकार को जिला मुख्यालय के एकमात्र स्टेडियम में सुविधाएं बढ़ानी होगी। स्टेडियम में युवाओं के लिए पीने के पानी के भी बेहतर इंतजाम नहीं है। इस कारण युवाओं की टोलियों ने स्टेडियम को छोड अब गली-मोहल्लों को ही मैदान बना लिया है। खिलाडिय़ों का कहना है कि एक तरफ दूसरे राज्य मजबूत खेल नीति के दम पर युवाओं को खेल मैदान में उतार रहे हैं। दूसरी तरफ प्रदेश में सरकार खिलाडिय़ों को पीछे धकेलने का काम कर रही है।


बिना सुविधा शुल्क
खिलाडिय़ों का कहना है कि जिला खेल स्टेडियम में रविवार के अलावा खेलने के लिए 500 रुपए जमा कराने पड़ते है। इसके बाद भी खिलाडिय़ों को कोई सुविधा नहीं दी जा रही है। मैदानों में कंकर व पत्थर होने के कारण कई बार खिलाड़ी चोटिल हो जाते हैं।

जिम्मेदारों की अनदेखी
स्टेडियम को चमकाने के नाम पर भी जिले में खूब राजनीति हो चुकी है। पिछले दस वर्षो में भाजपा व कांग्रेस के नेता खूब विकास के दावे कर चुके हैं। लेकिन हकीकत में कुछ नहीं बदला। इंडोर स्टेडियम भी वर्षों तक ताले में रहा। जब दीमक लगाना शुरू हुआ तो इसके ताले खुले। सांसद, विधायक व जिला कलक्टर सहित अन्य अधिकारी कई बार निरीक्षण कर स्टेडियम की सूरत बदलने का दावा कर चुके हैं।


क्रिकेटरों को टर्फ विकेट नहीं
क्रिकेटरों का कहना है कि हमें शहर में कही खेलने के लिए जगह नहीं मिलती हैं। लंबे समय से खेल स्टेडियम में खेलने के लिए आ रहे हैं। लेकिन यहां भी खेलने के लिए टर्फ विकेट की व्यवस्था नहीं है। खिलाड़ी अपने स्तर पर कटीली झाडिय़ों के बीच विकेट बनाकर खेलने को मजबूर हैं।