
पर्यटकों को लुभाने के साथ पवन ऊर्जा के जरिए भी बनाई पहचान
बिजली संकट के बीच जब पूरे प्रदेश में ब्लैक आऊट होता है तो सीकर का हर्ष अंधेरे को मात देकर बदलाव की नई गाथा गाता है। दरअसल, माउंट आबू के बाद दूसरी सबसे ऊंचाई वाले पर्यटन केन्द्र पर 25 वर्ष पहले पवन ऊर्जा की नई राहें तलाशी थी। इस दौरान पवन ऊर्जा के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों ने नामी क्रिकेटर सचिन तेंडुलकर के सामने निवेश का प्रस्ताव रखा था। सचिन तेंडुलकर ने गांव-ढाणियों के लोगों की समस्या को देखते हुए तत्काल निवेश को हरी झंडी दे दी। अब प्रदेश में दूसरा सर्वाधिक क्षमता वाला पवन ऊर्जा स्टेशन हर्ष पर्वत पर ही है। फिलहाल यहां 12 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है। राज्य सरकार की ओर से अब पवन ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाने के लिए सर्वे भी कराया गया है। यदि इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी मिलती है तो जैसलमेर से भी ज्यादा यहां बिजली का उत्पादन हो सकेगा।
रोचक: 2004 में शुरूआत, अब विंड एनर्जी हब
हर्ष पर्वत पर वर्ष 2004 में पवन चक्कियां लगाई गई हैं। कई फीट ऊंचाई पर लगे पंखे वायु वेग से घूमकर विद्युत का उत्पादन करते हैं। वर्ष 2004 में 7.2 मेगावाट की पवन विद्युत परियोजना शुरू की। यहां पवन को ऊर्जा में परिवर्तित करने वाले टावर लगे हैं। अब फिलहाल 12 मेगावाट से अधिक पवन ऊर्जा बनती है। यहां उत्पन्न होने वाली विद्युत ऊर्जा फिलहाल 132 केवी जीएसएस खूड को आपूर्ति की जाती है। जिसे विद्युत निगम विभिन्न गांव-ढाणियों में सप्लाई करता है।
पहले: अमरीकी संस्था ने सबसे पहले बनाई सड़क
हर्ष पर्वत पर वर्ष 1834 में सार्जेन्ट डीन नामक यात्री आए। उन्होंने कोलकाता में हर्ष पर्वत पर पत्र वाचन किया तो लोग दंग रह गए। पर्वत पर आवागमन के लिए समाजसेवी बद्रीनारायण सोढाणी ने अमरीकी संस्था कासा की सहायता से सडक़ निर्माण कराकर राह खुलवाई गई। हर्ष पर्वत पर जाने के लिए एक पैदल रास्ते (पगडंडी) का निर्माण वर्ष 1050 में तत्कालीन राजा ने कराया था।
अब: 8 करोड़ से बनी सड़क, लव-कुश वाटिका भी
पिछले सात साल से टूटी सड़क की वजह से यहां पर्यटकों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। कांग्रेस के इस कार्यकाल में आठ करोड़ की लागत से नई सड़क का निर्माण कराय गया। इससे पर्यटकों की संख्या कई गुणा बढ़ गई है। अब यहां लव-कुश वाटिका भी भी निर्माण हो गया है।
इतिहास: विश्व की एकमात्र लिंगोद्भव व पंचमुखी मूर्ति
हर्ष मंदिर में लिंगोद्भव की मूर्ति भी प्रतिष्ठित की गई थी। जो विश्व की एकमात्र मूर्ति थी। जो अब अजमेर के संग्रहालय में स्थित है। वहीं, हर्ष पर भगवान शिव की पंचमुखी मूर्ति अब भी विराजित है। जो भी दुर्लभतम मानी जाती है। संभवतया यह प्रदेश की एकमात्र व सबसे प्राचीन शिव प्रतिमा है। पुराणों में जिक्र है कि भगवान विष्णु के मनोहारी किशोर रूप को देखने के लिए भगवान शिव का यह रूप सामने आया था।
मंदिर के प्रकाश ने खींचा औरंगजेब का ध्यान
इतिहासकारों का कहना है कि प्राचीन शिव मंदिर पर एक विशाल दीपक जलता था। जिसे जंजीरों व चरखी के जरिये ऊपर चढ़ाया जाता था। इस दीपक का प्रकाश सैंकड़ों किलोमीटर दूर से देखा जा सकता था। इसी प्रकाश को औरंगजेब ने देखा था। जिसने खंडेला अभियान के दौरान संवत 1739 में इस पर आक्रमण कर खंडित कर दिया था। औरंगजेब के आक्रमण के बाद संवत 1781 में हर्ष पर दूसरा शिव मंदिर बना। जिसे सीकर के शासक राव शिव सिंह ने महात्मा शिवपुरी के आदेश पर बनवाया था। कहा जाता है कि महात्मा शिवपुरी के आशिर्वाद से ही शिव सिंह का जन्म हुआ था।
आंकड़ो में गणित...
3100 फीट ऊंचाई है पर्वत की
1100 साल पुराना हर्षनाथ भैरव व पंचमुखी प्रतिमा वाला शिव मंदिर हैं यहां
1834 में विदेशी यात्री ने किया था हर्ष पर पत्र वाचन
12 मेगावाट से अधिक बिजली उत्पादन
02 लाख से ज्यादा पर्यटक आते हैं सालाना
Published on:
17 Nov 2022 11:34 pm
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