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भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार से जुड़ा यह है विश्व का सबसे पुराना तीर्थ, गंगा के बाद यहां जरूरी है स्नान

सीकर. सीकर- झुंझुनूं की सीमा पर स्थित लोहार्गल का यह दावा अभिभूत करने के साथ आपकी आस्था को अथाह कर देगा।

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सीकर

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Sachin Mathur

Sep 20, 2019

भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार से जुड़ा यह है विश्व का सबसे पुराना तीर्थ, गंगा के बाद यहां जरूरी है स्नान

भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार से जुड़ा यह है विश्व का सबसे पुराना तीर्थ, गंगा के बाद यहां जरूरी है स्नान

सीकर. सीकर- झुंझुनूं की सीमा पर स्थित लोहार्गल का यह दावा अभिभूत करने के साथ आपकी आस्था को अथाह कर देगा। आपने शायद ही यह सुना होगा कि लोहार्गल शेखावाटी का ही नहीं विश्व का सबसे पुराना तीर्थ है। जिसकी वजह भगवान विष्णु के सबसे पहले मत्सय अवतार और भगवान परशुराम के पितृ तर्पण की शास्त्रों में शामिल कथा को माना गया है। जो इसी तीर्थ स्थल से जुड़ी होने का दावा किया जा रहा है। यही नहीं नवग्रहों के प्रधान देवता के रूप में पत्नी के साथ विराजे भगवान सूर्य का मंदिर भी यहां विश्व का ऐसा एकमात्र मंदिर माना गया है। जिसके पास ही माल और केतु पर्वत से सात धाराओं में बहता पानी इस तीर्थ की पवित्रता और मान्यता को ओर ज्यादा बढ़ाता है। गंगा के बाद लोहार्गल में स्नान की यही वजह भी बताई जाती है।

पद्म पुराण में उल्लेख
लोहार्गल की पीठाधीश अवधेशाचार्य महाराज का कहना है कि लोहार्गल में मत्सय अवतार का जिक्र पद्म पुराण में है। जिसमें इस क्षेत्र को ब्रम्हा क्षेत्र बताया गया है। क्षत्रियों का मान मर्दन करने के बाद जब भगवान परशुराम ने प्रायश्चित यज्ञ किया तो भगवान सूर्य को साक्षी बनाने पर यह क्षेत्र सूर्य क्षेत्र कहाया। महाभारत काल के बाद यह क्षेत्र लोहार्गल कहलाने लगा।

भगवान परशुराम ने किया था पितृ तर्पण
प्रायश्चित यज्ञ के साथ भगवान परशुराम द्वारा पितृ तर्पण की बात भी लोहार्गल में ही करने की बात कही जाती रही है। इतिहास की भी कई किताबों में जिक्र है कि भगवान परशुराम ने पिता जमदग्नि का तर्पण कर्म इसी स्थान पर किया था। जिसके बाद उन्हें मोक्ष मिला था। इसी वजह से लोहार्गल क्षेत्र को श्राद्धकर्म के लिए उत्तम तीर्थ माना जाता है।

पांडवों की गली थी बेडिय़ा
किंवदन्ती है कि महाभारत काल में पांडव भी यहां आए थे। जिनके कुंड में स्नान करने पर अस्त्र गल गए थे। लोहे के अस्त्र गलने पर इसका नाम लोहार्गल पड़ा। लोहार्गल का जिक्र स्कन्द और वाराह पुराण में भी बताया गया है। हिमाद्रि संकल्प में लोहार्गल को चतुर्दश गुप्त तीर्थों में से एक बताया गया है। वाराह पुराण में कहा गया है कि लोहे की अर्गला की तरह पर्वतश्रेणी इस तीर्थ को रोके हुए है।

देश के 42 प्रमुख तीर्थों में शामिल
लोहार्गल देशभर के 42 और प्रदेश के उन दो प्रमुख तीर्थों में शुमार है जहां स्नान और दान के साथ अस्थि विसर्जन और श्राद्धकर्म का विशेष महत्व है। पंडित दिनेश मित्रा ने बताया कि गंगा नहाने के बाद भी लोग अस्थि विसर्जन व शुद्धिकरण के लिए यहां पहुंचते हैं। लोहार्गल के अलावा प्रदेश में पुष्कर ही ऐसा स्थान है। इनके अलावा बोध गया, राजगृह ( बिहार), त्रियूगीनारायण या सरस्वती कुंड, उत्तराखंड, मदमहेश्वर या मध्यमेश्वर, उत्तराखंड, रूद्रनाथ बद्रीनाथ, हरिद्वार, कुरू क्षेत्र, पिण्डास्क (हरियाणा), मथुरा, नैमिषारण्य ,धौतपाप, बिठूर, प्रयागराज या इलाहबाद, काशी, अयोध्या (उत्तरप्रदेश), देव प्रयाग, (उत्तराखंड) परशुराम कुण्ड, (असम),याजपुर,भुवनेश्वर,जगन्नाथपुरी (ओडिशा), उज्जैन, अमर कण्टक(मध्यप्रदेश), नासिक,त्र्यम्बकेश्वर,पंढरपुर(महाराष्ट्र), तिरूपति, शिवकांची, रामेश्वरम, लक्ष्मणतीर्थ, सर्वतीर्थ सरोवर (तमिलनाडू), दर्भशयनम, कुम्भ कोणम, केरल सिद्धपुर, द्वारकापुरी,नारायणसर प्रभास-पाटण, वेरावल,चाणोद,श्रीरंगम,रीवा और शूलपाणी प्रमुख तीर्थ स्थल है।