
माधो सिंह देवा चांद सेवा सै सवायो।सीकरिनाथ सागे राव राजा सो लखायो।पालट साब बहादुर सहर सिकरि फेरि आया।पीढिय़ों का प्रवाड़ा ग्रंथ भाषा का मंगाया।
राजा दौलत सिंह शेखावत ने वीरभान का वास में आज के सीकर की स्थापना की थी। वीर भान का वास को खीचड़ गौत्र के चौधरी वीरभान ने बसाया था। सीकर की धरती इतनी ताकतवर रही कि यहां जन्मे योद्धा देश के दुशमनों से लोहा लेने में कभी पीछे नहीं रहे। सीकर की इस धरती में एक खास बात यह भी रही कि यहां बसे हिन्दू मुसलमानों में सदियों से भाई चारा बना हुआ है। सीकर के महावीर पुरोहित का मानना हैं कि सीकर का नाम श्रीकर रहा होगा जो बाद में सीकर हो गया। श्रीकर यानी लक्ष्मी के उपासकों की धरा। यहां के सेठ साहूकारों ने देश के आर्थिक तंत्र को मजबूत करने में बड़ी भूमिका निभाई है। इतिहास को खंगालने पर यह भी उजागर हुआ रियासत के पुराने पट्टे परवानों में सीकर का नाम मौजा सीकरी था। करीब 430 गांवो की सीकर रियासत को आजादी के बाद राजस्थान का एक जिला मुख्यालय बनने का सौभाग्य मिला। इतिहासकार सुरजन सिंह झाझड़ ने लिखा सीकर का असली नाम आगरा के पास फतेहपुर सीकरी के हिसाब से सीकरी था। शिव सिंह और शार्दुल सिंह आदि ने मिलकर कायमखानी नवाबों से फतेहपुर को छीन लिया था। तब शिव सिंह ने सोचा कि फतेहपुर तो जीत लिया अब सीकरी ही बाकी रह गया। ऐसे में उन्होंने अपनी राजधानी का नाम सीकरी रख दिया। राव राजा शिव सिंह के वंशज राजा लक्ष्मण सिंह और माधो सिंह के शासन तक के दान पत्र, पट्टे परवानों और अभिलेखों में आज के सीकर का नाम मौजा सीकरी लिखा जाता था।
राजा माधो सिंह के समय में कवि गोपाल कि इस कविता में सीकर को सीकरी बताया गया है।
माधो सिंह देवा चांद सेवा सै सवायो।
सीकरिनाथ सागे राव राजा सो लखायो।
पालट साब बहादुर सहर सिकरि फेरि आया।
पीढिय़ों का प्रवाड़ा ग्रंथ भाषा का मंगाया।
सीकर के राजा शिव सिंह का जन्म संत सिद्धपुरी जी के आशीर्वाद से हुआ । इनके पिता राजा दौलत सिंह ने इस संत से पुत्र की कामना की थी। तब महात्मा सिद्धपुरी ने भगवान शिव की कृपा से डेढ़ साल बाद पुत्र होने की भविष्यवाणी करते हुए बालक का नाम शिव सिंह रखने को कहा था। संत ने शिव सिंह के राजा होने की घोषणा करते हुए हर्ष पहाड़ पर शिवालय बनवाने का भी निर्देश दिया था। यह महात्मा सिद्घपुरी जी सीकर के राव राजा दौलत सिंह के भाई फतेह सिंह के भी गुरु थे। राजा दौलत सिंह की मृत्यु के बाद विक्रम संवत 1778 में शिव सिंह सीकर की गद्दी पर बैठे। उन्होंने सेना का गठन किया जिसमें दो हजार घुड़सवार सैनिक थे। यह भी कहा जाता है कि शिव सिंह को काबुल के व्यापारी से सैकडों मण चांदी मिली थी। इस धन के बल पर उन्होंने अपने राज्य का विस्तार किया। अपने ईष्ट देव गोपीनाथ जी का मंदिर बनाने के अलावा गढ़ और महल बनवाए। फतेहपुर के कायमखानियों से राज छीनने के बाद शार्दुल सिंह ने झुंझनु को और शिव सिंह ने सीकर को अपनी राजधानी बनाया। फतेहपुर के कायमखानी नवाब के साथ हुए युद्ध में चूड़ी बेसवा के कायमखानियों ने शिव सिंह का साथ दिया था। शिव सिंह जयपुर महाराजा जय सिंह के खास विश्वस्त सरदार रहे। मराठा सरदार गंगाधर तात्या ने जयपुर पर हमला कर दिया था। तब जयपुर महाराजा सवाई ईश्वरी सिंह ने सीकर के राव राजा शिव सिंह के नेतृत्व में सेना भेजी। तब शिव सिंह ने मराठों की सेना को बगरू तक भगा दिया था। जीत की खुशी में शिव सिंह का जयपुर में विजय जुलूस भी निकाला गया। दूसरे युद्ध में शिव सिंह लड़ते हुए घायल हो गए थे। कुछ दिन बाद उनका जयपुर में निधन हुआ। जयपुर में चांदपोल बाहर सीकर हाउस है। नाह री का नाका स्थित शेखावतों की छतरियों में शिव सिंह का स्मारक बना है।सीकर के राजाओं ने जयपुर की खातिर अनेक युद्धों में वीरता दिखाई। सीकर के शासकों ने अस्पताल,स्कूल कॉलेज आदि के लिए कई भवन बनवाए। इस वजह से आजादी के बाद सीकर को जिला बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
Updated on:
01 Jan 2023 01:58 pm
Published on:
01 Jan 2023 01:45 pm
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