पूर्वी राजस्थान में बरसात की संभावना
इधर, स्काईमेट वेदर रिपोर्ट के अनुसार आगामी 24 घंटों में भी राजस्थान के कई इलाकों में हल्की व मध्यम बारिश देखने केा मिल सकती है। रिपोर्ट के अनुसार अगले 24 घंटों के दौरान जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में अधिकांश स्थानों पर मध्यम से भारी वर्षा और बर्फबारी जारी रहने की संभावना है, तो पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भागों, उत्तरी और पूर्वी राजस्थान के कुछ हिस्सों में हल्की से मध्यम बारिश और गरज-चमक के साथ बौछारें पडऩे की संभावना है।
अमृत बनी मावठ
शेखावाटी में दो दिन से हो रही ओलावृष्टि भले ही किसानों को रास नहीं आ रही, लेकिन मावठ की बूंदों ने फसलों के लिए अमृत का काम कर दिया है। गेहूं व जौ के लिए तो यह वरदान साबित होगी। जमीन की नमी बढऩे से बारानी खेती करने वाले किसानों के चेहरे भी खिल उठे हैं। उनके अनुसार मावठ ने एक महीने की सिंचाई का काम कर दिया है। बदले मौसम से सब्जी व उद्यानिकी फसलों पर जरूर प्रतिकूल असर पड़ा है। लेकिन, कुल मिलाकर बात करें तो मावठ किसानों के लिए अच्छी साबित नजर आ रही है। बशर्ते कि मौसम साफ होने पर फिर तापमान माइनस में ना पहुंचकर पाला पडऩे की आशंका पैदा कर दे। जिले के किसानों के लिए अच्छी बात यह है कि इस बुवाई के समय तापमान ज्यादा रहने के कारण अधिकांश फसलें पछेती है और इन फसलों के छोटी होने से अगले 15 दिन में बेहतर बढ़वार होगी। गौरतलब है कि सीकर जिले में रबी सीजन के दौरान दो लाख 60 हजार हेक्टैयर में बुवाई हुई है।
पाले की आशंका घटी
मावठ के बाद पाला पडऩे की संभावना कम हो जाती है। इससे फसलों को नुकसान नहीं पहुंचता है। बरसात से फसलों के उत्पादन में फायदा होता है। क्योंकि बरसात के पानी के साथ नाइट्रोजन भी आता है। इससे किसानों को यूरिया खाद की आवश्यकता कम पड़ती है। वहीं सिंचाई से मुक्ति मिलती है। हालांकि जरूरत से ज्यादा बारिश होने पर यह नुकसानदायक होती है।
इनका कहना है
यह अच्छी बात है कि इस बार समय पर मावठ होने से सब्जियों को छोडकर रबी की अन्य फसलों को फायदा होगा। कई जगह ओलावृष्टि की सूचना भी है लेकिन ओलावृष्टि एक पट्टीनुमा क्षेत्र में ही होती है। जबकि मावठ का क्षेत्र ज्यादा होता है। इस कारण नुकसान से ज्यादा फायदा है। वहीं मावठ के बाद नमी होने से किसानों की लागत भी कम होगी।
– सुण्डाराम वर्मा, किसान, पदमश्री
इस बार बुवाई के समय तापमान ज्यादा होने के कारण अधिकांश फसलें पछेती है और इन फसलों के छोटी होने से नुकसान का प्रतिशत भी कम है। मावठ रूपी नाइट्रोजन के मिलने से निश्चित तौर पर फसलों में फायदा होगा।
– प्रमोदकुमार, संयुक्त निदेशक कृषि खंड सीकर