
राजस्थान की विशिष्ट सांस्कृतिक विरासत में गणगौर का पर्व ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व के साथ अहम स्थान रखता है। यह पर्व नवविवाहित महिलाएं तथा युवतियां अमर सुहाग की कामना के लिए मनाती है। शेखावाटी सहित पूरे राजस्थान मे यह पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता रहा है। दो सप्ताह से अधिक चलने वाले इस पर्व के दौरान सुरीले गीत तथा अनूठी परम्पराएं देखने को मिलती थी। चिन्ताजनक बात यह है कि अन्य परम्पराओं तथा त्यौहारों की भांति इस पर्व के प्रति भी नई पीढ़ी का रुझान कम होता जा रहा है। कारण भले ही पढ़ाई का बोझ हो या टीवी संस्कृति व सोशल मीडिया का बढ़ता प्रसार, लेकिन इतना तय है कि इस समय गणगौर पूजन में उत्साह से अधिक औपचारिकता ही निभाई जा रही है।
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टोलियां बनाकर पूजती है गणगौर
होली के अगले दिन अर्थात धुलण्डी के दिन से ही गणगौर पूजन का आरम्भ हो जाता है। हर टोली में एक नवविवाहिता तथा करीब एक दर्जन युवतियां होती है। दो सप्ताह से अधिक चलने वाले आयोजन में हर टोली सुबह-सुबह गणगौर का पूजन करती है, दोपहर मे गणगौर को पानी पिलाती है। करीब 16 से 18 दिन गणगौर पूजन के बाद चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर का अंतिम पूजन कर उसे कुऐ में विसर्जित कर दिया जाता है।
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कई संदेश छिपे होते है गीतों मे
गणगौर पर्व के दौरान कई प्रकार के गीत गाए जाते है जिनमे कई प्रकार के व्यावहारिक संदेश छिपे होते है। मुख्य रूप से इन गीतों मे एक नवविवाहिता को पीहर से ससुराल जाने पर मिलने वाले नए माहौल तथा वैवाहिक जीवन के रीति-रिवाजों से संबंधित संदेश होते है।
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अब नही सुनते मधुर गीतों के सुर
दो दशक पहले गणगौर के दौरान दो सप्ताह तक लोगों की आंखे गणगौर के मधुर गीत सुनकर ही खुलती थी। एक-एक मौहल्ले मे कई टोलियां और उनमे शामिल कई युवतियां गीत गाती तो अलग ही रोमांच होता था। समय के साथ युवा पीढ़ी की प्राथमिकताऐं बदलने से अब यह मधुर स्वर सुनने बहुत कम हो गए है। इस परम्परा पर सर्वाधिक प्रभाव पढ़ाई के बोझ़ का पड़ा माना जाता है। खास बात यह है कि गणगौर का पर्व मार्च-अप्रेल के महीने मे आता है और यही समय स्कूलों व कॉलेजों मे परीक्षाओं का होता है। वे परीक्षा के नजदीक के समय मे ऐसे आयोजनों के लिए समय देना समय की बर्बादी मानती हैं।
हमारे समय मे 6 वर्ष की आयु से ही बालिकाओं मे गणगौर पूजन के प्रति उत्साह देखा जाता है। गणगौर पूजन के दौरान अलग ही खुशनुमा माहौल देखने को मिलता था। पढ़ाई की मार के कारण नई पीढ़ी इस ऐतिहासिक व रोचक परम्परा से दूर होती जा रही है जो कि निराशाजनक है।
ललिता देवी सैन, वार्ड 15, लक्ष्मणगढ़
राजस्थान मे गणगौर का ऐतिहासिक महत्व है लेकिन नई पीढ़ी के कैरियर व भविष्य की कीमत पर नही। शिक्षा बोर्ड व विश्वविद्यालय यदि परीक्षाओं के समय मे बदलाव करे तो नई पीढ़ी भी इस परम्परा का आनन्द ले सकेंगी। इसके लिए सामाजिक संस्थाओं को मुहिम चलानी चाहिए और सरकार पर दबाव बनाना चाहिए।
दीपिका जांगिड़, संस्कृत शिक्षिका, वार्ड नं-15, लक्ष्मणगढ़
बढती प्रतिस्पर्धा के साथ आज की पीढी को अपने कैरियर की चिंता ज्यादा रहती हैं। आगे बढने की इसी ललक के कारण हमारी संस्कृति व रीति रिवाज भी पीछे छुटते जा रहे हैं। इनके संरक्षण के लिये हमेें सामूहिक रूप से प्रयास करने होगें।
अर्चना पुरोहित, पार्षद दल नेता, लक्ष्मणगढ विकास मंच, लक्ष्मणगढ (सीकर)
Published on:
22 Mar 2017 07:15 pm
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