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नहीं रहे राजस्थानी भाषा के मूर्धन्‍य साहित्यकार सौभाग्य सिंह शेखावत, अब किताबों में हमेशा रहेंगे जिंदा

22 जुलाई 1924 को सीकर जिले के भगतपुरा गाँव में जन्मे राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार इतिहासकार सौभाग्य सिंह शेखावत पिछले छह दशक से राजस्थानी प्राचीन साहित्य के उद्धार और अनुशीलन के लिए शोध कर्म से जुड़े रहे थे।

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राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार इतिहासकार सौभाग्य सिंह शेखावत का शनिवार को उनके पैतृक निवास गांव भगतपुरा में सुबह छह बजे निधन हो गया। अपराह्न तीन बजे गांव के श्मशान घाट में उनके अंतिम संस्कार किया गया। मुखाग्रि उनके बेटे महावीर सिंह ने दी। शवयात्रा में पूरा अंचल उमड़ा।



22 जुलाई 1924 को सीकर जिले के भगतपुरा गाँव में जन्मे शेखावत पिछले छह दशक से राजस्थानी प्राचीन साहित्य के उद्धार और अनुशीलन के लिए शोध कर्म से जुड़े रहे थे।
इस क्षेत्र में अपनी उत्कृष्ट एवं सुदीर्घ सेवाओं से राजस्थानी शोध जगत का पर्याय बन चुके थे।


शेखावत ने राजस्थानी साहित्य को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाने में अहम् भूमिका निभाई है। राजस्थान, राजस्थानी भाषा और संस्कृति पर शोध और इतिहास लेखन करने वाले विद्धवानों के प्रकाशित ग्रंथों के सन्दर्भ लेखों में भी इनका जगह जगह प्रकाशित नाम और उनके सन्दर्भ उन्हें राजस्थानी भाषा मनीषी के रूप में प्रतिष्ठापित करते हैं।

शोध लेखन के साथ ही इन्होंने राजस्थानी भाषा की डिंगल शैली की अनेक महत्वपूर्ण पांडुलिपियों को संपादित कर उनका उद्धार किया। राजस्थानी भाषा साहित्य के साथ राजस्थान के इतिहास पर इनकी 50 से भी ज्यादा पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है।



विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं की सम्पादकीय जिम्मेदारी, विभिन्न सामाजिक संगठनों के पदों के साथ शेखावत राजस्थानी शोधसंस्थान चोपासनी के सहायक निदेशक व राजस्थानी भाषा उनयन एवं संवेधानिक मान्यता समिति (राजस्थान सरकार द्वारा गठित 1990), राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी , बीकानेर के चेयरमैन व साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के सदस्य व राज्य के प्रतिनिधि रहे। शेखावत ने आकाशवाणी जोधपुर के लिए भी राजस्थानी भाषा में कई प्रस्तुतियां दी।

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