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आतंकियों के लिए मौत का दूसरा नाम किशन सिंह राजपूत, अंतिम सांस तक करता रहा दुश्मनों को ढेर

Shaheed Kishan Singh rajput : जम्मू कश्मीर के पुलवामा आतंकी हमले में शहीद किशन सिंह राजपूत राजस्थान के चूरू जिले के रतनगढ़ तहसील के गांव भींचरी के रहने वाले थे।

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rajasthan Shaheed

Shaheed Kishan Singh rajput

रतनगढ़. जम्मू कश्मीर के पुलवामा जिले के सिरून गांव में आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब देते शहीद हुए किशन सिंह राजपूत को अंतिम विदाई सोमवार को दी जाएगी। रविवार को उनकी पार्थिव देह राजस्थान पहुंची थी। रात को पार्थिव देह बीकानेर के सैनिक अस्पताल में रखवाई गई। सोमवार सुबह गांव पहुंची तो पूरा गांव किशन सिंह जिंदाबाद के नारों से गूंज उठा। हर कोई उनके अंतिम दर्शन करने और शवयात्रा में शामिल होने के लिए रतनगढ़ के गांव भींचरी की ओर रवाना हो गया।


शहीद किशन सिंह राजपूत का परिचय

-किशनसिंह राजपूत 2009 में सेना में 55आरआर में सिपाही के पद पर भर्ती हुए थे।

-शहीद किशन सिंह राजपूत के दो पुत्र हैं। जिसमें बड़ा पुत्र धर्मवीर (4) और मोहित (02) साल का है।

-शहीद के एक बड़ा भाई जीवराजसिंह है। वह कोलकाता में ट्रक चलाकर परिवार का लालन-पालन करते हैं।

-शहीद किशनसिंह की पत्नी रतनगढ़ में खाडिया बास में एक किराए के मकान में बच्चों के साथ रहती है।
-किशनसिंह की पत्नी संतोष कंवर को जैसे ही पति के शहीद होने की सूचना मिली। वे दहाड़े मारकर रोने लगी।
-अचानक रोने की आवाज सुनकर आस-पास के लोग एकत्रित हो गए। उन्होंने शहीद की वीरांगना को ढांढ़स बंधाया।


खूंखार आतंकवादी जहूर को किया ढेर


सेना में किशनसिंह राजपूत के साथ मोर्चा संभाले हुए जवान विनोदसिंह ने बताया कि जहूर ठाकोर सेना से भगोड़ा है। वह वर्षों पहले भाग चुका था। सेना को भी इसकी तलाश थी। भगोड़ा ठाकोर खूंखार आतंकवादी बन गया था। इसे सेना की सारी बारीकियों की जानकारी थी। इस कारण ऑपरेशन में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। सैनिक लेकिन किशनसिंह ने सूझबूझ से काम करते हुए तीन आतंकवादियों में से सबसे पहले ठाकोर को अपना निशाना बनाया और उसका सीना गोलियों से छलनी कर ढेर कर दिया। इसके बाद सेना के जवानों ने अन्य दो आतंकवादियों को ढेर कर ऑपरेशन करीब साढ़े सात बजे समाप्त कर दिया।


जंगल में आतंकवादियों से जूझते रहे Kishan singh Rajput


भींचरी गांव निवासी जवान किशनसिंह जब जम्मू कश्मीर के पुलवामा जिले के सिरून गांव में मोर्चा संभाले हुए थे। उससे पहले सेना के साथियों ने किशनसिंह की मौके पर तैनातगी के फोटो खींचे। इसके बाद उसने भींचरी में रह रहे उसके भांजे वीरेन्द्र को फोटो भेजे और बताया कि वे इस तरह जंगल में आतंकवादियों से जूझने के लिए परेशानी झेल रहे हैं।


पिता किसान थे


किशनसिंह का जन्म 9 दिसंबर 1989 को गांव भींचरी में हुआ। इसके पिता हड़मानसिंह किसान थे। जिनकी 2011 में मृत्यु हो चुकी है। जबकि मां मोहनकंवर अभी है। लोगों ने बताया कि किशनसिंह के मन में हमेशा सेना में जाने का ही जुनून था।


एक महीने बाद होने वाली थी बीकानेर नियुक्ति


किशन सिंह वर्ष 2010 में सेना में भर्ती हुआ था। 55 आरआर बटालियन में सिपाही के पद पर तैनात शहीद किशन सिंह गत 28 नवंबर को एक माह की छुट्टी बिताकर वापस गया था। उनका 30 महीने के स्पेशल टास्क का समय एक माह बाद पूरा होने वाला था। इसके बाद किशनसिंह की पोस्टिंग वापस बीकानेर होने वाली थी।


सीने में गोली लगने के बाद भी किया मुकाबला


आर्मी से भगोड़े सैनिक आतंकवादी जहूर अहमद ठोकर व उसके दो साथियों अदनाम उर्फ ताहिर व बिलाल उर्फ होशिम से हुई मुठभेड़ के दौरान किशनसिंह के कंधे व सीने में दो गोली लगी थी। इसके बावजूद किशनसिंह ने करीब 10 मिनट तक मुकाबला कर खूंखार आतंकी जहूर अहमद ठोकर को मार गिराया। इसके बाद किशनसिंह बेहोश हो गया।


सेना की राइफल लेकर भागा था आतंकवादी ठोकर

गौरतलब है कि आंतकवादी जहूर अहमद ठोकर पिछले साल जुलाई में बारामुला में प्रादेशिक सेना की 173वीं यूनिट से एके 47 राइफल लेकर भाग गया और हिजबुल मुजाहिद्दीन नामक आतंकी संगठन में शामिल हो गया था। सेना में रहने के कारण उसे कई बारीकियों का पता था। बाद वह खूंखार आतंकी बन गया था।


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