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12 साल की आयु में गैंगरेप के बाद 22 ऑपरेशन का दर्द झेल चुकी इस दामिनी की दास्तां सुनकर आप भी रो पड़ेंगे

सामूहिक बलात्कार का शिकार होने के बाद 22 ऑपरेशन झेल चुकी दामिनी हिम्मत हारने के बजाय पढ़ लिखकर सुनहरे भविष्य का ख्वाब बुन रही है

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सामूहिक बलात्कार का शिकार होने के बाद 22 ऑपरेशन झेल चुकी दामिनी हिम्मत हारने के बजाय पढ़ लिखकर सुनहरे भविष्य का ख्वाब बुन रही है

12 साल की आयु में गैंगरेप के बाद 22 ऑपरेशन का दर्द झेल चुकि इस दामिनी की दास्तां सुनकर आप भी रो पड़ेंगे

जोगेंद्र सिंह गौड़, सीकर.

सामूहिक बलात्कार का शिकार होने के बाद 22 ऑपरेशन झेल चुकी दामिनी हिम्मत हारने के बजाय पढ़ लिखकर सुनहरे भविष्य का ख्वाब बुन रही है। ताकि नौकरी हासिल कर सम्मान जनक जिन्दगी जी सके और अपनी बूढ़ी मां का सहारा बनकर जीवन में नया मुकाम हासिल कर सके। जी हां, महज 12 साल की आयु में बलात्कार जैसा दर्द झेल चुकी दामिनी को जब शाला और आंगनबाड़ी केंद्र पर प्रवेश नहीं मिला तो मजबूरी में उसने घर पर रहकर ही पढऩे की ठान ली। बकौत दामिनी का कहना है कि अब वह बालिग हो चुकी है और अपना भला-बुरा समझती है। लेकिन, जब समाज के ठेकेदारों ने उसको स्कूल में आने के लिए मना कर दिया तो वह आखर ज्ञान के लिए आंगनबाड़ी केंद्र पहुंची। यहां भी जिल्लत मिली तो उसने हौंसला नहीं खोया और हिम्मत जुटाकर इधर-उधर से पढऩे की पुस्तकों की व्यवस्था की। ताकि शिक्षा हासिल कर वह भी अपना नाम कमा सके और गुमनामी के अंधेरे से बाहर निकल सके। पीडि़ता का जज्बा है कि 2012 में दरिंदों के नौचने के बाद वह सदमे में आ गई थी। इसके बाद छोटे-बड़े 22 ऑपरेशनों ने उसका बैठना दूभर कर दिया था। बालिग होने के बाद समझ बढ़ी तो बूढ़ी मां का ख्याल आया और सोचा कि वह कहीं काम तो नहीं कर सकती। लेकिन, घर बैठ कर पढ़ तो सकती है। उसकी मांग है कि खोया समय तो वापस नहीं आ सकता। लेकिन, 18 साल की होने के बाद सरकार अब उसके रोजगार की व्यवस्था तो कर ही सकती है।


ले रही है आखर का ज्ञान
घटना के बाद दामिनी लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रही। इसके बाद बिहार में अपनी जमीन खोने के बाद वह सीकर में ही रहने लगी। प्रशासन ने उसके रहने की व्यवस्था रखी है। यहां ये अपनी बूढ़ी मां के साथ जीवन गुजार रही है। दामिनी के अनुसार वह कब तक अपनी मां पर बोझ रहेगी। इसलिए किताबी ज्ञान लेकर वह भी अपने हौंसलों को उड़ान देना चाहती है।


सुध ले सरकार
पीडि़त परिवार का मानना है कि जिल्लत की जिंदगी झेलने के बाद सरकार को उनकी सुध लेनी चाहिए। आवास सहित दामिनी की पढ़ाई लिखाई का जिम्मा यदि किसी को सौंप दे तो वह भी समाज में सिर उठाकर जमाने के साथ चल सकने में कामयाब हो सकते हैं।


बहन का आसरा
हादसे के तुरंत बाद मजबूर पीडि़ता और उसके परिवार की मदद के लिए कुछ लोग आगे भी आए थे। लेकिन, वर्तमान में अपनी लाडो और खुद को जिंदा रखने के लिए औरों के झाडू-पौछा कर पेट पाल रही है। इसके बदले प्रतिमाह उसे हजार रुपए मिलते हैं। मजबूरी में जयपुर मजदूरी कर रही उसकी बहन मदद करती है।