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मां बनी आंखें तो बेटी ने रचा इतिहास, 12वीं में हासिल किए 97% अंक, राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जीते 50 से ज्यादा मेडल

Success Story: कुछ करने का जुनून हो तो तमाम अभावों को मात देकर भी सफलता का परचम लहराया जा सकता है। ऐसी ही संघर्षभरी कहानी है सीकर की नेत्रहीन बेटी शालिनी चौधरी की।

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सीकर

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Nupur Sharma

Jun 24, 2023

Success Story: Blind Daughter Created History, Scored 97 Marks In 12th Class In Sikar Rajasthan

सीकर। Success Story: कुछ करने का जुनून हो तो तमाम अभावों को मात देकर भी सफलता का परचम लहराया जा सकता है। ऐसी ही संघर्षभरी कहानी है सीकर की नेत्रहीन बेटी शालिनी चौधरी की। पेरा एथलेटिक्स खेलों में बेहतरीन प्रदर्शन पर राज्य सरकार आउट ऑफ टर्न कोटे से बेटी को नौकरी देने को तैयार है लेकिन उसका सपना प्रशासनिक सेवा में जाकर देश की सेवा करना है। वह एमए की तैयारी कर रही है। पेरा खेल प्रतियोगिताओं में पदक जीतने के लिए तैयारी में भी जुटी है। राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के कला संकाय के 12 वीं के परिणाम में 97% अंक हासिल कर शालिनी दिव्यांगों का मान बढ़ा चुकी है।


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पढ़ाई के लिए ऐप से बनाया ब्रेल कंटेट...
शालिनी ने बताया कि कला कॉलेज के स्टाफ का पढ़ाई में काफी सहयोग रहा। लेकिन ब्रेल का कटेंट कम मिलने पर मां ने काफी सहयोग किया। उन्होंने बताया कि एक ऐप के जरिए मां ने सभी विषयों की पुस्तकों को पीडीएफ बनाकर अपलोड कर दिया। यहां से ऑडियो रुप में कटेंट तैयार हो गया। इसकी मदद से पढ़ाई की। पहले साल 93 फीसदी और दूसरे साल 67 फीसदी अंक हासिल किए।

विशेष शिक्षक नहीं मिले पर नहीं मानी हार
मां सरोज भामू कहती हैं जब बेटी शालिनी पांच महीने की हुई तब पता लगा कि बेटी की आंखों में कुछ दिक्कत है। इस पर वर्ष 2004 में आंखों का ऑपरेशन भी करवा लिया लेकिन शालिनी की जिंदगी में उजाला नहीं आ सका। बाद में दिल्ली एम्स से लेकर देश के नामी नेत्र चिकित्सकों से परामर्श लिया लेकिन सफलता नहीं मिली। इसके बाद बेटी को पढ़ाने के लिए वीआई के विशेष शिक्षक तलाशे लेकिन कोई विशेष सहायता न मिलने पर खुद आगे बढ़ने की ठानी।


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नेत्रहीन शालिनी चौधरी का कहना है कि मां कभी विशेष शिक्षक तो कभी कोच का रोल निभाती है। बचपन में ब्रेल लिपि सिखाना बेहद जरूरी था। इसके लिए एसके कॉलेज के शिक्षक सुभाष से वीआई की स्लेट लेकर पहले खुद अभ्यास किया। इसके बाद बेटी को ब्रेल लिपि में पढ़ाना शुरू किया। एसके स्कूल में कक्षा 12वीं ब्रेल के शिक्षकों के इंतजाम नहीं होने पर मां ने हिम्मत नहीं हारी। वहीं दिव्यांग बच्चों के लिए सीकर में कोई कोच नहीं होने के बावजूद मां खुद एथलेटिक्स प्रतियोगिताओं की तैयारी कराती है। अब तक शालिनी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर की 50 से अधिक प्रतियोगिताओं में राजस्थान को मेडल दिला चुकी है।