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जिसकी उम्मीद में आंखें हो गईं बोझिल, छह साल बाद मिला वह मझिला

पंजाब व लखनऊ में बिताया समय

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The innocent found the shadow

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सिंगरौली. सात वर्षीय मुन्ना एक दिन खेलते-खेलते परिजनों से बिछड़ गया। घर वालों ने बहुत खोजबीन की, लेकिन उसका कहीं पता नहीं चला। कुछ लोग उसे गुमराह कर मोरवा रेलवे स्टेशन ले आए। जहां मासूम शक्तिपुंज एक्सप्रेस में बैठकर सो गया। जब आंख खुली तो उसने अपने आप को किसी अनजान स्टेशन पर पाया।
मासूम समझ ही नहीं पाया कि वह कहां पहुंच गया है और वह करे भी तो क्या करे। इसलिए वह ट्रेन बदल कर पंजाब के फिरोजपुर पहुंच गया। जहां कुछ दिन चाय-पान की दुकान पर काम किया। इसके बाद रेलवे स्टेशन पर खाली बोतल बीनने लगा। फुटपाथ पर भीख मांग कर अपना पेट भरता था। बाद में एक सिख परिवार ने उसे अपने यहां काम दे दिया। यह कहानी है छह साल पहले लापता हुए जगमोरवा निवासी विमल की। पुलिस के मुताबिक, 29 मार्च 2०13 को मोरवा थाना क्षेत्र के जगमोरवा निवासी विमल प्रसाद बसोर उर्फ मझिला परिजनों से बिछड़ गया था। घर के सदस्य मासूम को पाने की उम्मीद खो चुके थे, लेकिन वह किशोर अवस्था में आने के बाद भी लगातार घर आने की लालसा में लगा हुआ था। फिर उसके साथ एक दिन ऐसा करिश्मा हुआ कि वह भी कुछ नहीं समझ पाया और घर पहुंचने की मंशा 7 साल बाद एक सेकंड में पूरी हो गई। दरअसल लखनऊ में रह रही मझिला की मौसी ने एक दिन उसे रास्ते में देखा और पहचान लिया और उन्होंने ही इसकी जानकारी परिजनों को दी। विमल के बिछडऩे की कहानी जिसने भी सुना, उन सबके आंखों में आंसू भर आए। सबके मुख में एक ही नाम ईश्वर ने ही कोई चमत्कार किया है।

मोरवा थाने में दर्ज हुई थी गुमशुदगी
इस मामले में थाना मोरवा में दर्ज गुमशुदा इंसान 15/13 की जांच का जिम्मा टीआई नरेंद्र सिंह रघुवंशी के नेतृत्व में उप निरीक्षक एमडी आर्य को सौंपा गया था। उप निरीक्षक आर्य परिवार से इस विषय में पूछताछ कर ही रहे थे कि तभी किसी चमत्कार की तरह लखनऊ से फोन आया की मझिला मिल गया है।

तलाश करते-करते हार मान गए थे परिजन
करीब डेढ़ वर्षों तक फिरोजपुर में ही काम करने के बाद उसने दोबारा घर ढूंढने की सोची। इस बार पुन: ट्रेन पकड़ कर वह फिरोजपुर से लखनऊ आ गया। घर का पता याद नहीं होने के कारण वह लखनऊ में ही काम तलाश कर किसी तरह अपना गुजर बसर करता रहा। इस बीच उसके दिमाग से घर की यादें जा रही थी। इतने सालों में मझिला के माता-पिता भी उसकी तलाश करते-करते हार मान गए थे और बेटे से मिलने की आस लगभग छोड़़ दी थी।

मौसी ने देखकर पहचान लिया
दरअसल, लखनऊ में रह रही मझिला की मौसी ने एक दिन उसे रास्ते में देखा और पहचान लिया, लेकिन इतने वर्ष बीत जाने के बाद अब 13 साल की उम्र में बालक को कुछ याद नहीं था। जिस पर बचपन की तस्वीरों को दिखा कर उसकी धुंधली यादों को ताजा किया गया। अपने मां-बाप को पहचानने के बाद उसने बिछड़े परिवार का दामन थामा तो उस समय मौजूद हर किसी की आंखों से आंसू छलक गए। परिवार में अब सभी खुश हैं और कहानी पूरे गांव में चर्चा का विषय बनी हुई है।