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माड़ा गुफाओं की नहीं बदली सूरत, 50 लाख से होना था कायाकल्प

इको पर्यटन बोर्ड ने डेढ़ साल पहले जारी किया था बजट

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Unexplored appearance of grape caves

Unexplored appearance of grape caves

सिंगरौली. 7वीं सदी की उपेक्षित पड़ी माड़ा की गुफाओं के दिन अभी तक नहीं बहुरे हैं। जबकि मप्र इको पर्यटन बोर्ड ने गुफाओं के कायाकल्प के लिए वन विभाग को 50 लाख रुपए मंजूर किया था। पिछले साल बरसात के बाद से गुफाओं का कायाकल्प शुरू हो गया। मगर, काम कछुए की गति से चल रहा है। यही वजह है कि पर्यटकों को गुफाएं नहीं लुभा पा रही हैं। शहर से करीब 40 किमी दूर उपेक्षा का दंश झेल रहीं माड़ा की गुफाओं का कायाकल्प होने के बाद भी पर्यटकों को नहीं लुभा सकीं।

यह होनी थी व्यवस्था
पिछले साल बरसात के बाद से माड़ा में पर्यटकों की भीड़ जुटने का दावा किया जा रहा था। लेकिन वन विभाग की मानें तो जिले में यह पहला पर्यटन क्षेत्र घोषित किया गया। इसके लिए वन विभाग पहले से प्रयासरत रहा। इस दिशा में किए गए प्रयास को मूर्त रूप दिया गया। चट्टानों को काटकर बनाई गई गुफाएं 7वीं सदी की प्रतीत होती हैं। जिन्हें राष्ट्रकूट के शासनकाल का एक अद्भुद नमूना माना जाता है। ये गुफाएं उपेक्षित पड़ी रहीं। इस नाते वहां लोग जाने से कतराते रहे। अब कायाकल्प भी किया जा रहा है, जिसे वन विभाग महज खानापूरी कर रहा है।

ये हैं चार गुफाएं
यहां पर विवाह माड़ा गुफाएं, रावण माड़ा गुफाएं, शंकर-गणेश माड़ा गुफाएं और जल-जलिया माड़ा गुफाएं हैं। इन चारों गुफाओं को जोड़कर नेचर ट्रेल बनाया जाना था। मतलब, चारों गुफाओं का आपस में जोडऩे की बात कही गई थी। ताकि एक -दूसरे में लोग आसानी से जा सकें। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।