
माउंट आबू, लगातार जंगल में लग रही आग ।
माउंट आबू. माउंट आबू के जंगलों में आग लगने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। लगातार एक सप्ताह से माउंट आबू के अलग-अलग स्थानों पर दानावल धधका हुआ है। जिसको लेकर वन विभाग के कर्मचारी, वन मित्र, वन सहयोगी व मजदूर लगातार आग बुझाने का प्रयास कर रहे हैं। बावजूद इसके अभी भी कई स्थानों पर आग लगने का सिलसिला जारी है। सोमवार को माउंट आबू के अचपुरा व गंभीरी पहाड़ी के तरफ आग बुझाने का प्रयास जारी है। वन विभाग के करीब 20 कर्मचारी व मजदूरों द्वारा लगातार आग बुझाने के प्रयास किए जा रहे हैं। जबकि पिछले 1 सप्ताह से करीब आधा दर्जन स्थानों पर लग रही आग को बुझाने में वन विभाग को सफलता मिल चुकी हैं। उधर विभाग की उदासीनता के चलते 1 सप्ताह तक चली आगजनी की घटना में वन संपदा व वन्य जीव को भारी नुकसान हुआ है। वही पिछले 2 दिन से लगातार हवा का रुख तेज होने के कारण आग बुझाने में कर्मचारियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इधर अब विभागीय अधिकारियों द्वारा आगजनी की घटनाओं को लेकर समय पर मॉनिटरिंग व व्यवस्थाओं को सुदृढ नहीं किया तो आने वाले गर्मियों के दिनों में स्थिति भयावह हो सकती हैं। क्योंकि माउंट आबू जैसे बड़े जंगल में आग बुझाने के लिए विभाग के पास 70 की जगह मात्र 33 कर्मचारी ही है।
आग लगाने की घटना है सामाजिक परंपरा
माउंट आबू के जंगलों में लगातार चल रही आगजनी की घटनाओं को लेकर जब पत्रिका ने पड़ताल की एवं वन विभाग के डीएफओ विजय शंकर पांडे से जानकारी ली तो कई चौकाने वाले कारण सामने आए। डीएफओ पांडे ने बताया कि जंगल में आग लगती नहीं बल्कि अलग-अलग कारणों की वजह से कुछ लोगों द्वारा आग लगाई जाती है। उन्होंने बताया कि जंगल में रहने वाले कुछ लोगों की सामाजिक मान्यता है कि उनका कोई बड़ा कार्य पूर्ण होने की स्थिति में वह पहाड़ की एक टेकरी में आग लगाने की कसम खाते हैं। जब वह अपने कार्य में सफल या उनकी कोई मन्नत पूरी होती हैं तब वे लोग पहाड़ में आग लगा देते हैं। साथ ही कुछ लोग वन विभाग से दुश्मनी रखने वाले भी आगजनी की घटनाओं को अंजाम देते हैं। वही जंगलों में हथकड़ी शराब बनाने वाले लोग भी ऐसी हरकतों से बाज नहीं आते। हालांकि इन लोगों के खिलाफ वन विभाग समय-समय पर कार्रवाई करता है। लेकिन बड़ा जंगल होने के कारण आरोपी मिल नहीं पाते। डीएफओ पांडे ने बताया कि माउंट आबू के जंगल में बास टकराने की वजह से आग की घटना केवल 5 फीसदी ही होती है।
एफ एस आई के जरिए विभाग को आग की मिलती है सूचना
समय के बदलाव के साथ वन विभाग भी हाईटेक सुविधाओं से जुड़ गया है। अब जंगल के किसी भी कोने पर आग लगने की घटना होते ही मात्र आधे घण्टे में जंगल मे घूमने वाले वन विभाग के कर्मचारी से लेकर फॉरेस्टर, रेंजर, डीएफओ व सीसीएफ सहित आला अधिकारियों तक फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (भारतीय वन सर्वेक्षण) सेटेलाइट के माध्यम से फोटो सहित लोकेशन मोबाइल पर पहुंच जाती है। बावजूद इसके एक-एक सप्ताह तक आगजनी की घटनाओं पर काबू नहीं पाना विभाग पर कई सवाल खड़े कर देता है।
उधर वेंडरों पर बनाया जाता है दबाव
सनसेट, ट्रैवल्टेक सहित कई स्थानों पर छोटे व्यवसाय के रूप में व्यापार करने वाले वेंडरों पर वन विभाग आगजनी की घटनाओं पर काबू पाने के लिए दबाव बनाता है। कुछ वेंडरों ने नाम नहीं छापने की तर्ज पर बताया कि सनसेट रोड पर केवल खड़े रहकर व्यापार करने के लिए वन विभाग द्वारा प्रतिमाह 500 रुपये किराया लिया जाता है। साथ ही आगजनी की घटना होने पर उन्हें जबरदस्ती व्यापार बंद कर आग बुझाने के लिए ले जाते हैं। जबकि राज्य सरकार द्वारा आग बुझाने के लिए प्रति मजदूर 260 रुपये का भुगतान किया जाता हैं। ऐसे में उनके द्वारा निशुल्क कार्य करवाया जाता है। अगर कोई वेंडर आग बुझाने के लिए मना कर देते हैं। तो दूसरे दिन वन विभाग के कर्मचारियों द्वारा उन्हें इस स्थान पर व्यापार के लिए खड़ा नहीं रहने देते।
कुछ स्थानों पर आग लग रही है। जल्द काबू पा लेंगे। एफ एस आई से आग की सूचना मिल जाती हैं। लेकिन पैदल मौके पर पहुंचने में परेशानी होती है। सनसेट रोड पर वेंडर आग बुझाने इच्छा से आए तो ठीक है। लेकिन कोई जबरदस्ती नहीं की जाती।
विजय शंकर पांडे डीएफओ, माउंट आबू
Published on:
29 Mar 2022 02:24 pm
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