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रेवदर (सिरोही). मेहनत हम कर रहे हैं और फायदा पड़ोसी राज्य गुजरात को मिल रहा है। सिर्फ हमारी सौंफ और जीरे के कारण गुजरात की ऊंझा मंडी का नाम हुआ है। यदि यहां का माल यहीं प्रोसेस करें तो हम सिरमौर बन सकते हैं। सरकार को अफसरशाही की दीवार तोड़कर किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए पहल करनी होगी। सौंफ ही नहीं, अन्य फसलों पर आधारित उद्योगों को प्रोत्साहन मिले तो क्षेत्र का कायाकल्प हो सकता है। यह व्यथा जताई है क्षेत्र के प्रगतिशील किसानों ने।
मलावा के किसान हीरालाल चौधरी का कहना है कि भारत कृषि प्रधान देश है, ऐसा किताबों में पढ़ाया जाता रहा है लेकिन विकास योजनाएं बनाते समय इस तथ्य और क्षेत्रीय आवश्यकताओं को अनदेखा किया जाता रहा है। योजनाओं में बुजुर्गों के अनुभव और युवा किसानों के नवाचार के लिए कोई जगह नहीं होती और केवल अफसरशाही हावी रहती है। यही वजह है कि ऐसी तमाम योजनाएं धरातल पर उतरने से पहले ही दम तोडऩे लगती हैं। नतीजतन कृषि को अनार्थिक होते देख अनुभवी किसानों की नई पीढिय़ां खेती-किसानी से किनारा कर नौकरियों का रुख करने लगी हैं। उनका कहना है कि इन बदले हालात से निपटने के लिए सरकार को नीतियों पर नए सिरे से विचार करना होगा।
टमाटर, आलू से भी बन सकते हैं उत्पाद
वडवज के किसान सुजान सिंह देवड़ा और देरोल के किसान भूराराम का कहना है कि उत्पादकों को आस-पास ही बाजार मिल जाए और स्थानीय स्तर पर प्रोसेसिंग इकाइयों में उत्पादों की मांग हो तो बेहतर मूल्य मिलना आसान और सुनिश्चित हो जाता है। क्षेत्र में बहुतायत से पैदा होने वाले टमाटर, आलू और हरी मिर्च का उचित भाव किसानों को अक्सर नहीं मिल पाता है। मांग स्थिर रहने से भाव तेजी से गिरते हैं। कभी-कभी लागत मूल्य और परिवहन खर्च भी नहीं मिल पाने से परेशान किसान टमाटर की फसल सड़कों पर फेंकने पर मजबूर हो जाते हैं। इसी प्रकार आलू की पैदावार अधिक होने से खरीदार नहीं मिलते और कोल्ड स्टोरेज में भी जगह नहीं मिलती तो खेतों में ही सड़ जाता है। यदि टोमेटो केचप और सॉस बनाने वाली इकाइयां क्षेत्र में स्थापित की जाएं तो उन मांग रहेगी जिससे अच्छे भाव मिलने लगेंगे। यदि फूड डीहाइड्रेशन प्लांट लगाए जाएं तो सीजन में टमाटर को सुखाकर पाउडर बनाया जा सकता है जो वर्षभर ऊंची कीमत पर बेचा जा सकता है। इसी प्रकार आलू से अलग-अलग फ्लेवर वाले चिप्स बनाने के प्लांट्स लगाकर मांग और दाम को बढ़ाया जा सकता है।
बहु उपयोगी अरण्डी
मलावा के कमलेश गोस्वामी व नागाणी के किसान मोटाराम देवासी कहते हैं कि क्षेत्र में अरण्डी का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है। ये दोनों ही वाणिज्यिक फसलें हैं जिनके भाव माल की उपलब्धता पर निर्भर करते हैं। पेन्ट, डाई, स्याही, वार्निश, लुब्रीकेंट और वाहनों के ब्रेक फ्लूड बनाने वाले उद्योगों में अरण्डी का तेल कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल होता है। यदि क्षेत्र में इन कृषि आधारित उद्योगों को प्रोत्साहन दिया जाए तो फसलों का बेहतरीन मूल्य मिल सकता है। इन प्रोसेसिंग इकाइयों और उद्योगों से न केवल उत्पादों की मांग और कीमत बढ़ेगी बल्कि बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे।
Published on:
04 Jul 2020 10:43 am
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