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वसूली का खेल कब तक!

सिरोही जिले में सबसे मलाईदार पोस्टिंग सरहदी इलाकों के थाने की मानी जाती है क्योंकि हर कोई यहां पोस्टिंग पाने को लालायित होता है।

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अमरसिंह राव

सिरोही जिले में सबसे मलाईदार पोस्टिंग सरहदी इलाकों के थाने की मानी जाती है क्योंकि हर कोई यहां पोस्टिंग पाने को लालायित होता है। पहले यह मामला तब जोर पकड़ा था जब अब के विधायक संयम लोढ़ा ने सार्वजनिक रूप से आरोप लगाया था कि सीमावर्ती मण्डार और आबूरोड के थानों में पोस्टिंग पाने के लिए बाकायदा थानेदारों में बोली (जो ज्यादा बंधी देगा, उसे वहां का प्रभारी बनाया जाएगा) लगती है।
अब सीमावर्ती मण्डार के थाना प्रभारी गोपालसिंह को निलम्बित किया तो उनके पुलिस अधीक्षक और उप अधीक्षक पर 'बंधीÓ मांगने के आरोप से विधायक लोढ़ा के दावों में भी दम नजर आने लगा है। निलम्बित थानेदार ने यहां तक कहा कि उन्हें इस थाने में लगे चार महीने ही हुए हैं। पिछले दो महीने से एसपी और रेवदर डीएसपी रुपए देने के लिए दबाव डाल रहे थे लेकिन मैंने साफ मना कर दिया था। सवाल यह कि जब दो महीने से दबाव डाल रहे थे तो पहले जुबां क्यों नहीं खोली? सस्पेंड करने के बाद ही सामने क्यों आए? इसकी भी क्या गारंटी कि फिर बहाल होने के लिए खुद के बयान से नहीं मुकर जाओ?
सबसे बड़ा सवाल यह कि ऐसी क्या बड़ी वजह रही कि एसपी को हाथों-हाथ थानेदार को सस्पेंड करना पड़ा? फर्जीवाड़े की जो वजह बताई जा रही है वह मामला पुराना है फिर अब यकायक कार्रवाई क्यों? यदि यह भी मान लें कि शराब तस्करी रोकने में नाकाम रहे, इसलिए कार्रवाई की तो फिर सवाल यह उठता है कि आबूरोड के रास्ते तो मादक पदार्थों की रोजाना बड़ी खेप सरहद पार जा रही है, फिर वहां के जिम्मेदारों पर कार्रवाई क्यों नहीं?
क्या मामले की जांच से पहले किसी को निलम्बित करना उचित है? यदि उचित है तो अनियमितता का खुलासा करने में हिचकिचाहट क्यों? सवाल यह भी कि जब अनियमितता ही साबित नहीं हुई है तो जांच से पहले ही सस्पेंड क्यों किया? कहीं वाकई में बंधी का खेल तो नहीं है? यदि है तो क्यों असली गुनहगार खुलेआम घूम रहे हैं? क्यों उन पर भी नकेल नहीं कसी जा रही?
गुजरात में शराबबंदी है। इसलिए मण्डार और आबूरोड के रास्ते हर रोज बड़ी तादाद में शराब गुजरात पहुंचाई जा रही है। ऐसा नहीं है कि इस रूट से निकलने वाली शराब की गंध स्थानीय पुलिस को नहीं आती। आती तो है लेकिन इनको शायद शराब दिखती नहीं। तभी तो यहां से होकर निकलने वाली शराब गुजरात में घुसते ही पकड़ ली जाती है और आबूरोड के मावल से आसानी से निकल जाती है।
अकेले आबूरोड के रास्ते तस्करी के आंकड़े देखें तो छह महीनों में गुजरात पुलिस ने करीब 17 करोड़ रुपए की शराब पकड़ी है और सिरोही की पुलिस के पास गिनाने लायक कोई खास आंकड़ा भी नहीं है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या वाकई हमारी पुलिस को स्थाई जुकाम है कि शराब की गंध नहीं सूंघ सकती? या फिर सूचना तंत्र इतना कमजोर है कि कोई खबर ही नहीं लगती? यदि सूचना तंत्र मजबूत है तो शराब पकडऩे में गुजरात के मुकाबले कई गुणा पीछे क्यों है? या फिर इसके पीछे वाकई में 'बंधीÓ का खेल है?
सिर्फ छोटी मछलियां फांसने से समन्दर साफ नहीं होने वाला। जब तक बड़ी मछलियां आजाद घूमती रहेंगी तब तक कई छोटी मछलियों के साथ आंख-मिचौनी खेलने से पुलिस की कार्यशैली पर सवाल तो उठेंगे ही। यदि सही मायने में अपराधियों में भय और आमजन में विश्वास कायम करना है तो पहले खुद मोमबत्ती बनों जो स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देती है।


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