
It is not child safe nor nutrition
आदिवासी बहुल गांवों में स्कूल जाने वाले बच्चों को कई पापड़ बेलने पड़ते हैं। रात में बारिश के दौरान केलू-पोश के मकानों से टपकते बरसाती पानी से घरेलू सामान को बचाने के चक्कर में कई बार तो रातभर जागना पड़ता है। सुबह स्कूल जाने के लिए घर से भीगते हुए निकलते है। रास्ते में दो तीन बरसाती नाले पार करने पड़ते हैं। फिर स्कूल पहुंचने के बाद वहां भी सुकून नहीं मिल पाता। कमोबेश ऐसी ही पीड़ा झेलते है, चतराफली विद्यालय में पढऩे वाले 73 बच्चे। उन्हें न तो केलू-पोश के मकान में चैन मिलता है और न ही स्कूल भवन में। स्कूल के कमरों में भी बारिश के दौरान छत से पानी टपकता रहता है। स्कूल में चार कमरे बने हुए है और चारों में पानी टपकता है। पहली से पांचवीं तक के बच्चों को एक साथ एक ही कमरे में बैठाकर पढ़ाई करवाई जाती है, जिसमें कम पानी टपकता है।
पोषाहार को भीगने से बचाना मुश्किल
चार में से एक कमरे में पोषाहार पकाया जाता है और उसमें भी पानी टपकता है। ऐसी स्थिति में कमरे में रखा गेंहू, चावल व पोषाहार की अन्य सामग्री भीगती रहती है। बारिश शुरू होते ही शिक्षकों व पोषाहार पकाने वाली कुक को पोषाहार पकाने का सामान बचाने की चिंता सताने लगती है।
दो बरसाती नाले पार कर आते है बच्चे
विद्यालय में 73 बच्चों का नामांकन है। ये बच्चे खादराफली, चतराफली व आसपास की अन्य फलियों से आते हैं। घर से विद्यालय आने के लिए इन सभी बच्चों को कम से कम दो नाले तो पार करने ही पड़तै है। ईडरमाल और खादराफली से आने वाले दोनों नाले मिलकर एक हो जाता है और यह नाला स्कूल के ठीक सामने से ही निकलता है।
इन्होंने बताया ...
बारिश में समस्या तो रहती है। कई बार बच्चों को एक ही कमरे में बैठाने से व्यवस्था बिगडऩा लाजिमी है, पर क्या करें। चार कमरे हैं और चारों में पानी टपकता है। दूसरा कोई विकल्प भी नहीं है।
- राकेश गुप्ता, संस्था प्रधान, राजकीय प्राथमिक विद्यालय, चतराफली।
Published on:
12 Aug 2016 08:53 am
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