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हल्दीघाटी की मिट्टी से बनाई महाराणा प्रताप की पेंङ्क्षटग को देखकर लक्ष्यराज ङ्क्षसह हुए अभिभूत

सरूपगंज के एक विद्यार्थी ने मिट्टी से बनाई मनमोहक कलाकृति को प्रताप जयंती पर की भेंट

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हल्दीघाटी की मिट्टी से बनाई महाराणा प्रताप की पेंङ्क्षटग को देखकर लक्ष्यराज ङ्क्षसह हुए अभिभूत

हल्दीघाटी की मिट्टी से बनाई महाराणा प्रताप की पेंङ्क्षटग को देखकर लक्ष्यराज ङ्क्षसह हुए अभिभूत

सिरोही. उदयपुर में फार्मेसी कर रहे सरूपगंज के एक युवा विद्यार्थी प्रभातङ्क्षसह सोलंकी ने महाराणा प्रताप जयंती पर हल्दीघाटी की मिट्टी से महाराणा प्रताप की मनमोहक कलाकृति पेंङ्क्षटग बनाकर मेवाड़ के राजघराने से जुड़े लक्ष्यराज ङ्क्षसह को भेंट की। आर्टिस्टिक फिस्ट नाम से पहचाने जाने वाले सिरोही जिले के सरूपगंज निवासी प्रभातङ्क्षसह सोलंकी को बचपन से ही पेंङ्क्षटग और कलाकृतियां बनाने का शौक रहा है। प्रभात सोलंकी ने बताया कि महाराणा प्रताप की यह पेंङ्क्षटग पूर्णत: हल्दीघाटी की पावन मिट्टी से निर्मित है। इसे बनाने में चार दिन का समय लगा, जो महाराणा प्रताप जयंती पर बनकर तैयार हुई। इस पेंङ्क्षटग की विशेषताएं हैं कि इसमें किसी तरह के रंग का उपयोग नहीं हुआ है। इसमें जहां बीच में महाराणा प्रताप की छवि बनी हुई है, वहीं नीचे हल्दीघाटी के युद्ध के कुछ प्रमुख ²श्य भी बने हुए हैं। जिनमें क्रमश: महाराणा प्रताप के युद्ध के लिए प्रस्थान करने, बहलोल खान को हेलमेट, कवच और घोड़े समेत तलवार के एक ही वार से काटने, चेतक के हाथी पर चढऩे, महाराणा प्रताप को बचाने के लिए चेतक के 22 फीट के बरसाती नाले को पार करने और चेतक के महाराणा प्रताप की गोद में सिर रखकर स्वर्ग सिधारने के ²श्य शामिल हैं।
उदयपुर के लक्ष्यराज ङ्क्षसह मेवाड़ को यह पेंङ्क्षटग भेंट की गई, जिसकी उन्होंने बहुत सराहना की। कहा कि मात्र इस पेंङ्क्षटग को देख लेने से ही हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा का पराक्रम, उनका त्याग व बलिदान स्वत: याद आ जाता है। प्रभातङ्क्षसह सोलंकी के पिता अर्जुनङ्क्षसह सोलंकी रोहिड़ा के सरकारी स्कूल में अध्यापक है।