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सिरोही के पिण्डवाड़ा में 800 शिल्पकारों ने जिन पिलरों को तराशा, उन पर बनेगा अयोध्या में राम मंदिर

- पिण्डवाड़ा के शिल्पकारों का सपना साकार, बोले- राम ने उनकी सुन ली - अयोध्या में राम मंदिर के लिए पिण्डवाड़ा से भेजे थे 300 ट्रक पत्थर

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#Ram temple in Ayodhya will be built on the pillars carved by 800 craft

sirohi

अमरसिंह राव
सिरोही। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए पांच अगस्त को भूमि पूजन होने से पिण्डवाड़ा सुर्खियों में है। कारण कि यहां के जिन 800 से अधिक शिल्पकारों ने सालों पहले राममंदिर के लिए पत्थर तराशे थे अब उनका सपना साकार होने जा रहा है। इनके सधे हाथों से तराशे गए 192 पिलरों पर अयोध्या में राममंदिर खड़ा होगा। पिण्डवाड़ा से 1996 से लेकर 2004 तक करीब 300 ट्रक पत्थर तराश कर अयोध्या भेजे थे। करीब नौ साल तक चले पत्थर तराशने के काम में आठ सौ से अधिक कारीगर प्रत्यक्ष रूप से जुड़े रहे। अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े मजदूरों की संख्या अधिक है। कुछ तो ऐसे थे जिन्होंने दिन.रात काम किया। यानी 10 से 14 घंटों तक पत्थरों को मूर्त रूप देने में जुटे रहे। अब ये शिल्पकार और इनके परिजन खुश हैं कि उनकी मेहनत सफल हो गई। भगवान राम ने आखिर उनकी सुन ली।

25 साल पहले अशोक सिंघल आए थे पिण्डवाड़ा
सिरोही जिले के पिण्डवाड़ा से 25 साल पहले तराशे गए पत्थर भेजने का निर्णय अशोक सिंघल की ओर से किया गया था। वे उस समय विहिप के अंतरराष्ट्रीय कार्यवाहक अध्यक्ष और राम जन्मभूमि आंदोलन के प्रभारी थे। इसमें एक अन्य विहिप पदाधिकारी आचार्य गिरीराज किशोर भी राम जन्मभूमि आंदोलन में शामिल थे। तब 1995.96 में सिंघल सिरोही जिले के पिण्डवाड़ा आए थे और यहां पिण्डवाड़ा की सोमपुराए अजारी की मातेश्वरी और भरत शिल्पकला को पत्थर तराशने का कांटैक्ट दिया था। इसके बाद इन्होंने यहां पत्थर पूजन कर काम शुरू कराया था।

9 साल तक चला पत्थर तराशने का काम
पिण्डवाड़ाए कोजरा और अजारी में राम मंदिर के लिए पत्थर तराशने का काम शुरू किया गया। इस काम में सैकड़ों मजदूर जुटे। फिर तराशे गए तत्थरों को अयोध्या भेजना शुरू किया था। 1996 से 2004 तक नौ साल तक यहां तराशे पत्थर अयोध्या भेजे जाते रहे। इस दौरान करीब 300 ट्रक पत्थर अयोध्या भेजे गए। इस कार्य से जुड़े सोमपुरा बताते हैं कि यहां सिर्फ तराशे गए पत्थरों में पिलरए छत और दीवार का कार्य किया गया था। अन्य कार्य अयोध्या से हो रहा है। यहां 192 पिलर तराशे गए। जो राममंदिर के प्रथम तल पर 96 और दूसरे तल में 96 लगेंगे।

तराशे पत्थर की उम्र 1000 से 2000 साल
जानकार बताते हैं कि यहां के कारीगारों की पत्थर तराशने में महारथ हासिल है। इसी कारण देश में इनकी विशिष्ट पहचान है। भरतपुर के बंसी पहाड़पुरए जैसलमेरए राजसमंद के पत्थरों को पिण्डवाड़ा में तराशकर अध्योध्या भेजा गया। कारण कि वहां की खदानों में बड़े आकार के पत्थर पाए जाते हैं जिसे एकल स्लैब में उपयोग किया जा सकता है। यानी पत्थर इतना बड़ा होता हैं कि मंदिर के एक स्तंभ को तराशने के लिए पत्थर के एकल स्लैब का उपयोग कर सकते है। यह कभी भी अपना रंग नहीं खोता है। साथ ही इतना मजबूत हैं कि ये एक से दो हजार साल तक चल जाता है। यानी इसका दो हजार साल तक कुछ नहीं बिगाड़ता


यह बोले शिल्पकार


ताउम्र यादगार बनेगी हमारी कला
पत्थर तराशने में लगे शिल्पकारों का कहना है कि सही मायने में अब हमारे सपने सच होंगे। कारण कि जिस मेहनत से हमने रामलला मंदिर के लिए पत्थर तराशे थेए वह सपना अब पूरा होने जा रहा है। शिल्पकार नरेश लोहार का कहना है कि अब दिल को खुशी मिली है कि जिस मंदिर के लिए पत्थरों को तराशा थाए वह अब ताउम्र के लिए यादगार बनने जा रही है।

अमर हो जाएगी हमारी शिल्पकला
शिल्पकार परेशभाई सोमपुरा का कहना है कि हमने और हमारे साथियों ने जिस रामलला मंदिर के लिए जो दिनरात मेहनत की थी वह अब सफल होने जा रही है। हमें असल खुशी इस बात की है कि जिन पत्थरों को तराश कर हमने भेजा था उनकी उम्र हजारों साल है। यानी हजारों साल तक तराशे पत्थर वैसे ही रहेंगे। एक तरह से हमारी शिल्पकला अमर होने जा रही है।