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एक दे गया गम दूसरा सुशांत संगीत के जरिए सहेज रहा है सांस्कृतिक विरासत

(Bihar News ) बिहार का एक सुशांत अपने (Sorrow of Shshant ) चाहने वालों को गम दे गया वहीं दूसरा सुशांत अपनी माटी और संस्कृति (This Sushant is Sprinkling Fragrance of traditional music ) को सहेज कर संगीत की खुशी दे रहा है। यह सुशांत है सीवान पचरुखी प्रखंड के सहलौर गांव के निवासी योगेंद्र प्रसाद अस्थाना का पुत्र। 35 वर्षीय यह युवा बिहार की सांस्कृतिक विरासत को संगीत के जरिए युवा पीढ़ी तक पहुंचाने की पुरजोर कोशिश में जुटा हुआ है।

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एक दे गया गम दूसरा सुशांत संगीत के जरिए सहेज रहा है सांस्कृतिक विरासत

एक दे गया गम दूसरा सुशांत संगीत के जरिए सहेज रहा है सांस्कृतिक विरासत

सीवान(बिहार): (Bihar News ) बिहार का एक सुशांत अपने (Sorrow of Shshant ) चाहने वालों को गम दे गया वहीं दूसरा सुशांत अपनी माटी और संस्कृति (This Sushant is Sprinkling Fragrance of traditional music ) को सहेज कर संगीत की खुशी दे रहा है। यह सुशांत है सीवान पचरुखी प्रखंड के सहलौर गांव के निवासी योगेंद्र प्रसाद अस्थाना का पुत्र। 35 वर्षीय यह युवा बिहार की सांस्कृतिक विरासत को संगीत के जरिए युवा पीढ़ी तक पहुंचाने की पुरजोर कोशिश में जुटा हुआ है। शहरों में रहने वाली ऐसी पीढ़ी जिन्होंने दादी-नानी के पारंपरिक मनभावन गीतों को भुला-बिसरा दिया, उन्हें नए अंदाज में यह सुशांत पहुंचाने में जुटा हुआ है। इस अंदाज में सुशांत ने वेस्टर्न के साथ भोजपुरी संगीत का संगम कर दिया।

गीतों से हास-परिहास
''कहवां के पियर माटी...'' विवाह के रस्म मटकोर का गीत है. शादी की विधिवत शुरुआत मटकोर से ही होती है। इसके लिए पहले महिलाएं कुदाल लेकर मिट्टी लाने घर से बाहर जाती हैं, जो मिट्टी लायी जाती है, उससे आंगन का मंडप तैयार किया जाता है। इसी मंडप में शादी की रस्में होती हैं। जिन लोगों ने बचपन में मटकोर की रस्म देखी है, उनके लिए ये मजेदार अनुभव रहा है। घर की चहारदीवारी से बाहर उन्मुक्त होकर महिलाएं आपस में हास-परिहास करती हैं। गीतों के माध्यम से रिश्तेदारों को गाली और उलाहना दी जाती है। खूब मस्ती होती है।

पीढिय़ों पुराने गीत
पीढ़ी-दर-पीढ़ी महिलाओं ने मटकोर के इस गीत को आवाज दी है। इनमें ''पटना के पियर माटी....'' और ''छपरा की सात सुहागिनों...'' का जिक्र आता है। सुशांत दिल्ली में रहते हुए गीत-संगीत की दुनिया में अपनी पहचान बना रहे हैं। वह गाने कंपोज भी करते हैं। भोजपुरी भाषी होने की वजह से उनके पास पारंपरिक और लोक गीतों का अथाह खजाना विरासत के तौर पर मौजूद है।

गाय के गोबर महादेव
''गाय के गोबर महादेव, अंगना लिपाई...'' एक ऐसा गीत है, जो हर पीढ़ी की जुबान पर होता है। किसी घर आंगन से जब ये गीत हवा में घुलता है, तो पूरा माहौल भक्तिमय हो जाता है। गिटार के साथ सुशांत जब इसे आवाज देते हैं, तो प्रवासी बिहारियों को गांव की याद आना लाजिमी है। दिल में हुक-सी उठती है। बिहार के लोगों की एक बड़ी आबादी महानगरों में जिंदगी गुजारने के लिए अभिशप्त है। अक्सर पीड़ा होती है कि नयी पीढ़ी पारंपरिक और लोक गीतों से महरूम हैं। लेकिन, सुशांत एक उम्मीद दिखा रहे हैं।

पारंपरिक भोजपुरी गाने
सुशांत अस्थाना परंपरागत पुराने भोजपुरी गानों में वेस्टर्न म्यूजिक को कनेक्ट कर पुराने भोजपुरी गाने, जिसे लोग भुल चुके हैं, उसे लोगों के सामने पेश कर भोजपुरी को नयी ऊंचाई देने में जुटे हैं। शादी-विवाह के अलावा किसी भी धार्मिक अवसर पर बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में भगवान शिव का गीत गाने का चलन है।

विदेशों में भी लोकप्रिय
उन्होंने बताया कि इसमें उन्हें काफी सफलता भी मिल रही है। उनके गानों को सिंगापुर, अफ्रीका, नाइजीरिया, अटलांटा एवं नीदरलैंड जैसे देशों में लोग उनके गानों को शेयर कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि मॉरीशस की विदेश मंत्री अपने वॉल पर उनके भोजपुरी गानों को शेयर किया है। नये तरीके से पेश किये गये भोजपुरी गानों को आज के स्मार्ट यूथ काफी पसंद कर रहे हैं। आपने दादी और मां की आवाज में तो ये गीत जरूर सुने होंगे। गांव-कस्बों से लेकर शहरों तक इन गीतों के साथ ही शादी-ब्याह संपन्न होते हैं। सुशांत अस्थाना इन गीतों को अपनी पुर-कशिश आवाज में नयी पहचान दे रहे हैं।

युवा पीढ़ी के लिए वर्कशॉप
सुशांत फिलहाल आलाप (एक सांगीतिक वर्कशॉप) के फाउंडर हैं, जो 12 सालों से कई जगहों पर बच्चों को संगीत सिखाने का काम कर रहा है। स्ट्रिंग विब्स स्टूडियों दिल्ली के फाउंडर भी हैं। 10 सालों से संगीत निर्देशन का काम कर रहे सुशांत ने बॉलीवुड के कई नामचीन गायकों को अपने संगीत निर्देशन में गवाने का मौका मिला है। उन्होंने बताया कि भोजपुरी भाषा में आधुनिक प्रयोगों के साथ परंपरागत साहित्य और संगीत से आज की युवा पीढ़ी को जोडऩे का प्रयास है। यहीं मेरा मौलिक विजन है।