scriptआपातकाल के 40 साल:  क्या है आपातकाल, कैसे लगा भारत में | 40th anniversary of Emergency: What is emergency, How it imposed in India | Patrika News

आपातकाल के 40 साल:  क्या है आपातकाल, कैसे लगा भारत में

Published: Jun 25, 2015 01:27:00 pm

आपातकाल की घोषणा रेडियो पर पहले
कर दी गई, बाद में सुबह मंत्रिमंडल की बैठक के बाद उस पर राष्ट्रपति ने
हस्ताक्षर किए।

Why emergency imposed in India

Why emergency imposed in India

क्या है आपातकाल…
देश में आंतरिक अशांति को खतरा होने, बाहरी आक्रमण होने अथवा वित्तीय संकट की हालात में आपातकाल की घोषणा की जाती है। देश ने 1962 में चीन के साथ एवं 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान आपातकाल का दौर देखा था, पर यह “बाहरी आक्रमण” के कारण लगाया गया था। 25 जून 1975 की मध्यरात्रि से 21 मार्च 1977 के बीच जो आपातकाल का दौर देश ने देखा, वह “आंतरिक अशांति” के करण अनुच्छेद 352 के अंतर्गत लगाया गया था।


यूं लगा आपातकाल
1971 के युद्ध में सोवियत संघ ने भारत का साथ दिया था तथा अमरीका ने पाकिस्तान का। घरेलू मोर्चे पर इसका असर यह हुआ कि आर्थिक क्षेत्र में भारत की नीतियां अधिकाधिक समाजवादी होती गई तथा अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भी भारत कई तरह की संधियों आदि के माध्यम से सोवियत संघ के निकट आता गया । व्यापार- कारोबार पर राज्य का नियंत्रण अधिकाधिक बढ़ता गया। आयकर की दरें अपने 80-90 प्रतिशत तक पहुंच रही थीं। आर्थिक स्वतंत्रता सीमित से सीमित होती जा रही थी। दुर्भाग्य से 1971-72 और 1972-73 भारी सूखा के वर्ष भी रहे। इससे एक तरफ अनाज उत्पादन गिरा तो दूसरी तरफ बिजली उत्पादन पर भी नकारात्मक असर हुआ। इन्हीं वर्षो के दौरान कच्चे तेल के दाम तीन गुना तक बढ़े। जिससे 1971 के बाद के वर्षो में महंगाई दर 10 प्रतिशत से भी अधिक रही। समन्वित असर यह हुआ कि गरीबी, बेरोजगारी तथा महंगाई अपने चरम पर पहुंच रहे थे। नतीजा था व्यापक असंतोष। पर एकाधिकारवाद की ओर बढ़ रही कांग्रेस एक राजनीतिक दल के रूप में इस असंतोष को समायोजित करने के लिए तैयार नहीं थी।

असंतोष को मिला चेहरा
गुजरात के अंसगठित नव निर्माण आंदोलन के आंदोलन से सबक लेते हुए जेपी ने बिहार के छात्र आंदोलन को एक संगठन, लक्ष्य, नेतृत्व और करिश्मा प्रदान किया। उन्होंने छात्रों से आग्रह किया कि वे एक साल के लिए अपना कॉलेज छोड़कर एक वैकल्पिक राजनीतिक प्रणाली के निर्माण के लिए संघर्ष करें। लगभग सभी राजनीतिक दल अपने मतभेद भुलाकर जेपी के साथ खड़े हो गए। जल्दी ही आंदोलन का लक्ष्य प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को हटाना और भ्रष्टाचार तथा एकाधिकारवादी शासन का अंत हो गया। बताया जाता है कि जेपी के मार्च 1975 के “संसद मार्च” में 4 लाख से भी अधिक लोग सम्मिलित हुए। 25 जून 1975 की रामलीला मैदान की महारैली में जेपी ने पुलिस और सैनिक बलों से असंवैधानिक और अनैतिक आदेशो को नहीं मानने का आग्रह किया। बाद में इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाने के लिए “आंतरिक अशांति” की आशंका को इसी भाषण के आधार पर तर्कसंगत ठहराया था।

बढ़ता ही गया दबाव
इस पूरी स्थिति में इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय ने आग में घी डालने के लिए काम किया। 12 जून, 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त कर छह साल तक चुनाव न लड़ने का प्रतिबंध लगाया। उन पर चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग, अधिक खर्च करने का आरोप राजनारायण ने लगाया था। उच्च न्यायालय ने आरोपों को आंशिक रूप से सही ठहराया। श्रीमती गांधी ने इस्तीफा देने से इनकार करते हुए फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस कृष्ण अय्यर ने 24 जून 1975 के अपने अंतरिम आदेश में इंदिरा गांधी को बिना शर्त राहत नहीं दी। पूर्व दृष्टांतों के आधार पर इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बने रहने, संसदीय कार्रवाई में भाग लेने की अनुमति दी पर संसद में वोट करने की अनुमति नहीं दी। विपक्ष की प्रधानमंत्री से इस्तीफे की मांग तेज हो गई।

पहले घोषणा, बाद में हस्ताक्षर
25 जून, 1975 की मध्यरात्रि को मंत्रिमंडल की अनुशंसा पर राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी। यद्यपि हकीकत यह है कि आपातकाल की घोषणा रेडियो पर पहले कर दी गई तथा बाद में सुबह मंत्रिमंडल की बैठक के बाद उस पर राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर किए। यद्यपि संवैधानिक प्रावधान यह है कि मंत्रिमंडल की बैठक के बाद उसकी अनुशंसा पर जब राष्ट्रपति हस्ताक्षर कर देते हैं तब आपातकाल की घोषणा की जा सकती है।

जेलों में नहीं रही जगह
आपातकाल की घोषणा के साथ ही सभी नागरिकों के मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए। अभिव्यक्ति का अधिकार ही नहीं, लोगों के पास जीवन का अधिकार भी नहीं रह गया। 25 जून की रात से ही देश में विपक्ष के नेताओं की गिरफ्तारियों का दौर शुरू हो गया। जयप्रकाश नारायण, लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी, जॉर्ज फर्नाडीस आदि बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया गया। जेलों में जगह नहीं बची। आपातकाल के बाद प्रशासन और पुलिस के द्वारा भारी उत्पीड़न की कहानियां सामने आई। प्रेस पर भी सेसरशिप लगा दी गई। हर अखबार में सेंसर अधिकारी बैठा दिया, उसकी अनुमति के बाद ही कोई समाचार छप सकता था। सरकार विरोधी समाचार छापने पर गिरफ्तारी हो सकती थी। यह सब तब थमा जब 23 जनवरी 1977 को मार्च महीने में चुनाव की घोषणा हो गई।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो