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क्या सच में शांति और खुशहाली में पाकिस्तान और श्रीलंका से पीछे हैं हम या कहानी कुछ और…

हैप्पीनेस रिपोर्ट 2023 में जहां भारत 126वें स्थान पर तो वहीं साल के आखिरी महीनों में बड़ी राजनीतिक उथल पुथल देखने वाला श्रीलंका 112 वें स्थान पर और सालों से राजनीतिक अस्थिरता और मंहगाई झेल रहा पाकिस्तान 108वें स्थान पर है।

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जयपुर

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Ravesh Gupta

May 14, 2023

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जयपुर। पिछले साल कई इंडेक्स जारी हुए जिनमें भारत की स्थिति निराशाजनक थी। भारत की स्थिति से ज्यादा हैरान करने वाली स्थिति युद्ध ग्रसित यूक्रेन, तख्तापलट झेल रहे श्रीलंका और भुखमरी से जूझ रहे पाकिस्तान की थी, जो कि भारत से अच्छी थी। हैप्पीनेस रिपोर्ट, पीस इंडेक्स और हंगर इंडेक्स के आंकड़ों को देखकर सवाल उठता है कि आखिर किन आधार पर ये रिपोर्ट बनाई जा रही हैं, इन रिपोर्ट की विश्वनीयता कितनी है? इन सवालों का जवाब जानना अहम है क्योंकि इन रिपोर्ट से देश की साख पर सवाल उठते हैं। वैश्विक पटल पर देश की छवि खराब होती है।

विश्व हैप्पीनेस रिपोर्ट 2023

हैप्पीनेस रिपोर्ट 2023 में जहां भारत 126वें स्थान पर तो वहीं साल के आखिरी महीनों में बड़ी राजनीतिक उथल पुथल देखने वाला श्रीलंका 112 वें स्थान पर और सालों से राजनीतिक अस्थिरता और मंहगाई झेल रहा पाकिस्तान 108वें स्थान पर है। यूएन की ओर से जारी की गई रिपोर्ट को गहराई से समझने पर पता चलता है कि ये रिपोर्ट 2020, 2021 और 2022 के अंकों के औसत के आधार पर बनाई गई है जबकि पाकिस्तान और श्रीलंका सहित कुछ अन्य देशों का 2022 का डाटा उपलब्ध न होने पर सिर्फ दो साल का औसत लिया गया है। दो साल के औसत और तीन साल के औसत वाले देशों की एक साथ तुलना की गई है जो कि गणित की दृष्टि से गलत है। इस रिपोर्ट को बताते हुए कहीं भी इस फैक्ट को नहीं बताया गया है।

विश्व शांति रिपोर्ट 2022

पीस इंडेक्स 2022 में भारत को 135वां स्थान दिया गया है। जबकि चीन 89वें, श्री लंका 90वें, बांग्लादेश 96वें और फिलीस्तीन 133वें स्थान पर हैं। सभी देशों का स्कोर भारत से बेहतर है। जिस समय ये रिपोर्ट सामने आई, चीन में एंटी कम्युनिस्ट आंदोलन हो रहा था, फिलीस्तीन पर इजराएल के हमले हो रहे थे और श्रीलंका तख्तापलट की चोट से कराह रहा था। ऐसे में भारत में कोई बड़ा दंगा - फसाद या कोई बड़ी घटना न होने के बावजूद भारत का इन देशों से नीचे होना हैरान करने वाला था।

जब इस रिपोर्ट को गहराई से पढ़ा गया तो पता चला कुल 23 तरह के मानकों के आधार पर रैकिंग तय की गई हैं। इन मानकों में कई का डाटा 3 से 4 साल पुराना लिया गया था। उदाहरण के तौर पर 1 लाख लोगों पर आतंरिक सुरक्षा और पुलिस का डाटा साल 2018 का लिया गया है, कथित अपराध का स्तर का डाटा साल 2021 का, हत्या का डाटा 2020, आंतरिक संघर्षों की तीव्रता और हिंसक प्रदर्शन का डाटा मार्च 2021 से मार्च 2022 तक का लिया गया है।

तात्पर्य ये है कि डाटा पुराना है और उसे साल 2022 की रिपोर्ट का आधार बनाया गया है। जिस समय का डाटा उस समय सभी देशों के हालात अलग थे और जब रिपोर्ट रिलीज की गई उस समय सभी देशों के हालात अलग थे। कहीं न कहीं इस रिपोर्ट की वजह से देश के आम नागरिक के अंदर भी भारत की आंतरिक शांति और सुरक्षा को लेकर डर की भावना पैदा हुई लेकिन उसे ये नहीं पता था कि जिस डाटा के आधार पर ये रिपोर्ट दी गई है वो पुराना है।

विश्व हंगर इंडेक्स 2022

जब विश्व हंगर इंडेक्स सामने आया तो पता चला कि इस इंडेक्स में हम पाकिस्तान,श्रीलंका और तो और सूडान से पीछे हैं। भारत का 107 वां तो पाकिस्तान का 99वां, श्रीलंका का 64वां और सूडान का 106ठवां स्थान था। जब इस रिपोर्ट को गहराई से पढ़ा तो इसके मानकों में भी कुछ संदेह नजर आया। कुल 4 मानकों के आधार इस रिपोर्ट को तैयार किया गया है। यहां भी हाल कुछ शांति रिपोर्ट जैसा ही है। भरपेट खाना न पाने वालों का डाटा 2019 से 2022 का, चाइल्ट स्टंटिंग और वेस्टिंग का डाटा 2017 से 2021 और बाल मृत्यु दर का डाटा वर्ष 2020 का लिया गया है। वहीं गहराई से देखने पर पता चला कि श्रीलंका का चाइल्ड स्टंटिंग और वेस्टिंग के डाटा का एस्टीमेशन लिया गया है।

विश्व पीस इंडेक्स की तरह विश्व हंगर इंडेक्स में भी पुराने डाटा को 2022 में दिखाया गया और बताया गया कि ये वर्तमान की स्थिति है।

2022 का परिवेश

- अगर 2022 के परिवेश पर गौर किया जाए तो पाकिस्तान और श्रीलंका दोनों देशों में ही हिंसा, सत्ता के खिलाफ संघर्ष और शीत युद्ध जैसे हालात बने हुए थे। इन तीनों ही रिपोर्ट में 2022 के आंकड़े नहीं लिए गए थे। हैप्पीनेस रिपोर्ट में तो सभी देशों के आंकड़े थे लेकिन पाकिस्तान और श्रीलंका का डाटा उपलब्ध न होने पर दो साल के ही औसत के आधार पर गणना कर ली गई। इधर पीस रिपोर्ट में तो डाटा ही पुराना है। जबकि जो हालात हमारे पड़ोसी देशों में बने हुए थे वहां शांति तो दूर दूर तक नहीं थी।

- हर रिपोर्ट में अपने एक आंकड़े होते हैं, अपना एक तरीका होता है। जब इस रिपोर्ट को जारी किया जाता है तो लोगों तक सिर्फ परिणाम पहुंचता है, इनके तरीके और डाटा का आधार आम जनता तक नहीं पहुंच पाता।