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आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस : मशीनी मस्तिष्क बेहतर या इंसानी दिमाग

-डीप लर्निंग (deep learning) में सामान्य ज्ञान में कटौती या गलतियों को पकडऩे की तकनीक नहीं है, जिससे चलते कई बार हास्यास्पद गलतियां हो जाती हैं। मशीनी मस्तिष्क एक बनावटी विद्वान है, जो मानवीय क्षमताओं से दूर है। नतीजा इससे बेतुके परिणाम हो सकते हैं, बल्कि गलत उदाहरणों से यह भ्रमित भी कर सकता है।

Mar 08, 2020 / 04:12 pm

pushpesh

आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस : मशीनी मस्तिष्क बेहतर या इंसानी दिमाग

मशीनी मस्तिष्क बेहतर या इंसानी दिमाग

दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटेन के ब्लेसली पार्क में एनिग्मा कोड (Enigma machine) क्रेक करने और आधुनिक कंप्यूटर की कल्पना करने वाले ब्रिटिश गणितज्ञ एलन ट्यूरिंग (Alan Turing) ने पहली बार कृत्रिम बुद्धि की कल्पना की थी। अब जबकि कृत्रिम बुद्धिमत्ता हमारे जीवन का महत्वपूर्ण अंग बनने जा रही है, जो सवाल उठता है कि क्या सवाल-जवाब देने भर से मशीनी मस्तिष्क, इंसान से बेहतर साबित होगा। उस वक्त ट्यूरिंग की थ्योरी को ज्यादा अहमियत नहीं मिली, आज उनके परीक्षण और सिद्धांत काफी उपयोगी साबित हो सकते हैं, लेकिन उन्हें सही ढंग से अभी भी नहीं समझा गया।
ट्यूरिंग ने कृत्रिमता को कभी भी इंसान का विकल्प नहीं बताया था। यह एक काल्पनिक विचार है कि मशीनी दिमाग इंसान की तरह सोच सकता है। यदि मशीन की प्रतिक्रियाओं पर गौर करें तो इंसान से अलग बता सकते हैं। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआइ) के शोधकर्ता आज ट्यूरिंग टेस्ट का इस्तेमाल नहीं करते। यह आश्चर्य की बात नहीं कि आज हम मानव या एआइ प्रणाली के साथ ऑनलाइन संवाद कर रहे हैं। यूक्रेनी किशोर के रूप में ‘यूजीन गॉस्टमैन’ इसका उदाहरण है, जो मशीन होकर इंसान की तरह बात करता है। आज अधिकांश एआइ सिस्टम का इस्तेमाल चाहे भाषा के अनुवाद, शतरंज खेलना, कार चलाना, चेहरा पहचानना या मेडिकल डायग्नोसिस करना हो, मशीन लर्निंग तकनीक का सहारा लिया जा रहा है। लेकिन इनकी प्रमाणिकता की कोई ठोस प्रणाली नहीं है।
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मशीन मानवीय अनुभूति पैदा नहीं कर सकती
जो चीज नजर नहीं आती हम उसका अनुमान लगाते हैं। हम जानते हैं कि टाइल्स पर गिरा ग्लास टूट जाएगा, लेकिन कालीन पर नहीं। हम परस्पर संबंधों के बीच भेद कर सकते हैं। हम जानते हैं कि बारिश में छाता लगाने के पीछे जरूरत है, लेकिन बिना बारिश छाता लगाना इच्छा पर निर्भर है। यह अनुभूति के एक महत्वपूर्ण घटक को छूता है। हम दूसरों के अंतज्र्ञान के मनोविज्ञान को विकसित करते हैं, जिसे थ्योरी ऑफ माइंड कहते हैं। ये एल्गोरिदम है, जो हमारी सोच में परिलक्षित होता है। क्योंकि हम अनपेक्षित का अनुमान भी लगा सकते हैं, जब हम सडक़ पर गाड़ी चला रहे हैं, जहां एक मां अपने तीन बच्चों के साथ सडक़ पार कर रही है। तो इस हादसे को एआइ नहीं रोक सकती। क्योंकि मानवीय चेतना एक अनुभूति है, यह मशीनी ज्ञान नहीं है।
एक फीसदी चूक भी घातक हो सकती है
यदि एआइ प्रणाली 99 फीसदी अच्छा प्रदर्शन करती है तो एक फीसदी मामूली चूक भी विनाशकारी हो सकती है, जैसे यदि इसका इस्तेमाल कार चलाने या चिकित्सा निदान में किया जाता है। अब तक यह प्रणाली विकसित नहीं हो पाई है कि इसे बेहतर कैसे किया जाए? हालांकि शोधकर्ताओं का तर्क है कि यह तभी संभव है, जब इस प्रणाली को इंसानी दिमाग जितना संवेदनशील बनाया जाए। पिछले दिनों फिलिप बाल की रिपोर्ट में सामने आया कि हम एक ही तरीके से नहीं सीख सकते। जबकि ‘तंत्रिका नेटवर्क’ हमारे दिमाग में न्यूरॉन्स के उच्च परस्पर वेब के सिलिकॉन चिप संस्करण को डेटा पैटर्न के अनुसार प्रशिक्षित करता है। डीपमाइंड का कंप्यूटर प्रोग्राम ‘अल्फागो’ एक जटिल बोर्ड के साथ इंसानी विशेषज्ञों को मात देने में सक्षम है। जबकि गूगल अनुवाद भी नौसिखिए युवाओं के लिए बेहतर है, हालांकि अभी इसमें खामियां हैं। मौजूदा एआई 2010 से प्रभाव में आई है।

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