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न जनता बड़ी, न रेडिएशन… सबसे बड़ा रुपैया

जनता बड़ी या पैसा: घरों के आस-पास और सार्वजनिक स्थलों पर एक के बाद एक 5जी टावर खड़े होंगे और आप उन्हें रोक भी नहीं पाएंगे क्योंकि राजस्थान सरकार ने आपसे विरोध का अधिकार ही छीन लिया

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न जनता बड़ी, न रेडिएशन... सबसे बड़ा रुपैया

अमित वाजपेयी
लोकतंत्र क्या है? लोक और तंत्र। मतलब जनता की भलाई के लिए शासन व्यवस्था। शासन-प्रशासन ही जब दुश्मन बन जाए तो जनता जाए कहां? उन्हें न तो जनता के स्वास्थ्य की चिंता है और न ही उसके अधिकारों की रक्षा की। बस एक ही मकसद है कि चहेतों को कैसे उपकृत किया जाए। कैसे दोनों हाथों से पैसा बटोरा जाए। अब आपके घरों के आस-पास और सार्वजनिक स्थलों पर एक के बाद एक 5जी टावर खड़े होंगे और आप उन्हें रोक भी नहीं पाएंगे क्योंकि राजस्थान सरकार ने आपसे विरोध का अधिकार ही छीन लिया।

अब भले ही मोबाइल रेडिएशन कैंसर का कारक बने या स्वास्थ्य पर कोई अन्य प्रभाव हो, 5जी टावर तो लगेंगे। वह भी पहले से काफी कम कीमत पर। सरकार ने जनता की सुध छोड़कर मोबाइल कंपनियों को दिल खोलकर रियायत दी है। मतलब टावर भी मनचाही जगह लगाओ और किराया भी न्यूनतम दो। जनता विरोध करे तो करती रहे, अब उसकी कोई सुनवाई नहीं होगी।

दरअसल जनता की फिक्र किसे है। जनता तो पांच साल में बस एक बार वोट ही तो देती है। अगले चुनाव से ठीक पहले फिर कोई भावनात्मक मुद्दे को उछाल देंगे। जनता फिर उस मुद्दे को पकड़कर वोटों से राजनीतिक दलों की झोली भर देगी। बीते कुछ दशकों से चुनावों में यही सिलसिला तो चल रहा है।

दूरसंचार मंत्रालय ने इंडियन टेलीग्राफ राइट ऑफ वे नियम में संशोधन करके टावर लगाने से पहले जनता की आपत्ति लेने की बंदिश हटा दी है। यों तो यह फरमान केन्द्र सरकार ने जारी किया है लेकिन राजस्थान सरकार इसे मानने के लिए कतई बाध्य नहीं थी। वह चाहती तो जनता के अधिकारों की रक्षा कर सकती थी। क्योंकि केन्द्र सरकार ने सिर्फ गाइडलाइन दी है। राज्य सरकार उसे राजस्थान में भी लागू करे, इसकी कोई बाध्यता नहीं है। लेकिन शासन-प्रशासन को जनता के अधिकारों की रक्षा करने में वह फायदा कहां, जो मोबाइल ऑपरेटर्स के हितों को साधने में मिलेगा। नतीजतन अब 5जी टावर का यह जाल आपके आवासीय क्षेत्र के चारों तरफ फैल जाएगा।

राजस्थान में फिलहाल 35 हजार मोबाइल टावर हैं। अभी 5 हजार टावर और लगाए जाने हैं। शहरों और गांवों का दायरा बढ़ने के साथ इनकी संख्या और बढ़ेगी। अब तक मोबाइल टावर लगाने से पहले ऑपरेटर को संबंधित अथॉरिटी में आवेदन करना पड़ता था। फिर अथॉरिटी सार्वजनिक सूचना प्रकाशित करके जनता की आपत्ति मांगती थी। जनता के विरोध करने पर टावर लगाने की अनुमति नहीं दी जाती थी। राज्य में अभी 6.30 करोड़ मोबाइल उपभोक्ता हैं। लिहाजा मोबाइल कनेक्टिविटी जरूरी है लेकिन जनहित से बड़ी नहीं। इसलिए 5जी मोबाइल उपकरणों से रेडिएशन का खतरा है या नहीं, यह बताना जरूरी है। सरकार ने भी इसे अभी तक सार्वजनिक नहीं किया है।

राजस्थान पत्रिका जनहित को सर्वोपरि मानते हुए मोबाइल रेडिशन से बचाने के लिए बड़ी मुहिम चला चुका है। तब मनमाने तरीके से लगाए जा रहे टावर का विरोध शुरू हुआ। इस अभियान से लाखों पाठक, विषय विशेषज्ञ और कई सेलिब्रिटी जुड़े। इसका असर यह रहा कि दूरसंचार विभाग ने रेडिएशन के मानक में 10 गुना कमी की। साथ ही इलेक्ट्रोमेग्नेटिक फील्ड (ईएफएम) उत्सर्जन में कमी की गई। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2017 में पहली बार कैंसर पीड़ित की याचिका पर सुनवाई करते हुए हानिकारक रेडिएशन को आधार मानकर एक मोबाइल टावर बंद करने के आदेश दिए थे। शासन-प्रशासन को वक्त रहते अपने इस फैसले पर पुनर्विचार करने की जरूरत है, अन्यथा उन्होंने जनता को अपने हितों की रक्षा के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाने को मजबूर तो कर ही दिया है।