सत्य साईं बाबा के हैं भक्त
उनके करीबियों ने बताया कि टीएन शेषन सत्य साईं बाबा के भक्त रहे हैं। जब साल 2011 में साईं बाबा के देह त्यागने के बाद वह भीतर से टूट गए और सदमे में चले गए। उन्हें भूलने की बीमारी हो गई थी। ऐसे में रिश्तेदारों ने उन्हें चेन्नई के एक ओल्ड एज होम में भर्ती कर दिया। तीन साल बाद उनकी स्थित सुधर गई और वह सामान्य हो गए। इसके बाद वह अपने फ्लैट में रहने आ गए। इतने दिनों तक उस ओल्ड एज होम में रहने के बाद उन्हें वहां से लगाव हो गया और वह बीच-बीच में वहां रहने चले जाते हैं। अब वह किसी से बात भी नहीं करते।
उनके करीबियों ने बताया कि टीएन शेषन सत्य साईं बाबा के भक्त रहे हैं। जब साल 2011 में साईं बाबा के देह त्यागने के बाद वह भीतर से टूट गए और सदमे में चले गए। उन्हें भूलने की बीमारी हो गई थी। ऐसे में रिश्तेदारों ने उन्हें चेन्नई के एक ओल्ड एज होम में भर्ती कर दिया। तीन साल बाद उनकी स्थित सुधर गई और वह सामान्य हो गए। इसके बाद वह अपने फ्लैट में रहने आ गए। इतने दिनों तक उस ओल्ड एज होम में रहने के बाद उन्हें वहां से लगाव हो गया और वह बीच-बीच में वहां रहने चले जाते हैं। अब वह किसी से बात भी नहीं करते।
चुनाव सुधार का काम
जब टीएन शेषन चुनाव आयुक्त बने थे, तब चुनाव के दौरान बिहार से काफी हिंसा की खबरें आती थीं। उन्होंने बूथ कैप्चरिंग आदि पर नियंत्रण पाकर निष्पक्ष चुनाव कराने को एक चुनौती की तरह लिया और पहली बार उन्होंने ही चरणों में चुनाव कराने की शुरुआत की।
मुख्य चुनाव आयुक्त रहते हुए टीएन शेषन ने चुनाव सुधार को लेकर काफी काम किया। उनके आने के बाद ही लोगों को पता चला कि चुनाव आयोग के पास इतने अधिकार हैं और वह इतना शक्तिशाली भी हो सकता है। 1992 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उन्होंने सभी जिला मजिस्ट्रेटों, चोटी के पुलिस अधिकारियों और सभी चुनाव पर्यवेक्षकों को साफ कर दिया कि चुनाव की अवधि तक वह सिर्फ चुनाव आयोग के प्रति जवाबदेह होंगे। इसी तरह हिमाचल प्रदेश, बिहार आदि चुनावों में चुनाव आयोग की ताकत का एहसास कराते हुए निष्पक्ष चुनाव कराया।
सबसे बड़े शिकार थे हिमाचल के राज्यपाल
शेषन के सबसे शिकार थे हिमाचल प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल गुलशेर अहमद। चुनाव आयोग ने सतना का चुनाव इसलिए रद्द कर दिया, क्योंकि अपने बेटे के पक्ष में गुलशेर अहमद ने प्रचार किया था। इस विवाद के बाद हिमाचल के राज्यपाल को देना पड़ा इस्तीफा। इसी तरह राजस्थान के तत्कालीन राज्यपाल बलिराम भगत को भी शेषन का कोपभाजन बनना पड़ा था, जब उन्होंने एक बिहारी अफसर को पुलिस का महानिदेशक बनाने की कोशिश की थी। पूर्वी उत्तर प्रदेश में पूर्व खाद्य राज्य मंत्री कल्पनाथ राय को चुनाव प्रचार बंद हो जाने के बाद अपने भतीजे के लिए चुनाव प्रचार करते हुए पकड़ा गया। जिला मजिस्ट्रेट ने उनके भाषण को बीच में रोकते हुए उन्हें चेतावनी दी कि अगर उन्होंने भाषण देना जारी रखा तो चुनाव आयोग को वो चुनाव रद्द करने में कोई हिचकिचाहट नहीं होगी।
शेषन के सबसे शिकार थे हिमाचल प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल गुलशेर अहमद। चुनाव आयोग ने सतना का चुनाव इसलिए रद्द कर दिया, क्योंकि अपने बेटे के पक्ष में गुलशेर अहमद ने प्रचार किया था। इस विवाद के बाद हिमाचल के राज्यपाल को देना पड़ा इस्तीफा। इसी तरह राजस्थान के तत्कालीन राज्यपाल बलिराम भगत को भी शेषन का कोपभाजन बनना पड़ा था, जब उन्होंने एक बिहारी अफसर को पुलिस का महानिदेशक बनाने की कोशिश की थी। पूर्वी उत्तर प्रदेश में पूर्व खाद्य राज्य मंत्री कल्पनाथ राय को चुनाव प्रचार बंद हो जाने के बाद अपने भतीजे के लिए चुनाव प्रचार करते हुए पकड़ा गया। जिला मजिस्ट्रेट ने उनके भाषण को बीच में रोकते हुए उन्हें चेतावनी दी कि अगर उन्होंने भाषण देना जारी रखा तो चुनाव आयोग को वो चुनाव रद्द करने में कोई हिचकिचाहट नहीं होगी।
चुनाव में अनिवार्य किया चुनाव पहचान पत्र
ये टीएन शेषन ही थे, जिन्होंने निष्पक्ष चुनाव के लिए चुनाव पहचान पत्र को आवश्यक बता कर अनिवार्य कर दिया। हालांकि तब करीब-करीब हर दल के नेताओं ने यह कहकर उनका विरोध किया था कि भारत जैसे देश के लिए ऐसा करना बहुत खर्चीला होगा। लेकिन शेषन नेक साफ कर दिया कि अगर मतदाता पहचान पत्र नहीं बनाए गए तो वह एक जनवरी 1995 के बाद भारत में कोई चुनाव नहीं कराए जाएंगे। यह सिर्फ खोखली धमकी नहीं थी, बल्कि कई चुनावों को उन्होंने सिर्फ इसी वजह से स्थगित किया, क्योंकि उस राज्य में वोटर पहचानपत्र तैयार नहीं थे। इसके अलावा उम्मीदवारों द्वारा चुनाव खर्च को कम करने का काम भी किया।
ये टीएन शेषन ही थे, जिन्होंने निष्पक्ष चुनाव के लिए चुनाव पहचान पत्र को आवश्यक बता कर अनिवार्य कर दिया। हालांकि तब करीब-करीब हर दल के नेताओं ने यह कहकर उनका विरोध किया था कि भारत जैसे देश के लिए ऐसा करना बहुत खर्चीला होगा। लेकिन शेषन नेक साफ कर दिया कि अगर मतदाता पहचान पत्र नहीं बनाए गए तो वह एक जनवरी 1995 के बाद भारत में कोई चुनाव नहीं कराए जाएंगे। यह सिर्फ खोखली धमकी नहीं थी, बल्कि कई चुनावों को उन्होंने सिर्फ इसी वजह से स्थगित किया, क्योंकि उस राज्य में वोटर पहचानपत्र तैयार नहीं थे। इसके अलावा उम्मीदवारों द्वारा चुनाव खर्च को कम करने का काम भी किया।