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गीत-सहमी सहमी हवा

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Chand Mohammed Shekh

Oct 25, 2021

गीत-सहमी सहमी हवा

गीत-सहमी सहमी हवा

सन्तोष झांझी

सहमी सहमी हवा सो रहा आसमां
तारे ढलने लगे चांद जाने कहां
जागती है मगर दर्द की बस्तियां

आसान नहीं इस गली से गुजर
दर्द में भीगते बीत जाती उमर
दर्द ज्यों ज्यों बढा गीत बनते गए
गुनगुनाती रही गीत में मस्तियां

चंद लोगों को मिलती ये सौगात है
पत्थर की जगह दिल में जज्बात है
कोई हसरत नहीं मिटने के सिवा
खुद डुबाते रहे खुद की ही कश्तियां

रखिए दर्द को यूं संभाले हुए
दिल में ढूंढिए कितने छाले हुए
आसमां सो गया थम गई है हवा
मन के तूफान से जूझतीं हस्तियां

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