यहां की शाम अवध की तरह सजती थी, जहां नाच-गाने के कार्यक्रम होते थे और फिर जब चांद पूरी रंगत बिखेरता था, तब पुरानी बस्ती और ब्रह्मपुरी इलाके में तमाशे और गायन के कार्यक्रम होते थे। ये रात बिल्कुल बुंदेलखंडी अंदाज में सजती थी, जहां मंदिरों में पूजा होती थी। साथ ही देर रात तक गालीबाजी का दौर चलता था।
ढूंढाड़ी इतिहास के जानकारों के अनुसार भोर बनारस, प्रयाग की दोपहरी, अवध की शाम और बुंदेलखंड की रात के लिए कहा जाता था कि जब कोई व्यक्ति जीवन से निराश और हार गया हो तो इन चारों जगहों पर एक बार जरूर जाए। उसकी जिन्दगी में सकारात्मक उर्जा भर जाएगी और इतिहास के जानकार मानते हैं कि इन चारों जगहों का आनन्द जयपुर में लिया जाता था। सालों पहले यहां सुबह से रात तक अलग ही माहौल हुआ करता था।