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टाइटल गीत लिखने में माहिर थे हसरत जयपुरी

उनके लिखे टाइटल गीतों ने कई फिल्मों को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी

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Jameel Ahmed Khan

Apr 15, 2016

Hasrat Jaipuri

Hasrat Jaipuri

मुम्बई। हिन्दी फिल्मों में जब भी टाइटल गीतों का जिक्र होता है गीतकार हसरत जयपुरी का नाम सबसे पहले लिया जाता है। वैसे तो हसरत जयपुरी ने हर तरह के गीत लिखे, लेकिन फिल्मों के टाइटल पर गीत लिखने में उन्हें महारत हासिल थी। हिन्दी फिल्मों के स्वर्णयुग के दौरान टाइटल गीत लिखना बड़ी बात समझी जाती थी। निर्माताओं को जब भी टाइटल गीत की जरूरत होती थी, हसरत जयपुरी से गीत लिखवाने की गुजारिश की जाती थी।

उनके लिखे टाइटल गीतों ने कई फिल्मों को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हसरत जयपुरी के लिखे कुछ टाइटल गीत हैं 'दीवाना मुझको लोग कहें' (दीवाना), 'दिल एक मंदिर है' (दिल एक मंदिर), 'रात और दिन दीया जले' (रात और दिन), 'तेरे घर के सामने इक घर बनाऊंगा' (तेरे घर के सामने), 'एन ईवनिंग इन पेरिस' (एन ईवनिंग इन पेरिस), 'गुमनाम है कोई बदनाम है कोई' (गुमनाम), 'दो जासूस करें महसूस' (दो जासूस) आदि।

15 अप्रेल, 1922 को जन्मे हसरत जयपुरी (मूल नाम इकबाल हुसैन) ने जयपुर में प्रारंभिक शिक्षा हासिल करने के बाद अपने दादा फिदा हुसैन से उर्दू और फारसी की तालीम हासिल की। बीस वर्ष का होने तक उनका झुकाव शेरों-शायरी की तरफ होने लगा और वह छोटी-छोटी कविताएं लिखने लगे। 1940 मे नौकरी की तलाश में हसरत जयपुरी ने मुम्बई का रुख किया और आजीविका चलाने के लिए वहां बस कंडक्टर के रूप में नौकरी करने लगे।

इस काम के लिए उन्हें मात्र 11 रुपए प्रति माह वेतन मिला करता था। इस बीच उन्होंने मुशायरों के कार्यक्रम में भाग लेना शुरू किया। उसी दौरान एक कार्यक्रम में पृथ्वीराज कपूर उनके गीत को सुनकर काफी प्रभावित हुए और उन्होंने अपने पुत्र राजकपूर को हसरत जयपुरी से मिलने की सलाह दी। राजकपूर उन दिनों अपनी फिल्म 'बरसात' के लिए गीतकार की तलाश कर रहे थे।

उन्होंने हसरत जयपुरी को मिलने का न्योता भेजा। राजकपूर से हसरत जयपुरी की पहली मुलाकात 'रायल ओपेरा हाउस' में हुई और उन्होंने अपनी फिल्म 'बरसात' के लिए उनसे गीत लिखने की गुजारिश की। इसे महज संयोग ही कहा जाएगा कि फिल्म बरसात से ही संगीतकार शंकर जयकिशन ने भी अपने सिने कैरियर की शुरुआत की थी।

राजकपूर के कहने पर शंकर जयकिशन ने हसरत जयपुरी को एक धुन सुनाई और उसपर उनसे गीत लिखने को कहा। धुन के बोल कुछ इस प्रकार थे 'अंबुआ का पेड़ है वहीं मुंडेर है, आजा मेरे बालमा काहे की देर है'। शंकर जयकिशन की इस धुन को सुनकर हसरत जयपुरी ने गीत लिखा 'जिया बेकरार है छाई बहार है आजा मेरे बालमा तेरा इंतजार है'।

वर्ष 1949 में प्रदर्शित फिल्म 'बरसात' में अपने इस गीत की कामयाबी के बाद हसरत जयपुरी गीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। बरसात की कामयाबी के बाद राजकपूर, हसरत जयपुरी और शंकर-जयकिशन की जोड़ी ने कई फिल्मो मे एक साथ काम किया।