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माननीय… पानी आंखों में रहे

माननीय 07 विधायक और सांसद..आंखों में इस बार पानी रखिएगा। पहला मुद्दा पानी है। मांग 75 साल की है। आपका वादा भी पानी पहुंचाना है और चुनाव में जब आप एक-एक वोटर्स के सामने झुके थे तो उनकी आंखों में उम्मीद का पानी था औैर आपकी आंखों में आस का पानी। आपकी आस का पानी पूरा हुआ। विधायकी की चमक का पानी आखों में चढ़ गया है। अब, जनता की उम्मीद का पानी आपकी आंखों से उतरे नहीं,बस यह ख्याल उठते-बैठते और सोते हुए याद करें।

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माननीय... पानी आंखों में रहे

माननीय... पानी आंखों में रहे

रतन दवे
माननीय 07 विधायक और सांसद..आंखों में इस बार पानी रखिएगा। पहला मुद्दा पानी है। मांग 75 साल की है। आपका वादा भी पानी पहुंचाना है और चुनाव में जब आप एक-एक वोटर्स के सामने झुके थे तो उनकी आंखों में उम्मीद का पानी था औैर आपकी आंखों में आस का पानी। आपकी आस का पानी पूरा हुआ। विधायकी की चमक का पानी आखों में चढ़ गया है। अब, जनता की उम्मीद का पानी आपकी आंखों से उतरे नहीं,बस यह ख्याल उठते-बैठते और सोते हुए याद करें।
असल में पानी की समस्या बॉर्डर पर जंग की तरह है। मीलों पैदल चलती उस 75 साल की महिला की आंखों में उतर आए पानी में झांकिएगा जो 50 बरस से सिर पर धरी मटकी से एक दिन और एक प्रहर आराम नहीं ले पाई है। बेरियों में पानी खींचते जिनके हाथों की चमड़ी उतर गई, कमर टेढ़ी औैर पांवों की नसें बाहर आ गई है उन बॉर्डर के लोगोंं के पसीने के रूप में बहते पानी से पूछिए कि, हाल क्या है? सवाल कीजिएगा कभी उन गांवों में भी जो खारे पानी को पी-पीकर कई बीमारियों की दवा घूंट-घूंट पानी के साथ ले रहे है। कागजों में पानी पिला रहे सेवानिवृत्त हो चुके अफसर भी अब कहते है कि हमने केवल फाइलों में पानी पिलाया..हकीकत में नहीं। अब तक बने तमाम विधायक अपने आंखों के जमीर के पानी से खुद ही सवाल करे कि वास्तव में उन्होंने पानी का वादा कितना पूरा किया? गिनाने को नलकूप, कुएं, हौदियां, बावडिय़ा है लेकिन जिला परिषद और पंचायत समिति की बैठकों में जब ये खुद पानी के अफसरों पर गरजते हुए कहते है कि पानी नहीं आ रहा है तो वास्तव में यही सच है। बाकि जो बाहर आकर दावे करते रहे वो कत्तई सच नहीं रहा हैै। 75 साल बाद भी चुनावों का पहला मुद्दा पानी है। हर घर नल योजना बनाई और यहां दावा किया गया कि हमने घर-घर पानी पहुंचाना शुरू कर दिया लेकिन असल में अभी केवल 27 प्रतिशत घरों में पानी पहुंचा है और यह भी कागजी है। हकीकत में 10 प्रतिशत लोग ही नल लगने के बाद पानी पा रहे है, बाकि तो केवल सूखे नल को देखकर सोच रहे है यह भी क्यों लगाया? जरूरत अब नए बने माननीय और सांसद से है। डबल इंजन की इस सरकार में अब तो कोई बहाना भी नहीं है। देने वाला केन्द्र-लेने वाला राज्य और लाने वाले माननीय। यह लोग जो पानी मांग रहे है बॉर्डर के लोग हैै। जिन्होंने 1947 का बंटवारा, 1965 और 1971 का युद्ध देखा भी हैै और सेना के साथ लड़ा भी है। इनके लिए लडऩे की अब आपको जरूरत है। सरकार के सामने एक बात पर तो अड़ ही जाइए कि अब पानी के लिए काम होगा। माननीय बनने के बाद आंखों में पानी रखिएगा..आंख का पानी मर गया तो फिर अगले चुनाव में यही मुद्दा जिंदा होगा। लोग प्यासे है...जाए तो जाए कहां.., वे बारिश में इन्द्र से मेहरबानी की प्रार्थना करते है और चुनावों में जनप्रतिनिधि से। इन्द्र तो फिर भी मेहरबान होता है लेकिन...आंखों में पानी बस अब माननीय रखिएगा।