
एशिया-प्रशांत क्षेत्र में साइबर हमलावरों के प्रमुख निशाने पर भारत
नई दिल्ली। भारत हाल के वर्षों में एशिया-प्रशांत (एपीएसी) क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआइ) तकनीक को अपनाने वाले अग्रणी देशों में से एक है। एआइ का उपयोग व्यवसायों और उपभोक्ताओं के लिए फायदेमंद है, लेकिन यह कई चुनौतियों भी पेश कर रहा है। ऐसी ही एक चुनौती साइबर खतरों के प्रति बढ़ती संवेदनशीलता है। माइक्रोसॉफ्ट की डिजिटल डिफेंस रिपोर्ट के अनुसार भारत, एपीएसी क्षेत्र में उन शीर्ष तीन देशों में शामिल है, जहां नेशन-स्टेट एक्टर्स (ऐसे अपराधी जिन्हें किसी देश की खुफिया जानकारी का पता लगाने या उनकी गतिविधियों को बाधित करने का काम सौंपा गया है) साइबर हमलों के लिए एआइ का इस्तेमाल करने लगे हैं। साइबर अपराधी नए खतरे पैदा करने, रैंसमवेयर हमलों की गति बढ़ाने, पासवर्ड और मल्टी-फैक्टर ऑथेंटिकेशन आधारित हमलों के लिए एआइ का इस्तेमाल कर रहे हैं।
शिक्षा, आइटी सेक्टर बन रहे आसान टारगेट:
हमलावरों के लिए एपीएसी क्षेत्र में सबसे आसान टारगेट शिक्षा, आइटी और परिवहन क्षेत्र हैं। पिछले साल डिस्ट्रीब्यूटेड डिनायल-ऑफ-सर्विस (डीडीओएस) अटैक के मामले में भारत, अमरीका के बाद दूसरा सबसे अधिक लक्षित देश था लेकिन हाल के भू-राजनीतिक बदलावों से यह पांचवें स्थान पर आ गया है। डीडीओएस अटैक में हमलावर, यूजर्स को कनेक्टेड ऑनलाइन सेवाओं और साइट्स तक पहुंचने से रोकने के लिए सर्वर पर इंटरनेट ट्रैफिक भर देता है। पिछले 12 महीनों में सरकार ने साइबर अपराध की घटनाओं की रिपोर्टिंग की आवश्यकताओं को बढ़ाने पर ध्यान दिया है। वहीं चीन और जापान जैसे देशों ने साइबर सुरक्षा के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाया है।
हमलों में चैटजीपीटी जैसी तकनीकों का प्रयोग:
साइबर अपराधी वर्तमान में फिशिंग संदेशों को ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए एआइ का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके लिए वे चैटजीपीटी जैसी तकनीक का सहारा लेते हैं। जिससे एक ही मेल को कई तरीके से लिखकर या अन्य बदलाव कर भेज सकें। इसके अलावा वे सिंथेटिक इमेजेस (ऐसी फोटो जो कैमरा से न लेकर कम्प्यूटर से तैयार की गई हों) को ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए भी एआइ को हथियार के रूप में उपयोग कर रहे हैं। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले सालों में एआइ-संचालित साइबर सुरक्षा में नवाचार इन हमलों की बढ़ती दर को उलटने में मददगार साबित होगा। जैसे यूक्रेन में रूसी साइबर हमलों से बचाव के लिए एआइ तकनीक का पहला सफल उपयोग देखा गया।
पहचान छिपाने के तरीके भी अपनाने लगे हमलावर:
दुनियाभर के संगठनों ने सितंबर, 2022 के बाद से मानव-संचालित रैंसमवेयर हमलों में 200 प्रतिशत की वृद्धि देखी। ये स्वचालित हमलों के बजाय 'हैंड-ऑन कीबोर्ड' प्रकार के अटैक पाए गए। ये हमले आमतौर पर फिरौती की मांग के साथ किसी एक डिवाइस की बजाय पूरे संगठन को निशाना बनाते हैं। यह भी पाया गया कि हमलावर अब रिमोट एन्क्रिप्शन के साथ-साथ वर्चुअल मशीन जैसे क्लाउड-आधारित टूल का उपयोग करके अपनी पहचान और प्रभावशीलता को बढ़ा रहे हैं।
Published on:
08 Oct 2023 11:28 am
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