
जयपुर। एक नए शोध में सामने आया है कि गंभीर मानसिक बीमारियों से जूझ रहे लोगों की जान का सबसे बड़ा कारण आत्महत्या या नशे का ओवरडोज नहीं, बल्कि दिल की बीमारी है। यह निष्कर्ष अमरीका की इमोरी यूनिवर्सिटी की वियोला वैक्कारिनो के नेतृत्व में किए गए शोध में सामने आया है। विशेषज्ञों के अनुसार डिप्रेशन, सिजोफ्रेनिया, बायपोलर डिसऑर्डर, पीटीएसडी (पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर) और एंग्जायटी से पीड़ित वयस्क औसतन 10 से 20 साल पहले मर जाते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह दिल की बीमारी बताई गई है।
यानी मानसिक बीमारियां दिल की बीमारियों से सीधे जुड़ी हैं। इसके बावजूद ऐसे मरीजों को अक्सर सामान्य लोगों की तुलना में कमतर या अधूरी हार्ट केयर मिलती है। नियमित जांचें छूट जाती हैं, जोखिम कारकों पर ध्यान नहीं दिया जाता और उपचार का पालन भी ढंग से नहीं हो पाता।
कैसे जुड़ी हैं दोनों बीमारियां?
मानसिक और दिल की बीमारियां एक-दूसरे को बढ़ाती हैं। डिप्रेशन या तनाव से लोग धूम्रपान, खराब खानपान और निष्क्रिय जीवनशैली की ओर झुकते हैं। लगातार तनाव से शरीर में सूजन, ब्लड प्रेशर और शुगर बढ़ जाती है, जिससे दिल कमजोर पड़ने लगता है। वहीं दूसरी ओर, दिल का दौरा या स्ट्रोक झेल चुके कई मरीजों में डिप्रेशन और पीटीएसडी जैसी मानसिक बीमारियाँ विकसित हो जाती हैं। उदाहरण के तौर पर, स्ट्रोक से बचे करीब 25 प्रतिशत लोग डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं।
स्वास्थ्य व्यवस्था में खामियां
समस्या यह है कि मानसिक स्वास्थ्य और कार्डियोलॉजी को अलग-अलग क्षेत्रों के रूप में देखा जाता है। दिल के मरीजों की मानसिक जांच नहीं होती और मानसिक मरीजों की ब्लड प्रेशर, शुगर या कोलेस्ट्रॉल की निगरानी कम होती है। 2023 की एक अमरीकी रिपोर्ट में पाया गया कि मानसिक बीमारी के मरीजों में से 54 प्रतिशत को कोई इलाज ही नहीं मिल पाता। वहीं, यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज वाले देशों में भी मानसिक रोगियों को दिल की बीमारी का पर्याप्त इलाज, दवाएं और फॉलो-अप नहीं मिलते। गरीबी, अस्थिर आवास और सामाजिक अलगाव समस्या को और गंभीर बना देते हैं।
उपचार और समाधान
अच्छी बात यह है कि कुछ सामान्य उपाय दोनों बीमारियों में मददगार हैं।
क्यों जरूरी है बदलाव?
शोधकर्ताओं का कहना है कि मेडिकल शिक्षा और स्वास्थ्य नीतियों में मानसिक और शारीरिक बीमारियों के गहरे रिश्ते को समझना जरूरी है। हर मरीज की समग्र देखभाल होनी चाहिए। समुदाय स्तर पर व्यायाम की सुविधा, स्वस्थ भोजन, धूम्रपान छोड़ने में मदद और सामाजिक जुड़ाव को बढ़ावा देना भी जरूरी है। खासतौर पर गरीब और हाशिये पर खड़े वर्गों को ध्यान में रखकर नीतियां बनानी होंगी।
यह शोध द लैंसेट रीजनल हेल्थ – यूरोप जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
Published on:
03 Sept 2025 07:05 pm
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