केस क्र. – एक
जवा थाना क्षेत्र में रहने वाला एक बच्चा मोबाइल पर आनलाइन गेम खेलता था और इस चक्कर में उसने पिता के खाते से एक लाख रुपए गेम खेलने के लिए ट्रांसफर कर दिये थे। डांट से बचने के लिए वह बिना बताए घर से चला गया था और परिजनों को अपहरण की सूचना दी थी। पुलिस ने उस बच्चे को इंदौर से बरामद किया था जिसके लौटने के बाद घटना की सत्यता सामने आई थी।
जवा थाना क्षेत्र में रहने वाला एक बच्चा मोबाइल पर आनलाइन गेम खेलता था और इस चक्कर में उसने पिता के खाते से एक लाख रुपए गेम खेलने के लिए ट्रांसफर कर दिये थे। डांट से बचने के लिए वह बिना बताए घर से चला गया था और परिजनों को अपहरण की सूचना दी थी। पुलिस ने उस बच्चे को इंदौर से बरामद किया था जिसके लौटने के बाद घटना की सत्यता सामने आई थी।
केस क्र. – दो
समान थाना क्षेत्र में रहने वाला एक बच्चा घर वालों के द्वारा मोबाइल छीनने से नाराज होकर चला गया था। घर वालों की शिकायत पर पुलिस ने अपहरण का मामला दर्ज कर उसकी तलाश की और बाद में उसे बरामद कर लिया। उसने घर वालों के द्वारा मोबाइल खेलने से मना करने और इस बात को लेकर डांटने से नाराज होकर जाने की जानकारी पुलिस को दी थी।
समान थाना क्षेत्र में रहने वाला एक बच्चा घर वालों के द्वारा मोबाइल छीनने से नाराज होकर चला गया था। घर वालों की शिकायत पर पुलिस ने अपहरण का मामला दर्ज कर उसकी तलाश की और बाद में उसे बरामद कर लिया। उसने घर वालों के द्वारा मोबाइल खेलने से मना करने और इस बात को लेकर डांटने से नाराज होकर जाने की जानकारी पुलिस को दी थी।
एक दिन में नहीं होगा लेकिन एक दिन जरूर होगा
बच्चों के दिमाग में मोबाइल की लत शराब, गांजा, चरस की तरह दिमाग को प्रभावित करती है। यदि कोई बच्चा इस लत का शिकार हुआ है तो उसे एक दिन में इस लत से दूर नहीं किया जा सकता है। अचानक उससे मोबाइल छीनने से वह आक्रामक हो सकता है। उसे धीरे-धीरे इस लत से बाहर निकाले। उन्हें आऊट डोर गेम के लिए प्रेरित करें और चित्रकला, डांस सहित अन्य दूसरी गतिविधियों में व्यस्त करने का प्रयास करें जिससे धीरे-धीरे उसका दिमाग मोबाइल से दूर हो जायेगा। मोबाइल की लत का शिकार बच्चे डांटने, चिल्लाने की आवश्यकता है। वह एक लत का शिकार है और इससे बाहर निकलने के लिए उसको बाहर माता-पिता की आवश्यकता है।
बच्चों के दिमाग में मोबाइल की लत शराब, गांजा, चरस की तरह दिमाग को प्रभावित करती है। यदि कोई बच्चा इस लत का शिकार हुआ है तो उसे एक दिन में इस लत से दूर नहीं किया जा सकता है। अचानक उससे मोबाइल छीनने से वह आक्रामक हो सकता है। उसे धीरे-धीरे इस लत से बाहर निकाले। उन्हें आऊट डोर गेम के लिए प्रेरित करें और चित्रकला, डांस सहित अन्य दूसरी गतिविधियों में व्यस्त करने का प्रयास करें जिससे धीरे-धीरे उसका दिमाग मोबाइल से दूर हो जायेगा। मोबाइल की लत का शिकार बच्चे डांटने, चिल्लाने की आवश्यकता है। वह एक लत का शिकार है और इससे बाहर निकलने के लिए उसको बाहर माता-पिता की आवश्यकता है।
कैसे पता लगाएं बच्चों में मोबाइल की लत
जिन बच्चों में मोबाइल की लत होती है उनमें डिप्रेशन, एनजाइटी व एडीएचडी के विकार ज्याद पाए जाते है। मोबाइल छुड़ाने पर बच्चा क्रोध करता है, बात-बात पर झूठ बोलता है, बाथरूम में अधिक समय बिताता है, बाहर खेलने जाने के लिए मना करता है, पढ़ाई में कमजोर होता है, रात में अच्च सोता नहीं है तो समझ जाइए वह मोबाइल की लत का शिकार हो गया है। ऐसे में बच्चों को इस लत से दूर करने के लिए सभी परिवार के सदस्यों से बात करें और एक राय होकर उस पर काम करें।
जिन बच्चों में मोबाइल की लत होती है उनमें डिप्रेशन, एनजाइटी व एडीएचडी के विकार ज्याद पाए जाते है। मोबाइल छुड़ाने पर बच्चा क्रोध करता है, बात-बात पर झूठ बोलता है, बाथरूम में अधिक समय बिताता है, बाहर खेलने जाने के लिए मना करता है, पढ़ाई में कमजोर होता है, रात में अच्च सोता नहीं है तो समझ जाइए वह मोबाइल की लत का शिकार हो गया है। ऐसे में बच्चों को इस लत से दूर करने के लिए सभी परिवार के सदस्यों से बात करें और एक राय होकर उस पर काम करें।
ऐसे बच्चों को लत से बचाए
1- माता-पिता बच्चों को सिखाए जाने वाला व्यवहार खुद अपनाए। बच्चों के सामने मोबाइल का उपयोग मनोरंजन के लिए किसी कीमत में न करें।
2- अपने काम के लिए बच्चों को मोबाइल न पकड़ाए बल्कि उनको खेलने, पढऩे व दोस्तों से बातचीत करने के लिए प्रेरित करें।
3- बच्चों को समय दें और उनके साथ पढ़ाई व दोस्तों के संबंध में पूंछे। उनको घर के छोटे-छोटे कामों में शामिल करें ताकि वे अधिक समय तक व्यस्त रहें।
4- बच्चों को पढ़ाई के लिए कम से कम मोबाइल दें। यदि आवश्यक ही है तो उनको कम्प्यूटर, लैपटाप में पढ़ाई करवाएं।
5- बच्चों को खेलकूद, चित्रकला, डांस सहित दूसरी गतिविधियों में शामिल करें। इससे वे मोबाइल की लत में नहीं पड़ेंगे।
1- माता-पिता बच्चों को सिखाए जाने वाला व्यवहार खुद अपनाए। बच्चों के सामने मोबाइल का उपयोग मनोरंजन के लिए किसी कीमत में न करें।
2- अपने काम के लिए बच्चों को मोबाइल न पकड़ाए बल्कि उनको खेलने, पढऩे व दोस्तों से बातचीत करने के लिए प्रेरित करें।
3- बच्चों को समय दें और उनके साथ पढ़ाई व दोस्तों के संबंध में पूंछे। उनको घर के छोटे-छोटे कामों में शामिल करें ताकि वे अधिक समय तक व्यस्त रहें।
4- बच्चों को पढ़ाई के लिए कम से कम मोबाइल दें। यदि आवश्यक ही है तो उनको कम्प्यूटर, लैपटाप में पढ़ाई करवाएं।
5- बच्चों को खेलकूद, चित्रकला, डांस सहित दूसरी गतिविधियों में शामिल करें। इससे वे मोबाइल की लत में नहीं पड़ेंगे।
जनिए विशेषज्ञें से निदान के उपाय डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी, मनोरोग विशेषज्ञ ने कहा कि, बच्चों में मोबाइल की लत खतरनाक रूप ले चुका है। हमारे पास कई जगहों से परिजन बच्चों को इलाज के लिए लेकर आते हैं। बच्चे को कम से कम मोबाइल देने का प्रयास करें। यदि बच्चा इस लत में फंस गया है तो उस पर गुस्सा न करिए। बच्चा मुसीबत में है और इससे बाहर निकलने के लिए उसे आपकी मदद की आवश्यकता है। बच्चों के पहले शिक्षक माता-पिता हंै। आप जो व्यवहार करेंगे वही बच्चा सीखेगा। इसलिए उसके सामने मोबाइल का अनावश्यक उपयोग माता-पिता भी मत करें। उसके व्यवहार पर लगातार नजर रखें और यदि मोबाइल छीनने पर उसके स्वभाव में आक्रामकता आ रही है तो समझ जाइए वह मोबाइल की लत का शिकार हो चुका है।
डॉ. धीरेन्द्र मिश्रा, मनोचिकित्सक ने बताया कि मोबाइल उपयोग की लत हर उम्र की अलग-अलग होती है। बच्चे कार्टून देखते हैं तो किशोरावस्था में सोशल मीडिया की ओर आकर्षित होते हैं। इसलिए जरूरी है कि मोबाइल की लत नहीं लगने पाए इसके प्रयास हों और उन्हें पढ़ाई, खेलकूद की ओर लगाएं। पहले बच्चे मोहल्लों या स्कूलों में समूह में रहते थे तो एक-दूसरे से अपनी बातें साझा करते थे। कोरोना काल की वजह से अकेले रहने की प्रवृत्ति बढ़ी है। मानसिक बीमारी आपोजिशनल डेफियंट डिसऑर्डर (ओडीडी) भी एक प्रमुख वजह है कि अपने गुस्से को लोग नियंत्रित नहीं कर पाते हैं। इस बीमारी में चिढ़चिढ़ापन और तुरंत प्राप्त करने की प्रवृत्ति ही सबसे अधिक चिंताजनक है। मोबाइल जैसी वस्तु नहीं मिलने पर आत्महत्या जैसा कदम उठाना चिंताजनक है। इसके लिए अभिभावकों को भी जागरुक रहना होगा।
डॉ. श्रीकांत मिश्रा, विभागाध्यक्ष दर्शनशास्त्र एपीएसयू, ने कहा कि, किसी को भी दबाव देकर कोई काम करने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। स्थितियां कई बार ऐसी हो जाती हैं कि परिवार में बच्चों को पहले सुधारें या अभिभावकों को सुधारें। हम चाहते तो हैं कि हमारा बच्चा अच्छा होना चाहिए लेकिन वह क्या चाहता है इस पर भी विचार करना चाहिए। बच्चों के साथ संवाद बराबर का होना चाहिए। कई बार ऐसा होता है कि अभिभावक बच्चों पर तो पे्रशर बनाते हैं लेकिन खुद उसका पालन नहीं करते। मोबाइल के लिए यदि आत्महत्या जैसी बात रीवा में सामने आती है तो यह एक परिवार नहीं बल्कि पूरे समाज के लिए चिंताजनक बात है।