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बृजेश चंद्र सिरमौर
नर्म ददाति इति नर्मदा, यह व्युत्पत्ति है, इस शब्द की। नर्म शब्द के कई अर्थ हैं, क्रीड़ा, विनोद, आमोद-प्रमोद, कामकेलि और हास परिहास। इन सबके मूल में हर्ष प्रसन्नता की वृत्ति है। इस प्रकार हर्षोल्लास को देने वाले, इन्द्रिय चैतन्य को खुशी का लहारों में डूबो देने वाले को नर्मद कहा गया है और नर्म का उपक्रम जुटाने में सहयोगकारी स्थूल सूक्ष्म सभी तरह के सौम्य संवेदनाओं का संभार जुटाने वाली आनंद प्रदान करने वाली सोमोद्भवा सरिता को नर्मदा कहा गया है। कवि शिवमंगल सिंह सुमन अमरकंटक के सुमनों की सौगात सजाने वाली नर्मदा के बारे नर्मदा के बारे में कहते हैं-नर्मदा अमरकंटक के सुमनों की सौागात सजाती है, ओकारेश्वर के बीच सकुचाती सहमी-सहमी आती है। जो धुआंधार में धारा का स्वर्णिम उल्लास लुटाती है, वह संगमरमरी बांहों में बरबस बंदी बन जाती है। मांडू के महलों मेंं जिसकी आभा अभिसार सजाती है। सपनों की रूपमती रेवा की रेखा सी रह जाती है। श्रीराम चन्द्र बिल्लोरे ने ऋषियों, भीलों, कृषकों और भक्तों के लिए नर्मदा के महत्व का उल्लेख किया है-ओ ऋषियों की जीवन गाता, भीलों की शुभवाणी, ओ कृषकों की शस्य श्यामला, भक्तों की महारानी। हिन्दी के यशस्वी व्यंग कवि श्री सुरेश उपाध्याय नर्मदा घाटी के ही कवि हैं, उन्होने नर्मदा की वंदना से ही अपनी कविता यात्रा प्रारंंभ की है-लहर-लहर पर मंगल गीत सुनाती सी, पतित पावनी रेखा रस बरसाती सी, विन्ध्यांचल सतपुड़ा किनारे खड़े रहे, चली नर्मदा मधु दीपों की बाती सी।
नर्मदा नदी, जो अमरकंटक से खंभात तक १३१२ किलोमीटर की लंबी यात्रा में अपने साथ गंजाल आदि प्रमुख नदियों को मिलाने के कारण इसका जल संग्रहण क्षेत्र ९८,८७७ वर्ग किलोमीटर है। नर्मदा नदी मध्यप्रदेश की वह ममतामयी पर्वतीय नदी है, जिसके अक्षय जलधार से मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात के भू-भाग अभिसिंचित हैं। इस नदी का अथाह जल विस्तार श्रमहारी शांत परिवेश और पुलिंद तथा शवर कन्याओं की जल क्रीड़ाएं आदि कवियों की दृष्टि को आनंद विमुग्ध किए है। नर्मदा भारत की सात प्रमुख पवित्रम नदियों में से एक है। नर्मदा नदी श्रृंगार, वीर और शांत रस की सरिता है। इसके तटवर्ती निकुंजों में अभिसार के प्रणय गीत गंूजे, तो देवताओं, ऋषि मुनियों ने तपश्चर्या और साधना से मुक्ति प्राप्त की। पौराणिक आख्यानों में यह नदी प्रलय के प्रभाव से मुक्त अयोनिजा और कुमारी मानी गई है और यही एकमात्र नदी है, जिसकी परिक्रमा की जाती है। यद्यपि नर्मदा नदी की उत्पत्ति के संबंध में विभिन्न पुराणों में प्राप्त कथाओं में एकरूपता नहीं है। कहीं ताण्डव करते शिव के शरीर से उत्पन्न स्वेद से, तो कहीं तपस्या रत शिव स्वेद बिन्दु से, तो कहीं शिव के सिर पर स्थित सोमकला से नर्मदा की उत्पत्ति बताई गई है, परन्तु इस अंश में कोई भेद नहीं है कि नर्मदा का उद्भव शंकर भगवान से ही हुआ है। इसीलिए नर्मदा को शांकारी कहा गया है और उसे रूद्रदेह-समुद्रभूता माना गया है। सदा जल भरति नर्मदा एक सी गति एक सी गंभीरता। मनचली, नांचती और थिरकती नर्मदा नदी का गंभीर होकर भी चंचल होना विचित्र बात है, पर यह सत्य है कि यह गंभीर है और चंचल भी, नर्मदा भी है और रेवा भी। वास्तव में सौन्दर्य की तरंगिणी है नर्मदा। अमरकंटक से चुपके से खिसकती है, कहीं कोइ्र्र रव नहीं, पदचाप की आहट नहीं और कपिलधारा में कूद पड़ती है। उसे किसी को कोई परवाह नहीं। दूधधारा में बहने लगती है, सहस्त्रधारा में बिखरे लटों से भुजाएं झटकती दौड़ती है, पर किसी की हिम्मत जो उसके रास्ते को रोके। संगमरमरी दीवारेंं उसका रास्ता नहीं रोक सकती। विन्ध्य और सतपुड़ा उसकी इच्छा के विपरीत इधर-उधर नहीं हो सकते। उसका जिधर से मन होगा उधर से बहती है। पथरीली घाटियों को तोड़ती चलती है, तो वन प्रांतों में लुक छिपकर भूल भूलैया खेलती चलती है। हरे भरे कछारों मेंं अठखेलियां करती है, तो जब चाहेगी घहराती छलांगें लगा देती है। सब सरिताएं पूर्व की ओर जाती है, वह पश्चिम की ओर जाती है। नर्मदा नदी कभी किसी नदी से नहीं मिलती, उसने जोहिला ओर सोन का ठुकरा दिया। नदियां नर्मदा नदी से मिलती हैं, इसलिए स्वाभिमान की सरिता है नर्मदा। यदि आपको जूझारू व्यक्तित्व का निर्माण, स्वाभिमान के ताने बाने में आकर्षक ढ़ंग से करना है तो आपको नर्मदा की परिक्रमा करनी होगी। सामान्य परिक्रमा में एक बार १६०० मील की दूरी दोनों तटों की तय की जाती है। परिक्रमा जहां से प्रारंभ की जाती है, वहीं समाप्त होती है। यह भी कहा जाता है कि सरस्वती का जल तीन दिन में, यमुना का जल एक सप्ताह में और गंगा का जल तुरंंत पवित्र कर देता है, परन्तु नर्मदा का जल दर्शन मात्र से ही पवित्र कर देता है। पुण्य सलिला नर्मदा को महान तीर्थ का गौरव प्राप्त है। श्रद्धालु भक्त इसकी परिक्रमा करते हैं। लोक विश्वास और शास्त्रीय प्रमाण है कि नर्मदा पापमोचनी, मुक्तिदात्री व पितृतारिणी है।
पुराणों में नर्मदा नदी की यह विशेषताएं है
-कर्म पुराण में यह कथन है कि जो अमरकंटक पर्वत की प्रदक्षिणा करता है, उसे पुण्डरीक यज्ञ का फल मिलता है।
-श्री नर्मदा पुराण में लिखा गया है कि विशेष धार्मिक अवसरों पर स्वर्ग के देवता यहां स्नान करने आते हैं।
-पद्म पुराण के अनुसार जहां से नर्मदा का प्राकाट्य होता है, वहां दस करोड़ तीर्थ निवास करते हैं।
-अमरकंटक में प्रकट होने वाली श्री नर्मदा का जो स्मरण करता है, उसे सर्पों का भय नहीं रहता है।
-नर्मदा के जल में जो अस्थि विसर्जन करता है, वह अस्थियां पाषाण होकर अक्षय अमर हो जाती है।
-शंख स्मृति में लिखा है कि अमरकंटक नर्मदा व काशी कुरूक्षेत्र में किया गया श्राद्ध अक्षय होता है।
Published on:
13 Feb 2019 07:10 am
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