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नई पीढ़ियों में डिमेंशिया होने की आशंका कम

अध्ययन में पाया गया कि सभी क्षेत्रों और सभी पीढ़ियों में उम्र बढ़ने के साथ डिमेंशिया की दर बढ़ती है, लेकिन एक ही उम्र में, हाल की पीढ़ियों में डिमेंशिया होने की संभावना पहले की तुलना में कम है।

जयपुरJun 05, 2025 / 05:57 pm

Shalini Agarwal

जयपुर. एक नए अध्ययन के अनुसार, जो लोग हाल के वर्षों में जन्मे हैं, खासकर महिलाएं, उनके बूढ़े होने पर डिमेंशिया (स्मृति से जुड़ी बीमारी) होने की संभावना पहले की पीढ़ियों की तुलना में कम है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, साल 2021 में दुनिया भर में करीब 5.7 करोड़ लोग डिमेंशिया से पीड़ित थे, जिनमें महिलाओं की संख्या ज्यादा थी। हालांकि उम्र बढ़ने के साथ डिमेंशिया का खतरा बढ़ता है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह उम्र बढ़ने की अनिवार्य स्थिति नहीं है।
अध्ययन की सह-लेखिका डॉ. सबरीना लेंजेन ने कहा, “नई पीढ़ियों में उनके माता-पिता या दादा-दादी की उम्र में डिमेंशिया की संभावना कम है, और यह एक आशाजनक संकेत है।”
हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि “जैसे-जैसे आबादी बूढ़ी होती जाएगी, डिमेंशिया का कुल बोझ बढ़ेगा, और इसमें लिंग, शिक्षा और क्षेत्रीय असमानताएं बनी रहेंगी।”
यह अध्ययन Jama Network Open नामक वैज्ञानिक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इसमें ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं ने अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप के हिस्सों में किए गए तीन बड़े सर्वे में शामिल 70 वर्ष और उससे अधिक उम्र के 62,437 लोगों के डेटा का विश्लेषण किया।
एक विशेष एल्गोरिद्म के जरिए यह अनुमान लगाया गया कि किन प्रतिभागियों को डिमेंशिया होने की संभावना थी। इसमें रोजमर्रा की गतिविधियों में परेशानी और मानसिक क्षमता जांच जैसे कई मापदंड शामिल थे।

प्रतिभागियों को जन्म वर्ष के आधार पर आठ पीढ़ियों और उम्र के अनुसार छह समूहों में बांटा गया।
अध्ययन में पाया गया कि सभी क्षेत्रों और सभी पीढ़ियों में उम्र बढ़ने के साथ डिमेंशिया की दर बढ़ती है, लेकिन एक ही उम्र में, हाल की पीढ़ियों में डिमेंशिया होने की संभावना पहले की तुलना में कम है
उदाहरण के लिए, अमेरिका में 81 से 85 वर्ष की उम्र के बीच, 1890–1913 के बीच जन्मे लोगों में डिमेंशिया की दर 25.1% थी, जबकि 1939–1943 में जन्मे लोगों में यह दर सिर्फ 15.5% थी।
यह अंतर महिलाओं में अधिक स्पष्ट रूप से देखा गया, खासकर यूरोप और इंग्लैंड में। संभवतः इसका कारण यह है कि 20वीं सदी के मध्य में महिलाओं को शिक्षा के अधिक अवसर मिले।

हालांकि, देशों की आर्थिक प्रगति (GDP) को ध्यान में रखने पर भी यह नतीजा बहुत नहीं बदला।
एडिनबरा यूनिवर्सिटी की प्रो. टारा स्पायर्स-जोन्स ने कहा कि “यह अध्ययन अच्छी तरह किया गया है और यह एक सकारात्मक संकेत देता है कि नई पीढ़ियों में डिमेंशिया का खतरा कम हो रहा है।”
उन्होंने बताया कि इसमें शिक्षा, धूम्रपान पर रोक और हृदय रोग, मधुमेह तथा सुनने की समस्या जैसी बीमारियों के इलाज में सुधार जैसे कारण शामिल हो सकते हैं।
हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि यह अध्ययन डिमेंशिया के आधिकारिक मेडिकल डायग्नोसिस पर आधारित नहीं है, जो इसकी एक सीमा है।

नॉटिंघम यूनिवर्सिटी के प्रो. टॉम डेनींग ने चेतावनी दी कि यह जरूरी नहीं है कि यह रुझान आगे भी बना रहे, क्योंकि डिमेंशिया जोखिम कम करने के कई बड़े कदम पहले ही उठाए जा चुके हैं।
लंदन यूनिवर्सिटी कॉलेज के प्रो. एरिक ब्रूनर ने कहा कि हाल के वर्षों की नीतियों जैसे खर्च में कटौती (austerity) का असर भी देखना जरूरी है, क्योंकि कुछ अन्य शोधों से यह संकेत मिला है कि इंग्लैंड और वेल्स में डिमेंशिया के नए मामलों की दर अब और कम नहीं हो रही है।
अल्जाइमर्स रिसर्च यूके के नीति प्रमुख डेविड थॉमस ने बताया कि डिमेंशिया के लगभग आधे मामलों को रोका या देर किया जा सकता है, अगर 14 प्रमुख जोखिम कारकों—जैसे धूम्रपान और वायु प्रदूषण—को नियंत्रित किया जाए।
उन्होंने सरकार से अपील की कि बीमारियों से बचाव की रणनीति बनाई जाए, जिसमें डिमेंशिया से बचाव भी शामिल हो।

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