
टिप्पणी... संभालें विरासत
चक्रेश महोबिया
लगता है विश्व विरासत परकोटा को लेकर हमारी चिंताएं फौरी हैं। यह विसंगति विरासत की सार— संभाल से लेकर कदम— कदम पर उजागर हो ही जाती है। कहीं भी नजर डालिए वहीं कमियां नजर आ जाती हैं। चाहे दुकानों की छतों पर अव्यवस्थित बिजली के तार हों या सड़क पर खुली पड़ी नालियां। रोजाना हजारों लोगों की आवाजाही वाले इस क्षेत्र के मुख्य बाजार की सड़कें इन दिनों लोगों की परेशानी का सबब बनी हुई हैं। कारण! पेयजल सप्लाई के लिए इलाके में भूमिगत पाइप लाइन तो आ गई, मगर जिम्मेदार सड़क के गड्ढे ही भरना भूल गए। चौड़ा रास्ता स्थित तेलीपाड़ा और मणिहारों का रास्ता में लोग सबसे ज्यादा परेशान हैं। अब ये गड्ढे हादसों का सबब तो बन ही रहे हैं, लोगों के वाहन भी खूब खराब हो रहे हैं। एक लाख से ज्यादा लोगों की आबादी सीधे तौर पर रोजाना यहां परेशान हो रही है। किसी इलाके का विकास होना एक स्वभाविक प्रक्रिया है। इसके लिए थोड़ी— बहुत परेशानी भी स्वभाविक है, मगर जब काम को सरकारी रवैए के अंदाज में किया जाए तो क्या कहिए! काम करने वाले ठेकेदार तो नियम— कायदों को हवा में उड़ाते ही हैं, सरकारी अफसरों अनदेखी भी कुछ कम नहीं होती। ऐसे समय में जबकि परकोटा को विश्व विरासत का सम्मान मिल चुका है, तब सबकी प्राथमिकताएं इस अतुल्य विरासत की सार— संभाल के लिए बदल जाने की जरूरत है। एक पत्थर भी उखड़े तो सोच— समझकर। लेकिन इस विरासत को लेकर हमारा रवैया जैसे— तैसे तात्कालिक लाभ उठा लेने भर का है। जबकि इसे अवसर की तरह लिए जाने की जरूरत है। इसमें सबसे पहली प्राथमिकता पर्यटकों को बेहतरीन साफ— सफाई और खुशनुमा माहौल देने की है। धूल से सनी और उूबड़— खाबड़ सड़कों पर चलने का अनुभव किसी को अच्छा नही लगेगा। जाहिर है जब कोई पावणा परकोटा से जाए तो इस उम्मीद के साथ कि अगली बार वो और भी ज्यादा लोगों की मित्र मंडली के साथ लौटेगा। और हम भी उसे गर्व से विदा करते हुए कह सकें... पधारो म्होर देश..!
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